केंद्र सरकार ने 25 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन लगाया, जबकि अनलॉक की प्रक्रिया एक जून से शुरू हुई। यह सर्वेक्षण 24 जून से 22 जुलाई के दौरान करवाया गया जो परिवार के कमाने वाले प्रमुख सदस्य की स्थिति पर आधारित था।सर्वेक्षण के अनुसार 8.33 फीसदी लोगों की आय घट गई लेकिन वे नियमन व सुरक्षा उपायों के तहत काम कर रहे हैं जबकि आठ फीसदी लोग घरों से काम कर रहे हैं और उनके वेतन में कटौती हुई है या आय कम हो गई है। सर्वेक्षण से इस बात का भी संकेत मिलता है, लॉकडाउन में ढील के बाद देश में 6.12 फीसदी लोगों के पास आय का कोई साधन नहीं है जबकि 1.2 फीसदी लोग अभी तक काम कर रहे हैं लेकिन उनको वेतन नहीं मिल रहा है।
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कोरोना संकट: देश में लॉकडाउन से बढ़ी बेरोजगारी, 24 % लोगों ने गंवाई नौकरी, हर पांचवे व्यक्ति में एक बेरोजगार

हाईलाइट
- देश में लॉकडाउन के कारण बढ़ी बेरोजगारी
- करीब 24 प्रतिशत लोगों ने अपनी नौकरी गंवाई
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश में कोरोना वायरस के कहर को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने रोजगार से जुड़ी समस्याओं को और बढ़ा दिया है। एक सर्वे में खुलासा हुआ है कि, लॉकडाउन के कारण देश में हर पांचवें व्यक्ति में एक बेरोजगार हो गया है। इस अवधि के दौरान करीब 24 प्रतिशत लोगों ने अपनी नौकरी गंवाई है।
ये आंकड़े IANS-सीवोटर कोविड-19 ट्रैकर द्वारा करवाए गए सर्वेक्षण के नतीजों में सामने आए हैं। सर्वे में 1723 लोगों को शामिल किया गया था। सर्वे के अनुसार, 21.57 फीसदी लोगों की पूरी तरह छटनी हो गई है। 25.92 फीसदी लोग अभी तक उसी आय या वेतन पर सुरक्षा उपायों के तहत काम कर रहे हैं जबकि 7.09 फीसदी लोग घरों से काम कर हैं और उनके वेतन में किसी प्रकार की कटौती नहीं की गई है।


लॉकडाउन के दौरान 24 प्रतिशत लोगों की नौकरी गई
देश के 23.97 लोगों ने कहा है, लॉकडाउन लागू होने के बाद उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। कुल 8.15 प्रतिशत लोगों ने कहा, लॉकडाउन शुरू होने के बाद वे पहले की सैलेरी पर काम कर रहे हैं। वहीं 8.28 प्रतिशत लोगों ने कहा, लॉकडाउन के दौरान उनके वेतन में कटौती की गई।
वहीं 3.23 प्रतिशत लोगों ने कहा, वे लॉकडाउन से पहले फुल-टाइम जॉब करते थे और अब पार्ट टाइम जॉब करते हैं। कम से कम 7.59 प्रतिशत लोगों ने कहा, लॉकडाउन के दौरान वे वेतन बिना अवकाश का सामना कर रहे थे या फिर उनका काम रुक गया था और लॉकडाउन के दौरान उनके पास आय का कोई साधन नहीं था।
इसबीच, 27.72 प्रतिशत लोगों ने कहा, वे इस दौरान सरकार और उसके नियोक्ता के नियम के अंदर काम कर रहे थे। केवल 2.66 प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया कि वे घर से काम नहीं कर रहे थे, लेकिन लॉकडाउन के दौरान पूरी सैलरी ले रहे थे। हालांकि 2.32 प्रतिशत लोगों ने कहा, वे घर से काम नहीं कर रहे थे और उन्हें कम सैलरी मिल रही थी।

लॉकडाउन के बाद लोगों में राशन, दवाइयों को जमा करने का प्रतिशत बढ़ा
लॉकडाउन के बाद राशन और दवाइयों को जमा करने वाले लोगों के प्रतिशत में भी इजाफा हुआ है। यह इजाफा कोरोना की वजह से पैदा हुई अनिश्चतता की वजह से हुआ। 16 मार्च से 22 जुलाई के बीच किए गए आईएएनएस-सीवोटर कोविड-19 ट्रैकर से पता चला, लॉकडाउन से पहले कोई भी एक सप्ताह से ज्यादा का राशन अपने पास नहीं रखता था। हालांकि लाकडाउन लागू होने के बाद से खरीदने के पैटर्न और ग्राहक के व्यवहार में बदलाव आया है।

पोल से पता चला है कि 54.3 प्रतिशत लोगों के पास अब राशन, मेडिसिन व पैसे घर में तीन महीने से ज्यादा समय के लिए रहते हैं। जबकि 44.7 प्रतिशत के पास यह सामग्री तीन सप्ताह से कम समय के लिए रहती है। अगर डाटा को सप्ताह के हिसाब से बांटे तो, 5 प्रतिशत के पास तीन हफ्तों के लिए राशन, मेडिसिन और पैसे हैं। जबकि 27.7 प्रतिशत लोगों के पास यह एक माह के लिए है और 21.6 प्रतिशत लोगों के पास यह एक माह से ज्यादा समय के लिए है। वहीं 12.2 प्रतिशत लोगों के पास एक सप्ताह से कम समय के लिए यह सामग्री है। 19 प्रतिशत के पास एक सप्ताह के लिए और 13.5 प्रशित के पास दो सप्ताह के लिए यह सामग्री है।
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