प्रधानमंत्री मोदी ने मंत्रालयों से लेकर नीचे तक बिचौलियों के चक्रव्यूह को कैसे तोड़ा?

How did Prime Minister Modi break the circle of middlemen from the ministries to the bottom?
प्रधानमंत्री मोदी ने मंत्रालयों से लेकर नीचे तक बिचौलियों के चक्रव्यूह को कैसे तोड़ा?
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नई दिल्ली, 17 सितंबर(आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले छह वर्षों के बीच ऊपर से लेकर नीचे तक बिचौलियों का चक्रव्यूह तोड़ने की कोशिश की है। मंत्रालयों से लेकर ग्राम पंचायत की निचली इकाई तक उन्होंने बिचौलियों की भूमिका समाप्त करने के लिए कई कदम उठाए। इसमें तकनीक का उन्होंने सहारा लिया। ऐसा मंत्रालयों के अफसरों का भी मानना है। खास बात है कि पूर्व में सत्ता के गलियारों में पैठ बनाने वाले बिचौलियों के तंत्र पर भी उन्होंने प्रहार किए। जिससे अब सोशल सेक्टर सहित सभी तरह की योजनाओं का लाभ सीधे लाभार्थियों तक पहुंचने लगा है। वहीं बड़ी परियोजनाओं के ठेके के आवंटन में भी पारदर्शिता सुनिश्चित हुई है।

मंत्रालयों में बिचौलियों की सक्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश में 2014 से पहले सीबीआई की एक सूची सुर्खियों में रहा करती थी। यह वो लिस्ट होती थी, जिसे सभी मंत्रालयों के विजिलेंस अफसरों के इनपुट पर सीबीआई तैयार करती थी। सूची का नाम होता था- अनडिजायरेबल कांटैक्ट मेन (यूसीएम)। इस लिस्ट में ऐसे पॉवर ब्रोकर के नाम होते थे, जो सत्ता के गलियारों में घूमकर नाजायज काम कराते थे। ठेके, पोस्टिंग से लेकर तमाम तरह की डीलिंग करते थे। लुटियंस जोन की इमारतों में मंडराने वाले इन बिचौलियों की लिस्ट जारी कर सीबीआई सभी मंत्रालयों को अलर्ट करती थी। मंत्रालयों के सूत्रों का कहना है कि 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने इन बिचौलियों पर प्रहार कर उनकी पकड़ ढीली कर दी। पहले की तरह अब सत्ता के गलियारों में बिचौलियों का मंडराना बंद हुआ है।

2014 में मोदी सरकार बनने के बाद से फिलहाल तक सीबीआई की ऐसी कोई यूसीएम लिस्ट सुर्खियों में नहीं आई है। माना जा रहा है कि पॉवर ब्रोकर्स के खिलाफ चले अभियान के कारण ऐसा हुआ है। सूत्रों का कहना कि 2012 में तैयार हुई सीबीआई की यूसीएम लिस्ट में तब आर्म्स डीलर सहित कुल 23 पॉवर ब्रोकर के नाम थे, जिनसे सावधान रहने को कहा गया था।

मंत्रालयों में संदिग्धों के घुसने पर लगाम

केंद्र सरकार के एक अफसर ने आईएएनएस से कहा, 2014 के बाद से मंत्रालयों में एंट्री सिस्टम पहले से कहीं ज्यादा सख्त हुआ है। मंत्रियों से लेकर अफसरों के कार्यालय तक अब संदिग्ध लोगों का मंडराना बंद हुआ है। निगरानी तेज हुई है। अफसर ने 2015 में पेट्रोलियम मंत्रालय में पड़े छापे का उदाहरण देते हुए कहा कि तब सात लोगों की जासूसी के आरोप में गिरफ्तारी हुई थी। पूछताछ में सामने आया था कि ये सभी फर्जी कागजात और डुप्लिकेट चाबी बनाकर अंदर घुसते थे। इस घटना के बाद बिचौलियों का मंत्रालयों में मंडराने पर काफी हद तक अंकुश लगा।

एक अन्य अफसर ने आईएएनएस से कहा, यूपीए सरकार में मंत्रालयों में आने-जाने का सिस्टम कुछ ज्यादा उदार था। पीआईबी पास वाले पत्रकार ज्वाइंट सेक्रेटरी और सेक्रेटरी तक आसानी से पहुंच बना लेते थे। यहां तक कि दस्तावेजों तक भी पत्रकारों की पहुंच रहती थी। लेकिन, अब सिस्टम बदल गया है। पीआईबी अधिकारियों के चेंबर तक पत्रकारों की पहुंच रहती है। अप्वाइंटमेंट होने पर ही पत्रकार बड़े अफसरों के दरवाजे तक पहुंच सकते हैं। दरअसल, पत्रकारिता के जरिए भी लायजनिंग के कई मामले सामने आने पर पहले से कहीं ज्यादा सख्ती है।

भाजपा के नेशनल सेक्रेटरी सुनील देवधर आईएएनएस से कहते हैं, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी खुद कहते थे कि एक रुपये भेजने पर नीचे तक सिर्फ 15 पैसा ही पहुंचता है। सिस्टम को 85 प्रतिशत पैसा खाने की आदत लग चुकी थी। प्रधानमंत्री मोदी ने इस आदत को छुड़वाने का काम किया है। मंत्रालयों से लेकर ग्राम पंचायतों तक तकनीक की मदद से पारदर्शिता सुनिश्चित कर उन्होंने बिचौलियों को खत्म करने का काम किया है। अब जनता की जेब में सीधे योजनाओं का पैसा पहुंचता है।

सरकारी खरीद में पारदर्शिता की कवायद

सूत्रों का कहना है कि सरकारी विभागों में खरीद को लेकर पहले बहुत शिकायतें आती थीं। 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंत्रालयों, पीएसयू से लेकर अन्य सरकारी विभागों में होने वाली खरीद में कमीशनखोरी रोकने के लिए तकनीक का सहारा लिया।

प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर सार्वजनिक खरीद में पारदर्शिता के लिए वाणिज्य मंत्रालय ने अगस्त 2016 में जेम पोर्टल शुरू किया। मंत्रालय की मानें तो सरकारी विभागों और मंत्रालयों की खरीद के लिए, इससे एक खुली और पारदर्शी व्यवस्था बनी है। इस प्लेटफॉर्म पर 3.24 लाख से अधिक वेंडर्स पंजीकृत हैं। जेम पोर्टल पर फर्नीचर से लेकर सभी तरह के सामानों की खरीद हो सकती है। मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, इस सरकारी पोर्टल जेम से अब तक 40 हजार करोड़ रुपये की खरीद हुई है, जबकि मोदी सरकार तीन लाख करोड़ का लक्ष्य लेकर चल रही है।

गांव, गरीब तक सीधे पहुंच रहा पैसा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल सेक्टर की योजनाओं में लीकेज रोकने के लिए जनधन-आधार-मोबाइल(जाम ट्रिनिटी) योजना का इस्तेमाल किया। 2015 के आर्थिक सर्वेक्षण में इसे हर आंख से आंसू पोंछने वाली योजना करार दिया गया। इसका मकसद रहा कि केंद्र से एक रुपये भेजने पर पूरे सौ पैसे जनता की जेब में पहुंचे। अब केंद्र और राज्य की योजनाओं का पैसा सीधे लाभार्थियों के खाते में जाने लगा है। हाल में कोरोना काल में जब गरीबों को पांच-पांच सौ रुपये की मदद भेजने का सरकार ने निर्णय लिया, तो 38 करोड़ से अधिक खुले जनधन खातों की उपयोगिता साबित हुई।

डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर(डीबीटी) पर जोर देकर मोदी सरकार ने कमीशनखोरी को खत्म करने की कोशिश की है। बैंकिंग सेक्टर में काम करने वाले सूत्रों का कहना है कि पूंजीपतियों को लोन देने की शर्तें कड़ी हुई हैं। पहले राष्ट्रीकृत बैंकों में पसंदीदा चेयरमैन बनवाकर पूंजीपति लोन हासिल करते थे। इस सिस्टम पर भी प्रधानमंत्री ने प्रहार किया है। 2014 के बाद से आर्थिक मामलों की जांचें तेज हुई हैं। यही वजह है कि आज अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के पास मामलों की भरमार है।

एनएनएम/एएनएम

Created On :   17 Sep 2020 3:01 PM GMT

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