जानिए कीव में क्यों बार बार गूंज रही है सायरन की आवाज, किसी भी हमले के दौरान अलग अलग आवाज में बजने वाले सायरन क्या इशारा करते हैं?

How War Warnings Changed Form, From Church Bulls to Electronic Sirens
जानिए कीव में क्यों बार बार गूंज रही है सायरन की आवाज, किसी भी हमले के दौरान अलग अलग आवाज में बजने वाले सायरन क्या इशारा करते हैं?
खतरे की घंटी जानिए कीव में क्यों बार बार गूंज रही है सायरन की आवाज, किसी भी हमले के दौरान अलग अलग आवाज में बजने वाले सायरन क्या इशारा करते हैं?
हाईलाइट
  • इलेक्ट्रॉनिक सायरन से पहले पारंपरिक तरीको से जनता को युद्ध के बारे में सचेत किया जाता था

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। रूस और यूक्रेन के बीच जारी भीषण युद्ध में आप एक चीज आमतौर पर सुन रहे होंगे, वह है बीच-बीच में सायरन की आवाज, जो खुद में काफी डरावनी है। इस युद्ध के दौरान बार-बार गूंजने वाली यह आवाज अब काफी डराने भी लगी है, लेकिन इस आवाज का इस्तेमाल किसी भी सरकार द्वारा अपने नागरिकों को किसी भी प्राकृतिक या अप्राकृतिक आपदा से सचेत करने के लिए किया जाता है। हालांकि, हर परिस्थिति में यह आवाज समान नहीं होती है, अलग-अलग परिस्थिति में अलग-अलग आवाज या टोन का इस्तेमाल किया जाता है। 

फिलहाल युद्ध में जारी इस भयावह आवाज पर ही बात करते हैं। युद्ध आज की ही बात नहीं है, सदियों से सभ्यता, राजा-महाराजा अपना वर्चस्व बढ़ाने या विस्तार करने के लिए युद्ध करते रहे है। तो जैसे युद्ध तीर-कमान, तलवार, भालों से ऑटोमैटिक मशीन गन या फिर कहे परमाणु हथियारों तक पहुंच गया है, वैसे ही अपनी जनता को युद्ध से सचेत करने के लिए आवाजों में भी काफी बदलाव आया है। यह भी पारंपरिक तरीकों से इलेक्ट्रॉनिक सायरन तक आ गयी है। 

चेतावनी आवाजों का संक्षिप्त इतिहास

इलेक्ट्रॉनिक सायरन से पहले पारंपरिक तरीकों से जनता को युद्ध के बारे में सचेत किया जाता था, जिसमे शामिल है, पहाड़ पर आग जलाकर संकेत देना, ढोल-नगाड़े बजाना, पश्चिमी देशों में चर्च की घंटियां बजाना।  

घंटी के आविष्कार से पहले, ट्रमपेट बजाना या लकड़ी के एक बड़े क्रॉसबार या एक लटकती धातु की प्लेट को छड़ी से पीटना शामिल है।

युद्ध सायरन 

सायरन को आधुनिक दौर में चेतावनी के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, हालांकि 1799 से यह अस्तित्व में है, जिसका आविष्कार स्कॉटिश नेचुरल फिलॉस्फर और फिजिसिस्ट जॉन रॉबिसन ने किया था। 

इसका मतलब ही यहीं है कि यदि कोई बाहर है तो वो सुरक्षित स्थान पर पहुंच जाए, जैसे अंडरग्राउंड बंकर्स।

पहले विश्व युद्ध के दौरान इन सायरन का उपयोग नहीं किया गया था। हालांकि, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, हवाई हमलों की घोषणा पहले से ही की जा रही थी, और लोगों से शेल्टर या लंदन अंडरग्राउंड स्टेशनों में जाने का आग्रह किया गया था। इस प्रकार, जैसे-जैसे एविएशन इंडस्ट्री आगे विकसित हुई, वैसे-वैसे चेतावनी तंत्र भी विकसित हुए और 1938 और 1939 के बीच ब्रिटेन में विमान-रोधी सायरन की खोज की गई।

सितंबर 1939 में पहली बार हवाई हमले के दौरान सायरन द्वारा लंदन में चेतावनी दी गई थी। वे इलेक्ट्रॉनिक थे और दो तरह के सिग्नल देते थे- एक मोम और घटते चेतावनी संकेत और एक स्थिर स्वर जिसका अर्थ था कि लोग अपने छिपने के स्थान से बाहर आ सकते हैं। बाद में उन्हें पूर्वी और पश्चिमी दोनों ब्लॉकों में कोल्ड वॉर के तनाव के जवाब में लगभग हर जगह स्थापित किया गया था। 

चेतवानी के टोन 

अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग आवाज या टोन का इस्तेमाल किया जाता है- तो आइये जानते है कब किस टोन का इस्तेमाल किया जाता है -

1) पहली टोन : एक स्वर (स्थिर रुक-रुक कर) जो एक मिनट की अवधि के लिए जारी रहता है वो इस बात का संकेत है कि खतरा  जल्दी ही आने वाला है

2) दूसरा टोन: यह एक ऐसा स्वर है जो लहराती है और जो एक मिनट की अवधि तक रहता है और जो वास्तव में जोखिम के होने का संकेत देता है

3) तीसरा टोन : यह एक स्वर जो एक मिनट तक एक ही जैसा बजता है, यह दर्शाता है कि खतरा टल गया है।

 

 

Created On :   1 March 2022 5:31 PM IST

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