भारत को बलूचिस्तान का हर संभव समर्थन करना चाहिए : विशेषज्ञ
नई दिल्ली, 30 जून (आईएएनएस)। भारतीय थिंक-टैंक, द तिलक क्रॉनिकल (टीटीसी) और सेंटर फॉर एडवांस स्ट्रेटेजिक स्टडीज (सीएएसएस) ने बलूच लोगों के हालात पर चर्चा के लिए दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन बलूचिस्तान संवाद का आयोजन किया।
बलूच अवाम 1948 से ही पाकिस्तान से आजादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
बलूचिस्तान प्रांत खनिज संपदा का भंडार होने के बावजूद पाकिस्तान के सबसे गरीब और उपेक्षित प्रांतों में से एक है। बलूच समुदाय अपने राष्ट्रवादी संघर्ष के लिए वैश्विक सुर्खियों में बना हुआ है और माना जाता है कि यह दक्षिण एशिया में सबसे कम समझे जाने वाले समुदायों में से एक है।
चर्चा की शुरुआत करते हुए एयर मार्शल भूषण गोखले ने कहा कि बलूचिस्तान की खनिज संपदा के दोहन के लिए इस क्षेत्र में चीन ने पाकिस्तान से हाथ मिलाया है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में अधिक से अधिक चीनी बस रहे हैं और यहां अगले लगभग 25 वर्षों में चीनी लोगों की आबादी स्थानीय लोगों से अधिक हो जाएगी।
मेजर गौरव आर्य ने लोगों के प्रमुख लक्षणों में से एक की चर्चा करते हुए कहा, बलूच लोगों ने कभी पाकिस्तान को स्वीकार नहीं किया। इतिहास में बहुत कम लोगों के मानवाधिकारों का ऐसा हनन हुआ होगा जैसा बलूच लोगों का हुआ है, फिर भी उन्होंने अपने अधिकारों के लिए लगातार लड़ाई लड़ी है।
उन्होंने कहा कि बलूच लोग राष्ट्रवाद को धर्म से ऊंचे स्थान पर रखते हैं। उन्होंने भारत सरकार से स्वतंत्रता के लिए बलूच संघर्ष को राजनीतिक मान्यता देने का आग्रह किया।
लंदन में निर्वासन में रह रहे प्रसिद्ध बलूच राष्ट्रवादी नेता और फ्री बलूचिस्तान मूवमेंट के संस्थापक हिरबयाएर मैरी ने जोर देकर कहा कि उनके लोगों का पाकिस्तान के मुकाबले भारत के साथ घनिष्ठ संबंध है।
उन्होंने कहा, हम मुस्लिम हैं और हमें इस पर गर्व है। लेकिन, हमने दूसरे धर्म के खिलाफ अपने धर्म को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हम अपने विश्वास को भारत से हासिल करते हैं। बलूच लोगों के लिए धार्मिक पहचान से ज्यादा राष्ट्रीय पहचान मायने रखती है।
बलूचों को गर्व है कि उन्होंने पाकिस्तान में शामिल होने के निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया था। उन्होंने स्वतंत्रता के समय कभी भी पाकिस्तान में विलय के दस्तावेज को नहीं स्वीकार किया। साथ ही, उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भागीदारी पर गर्व है और वे अपनी सोच में खुद को पाकिस्तान के मुकाबले भारत के ज्यादा करीब पाते हैं।
निर्वासन में जीवन बिता रहे एक और बलूच नेता आरिफ आजकिया ने भी चर्चा में भाग लिया। वह पाकिस्तान और उसकी सेना के मुखर आलोचक हैं। दक्षिण एशियाई भू-राजनीति मामलों के विशेषज्ञ हैं। पाकिस्तान में रहने के दौरान वह जमशेद टाउन, कराची के मेयर भी बने थे।
आजकिया का मानना है कि भारत ने एक शक्ति होने के बावजूद बलूचिस्तान को उसके संघर्ष में पर्याप्त मदद नहीं की है।
उन्होंने कहा, हमारा भारतीयों के साथ कभी कोई विवाद नहीं रहा है, फिर भी देश ने (भारत ने) बलूच लोगों का समर्थन नहीं किया है। जब पाकिस्तान खुले तौर पर कश्मीर में लोगों को प्रशिक्षित कर सकता है और कह सकता है कि वह वहां के लोगों को धन और सहायता प्रदान कर रहा है, तो फिर भारत बलूचिस्तान के लोगों के लिए ऐसा क्यों नहीं कर सकता। भारत क्यों नहीं खुलकर कहता कि वह हमारा नैतिक समर्थन करता है।
बलूच नेताओं ने इस तथ्य पर जोर दिया कि उनके लोग भारत की तरह ही धर्मनिरपेक्ष अवधारणाओं के प्रति समर्पित हैं। लोग धर्म से अधिक अपनी भूमि से सांस्कृतिक पहचान लेते हैं। इसीलिए, बलूचिस्तान में सांप्रदायिक या धार्मिक संघर्ष नहीं है।
पूरी चर्चा में एक विचार पूरी तरह से उभरकर यह सामने आया कि भारत को बलूचिस्तान को राजनीतिक मान्यता देकर शुरुआत करनी चाहिए। इसके बाद वह वहां के लोगों को वित्तीय और राजनयिक सहायता देना शुरू कर सकता है।
(यह सामग्री इंडियानैरेटिव डॉट काम के साथ एक व्यवस्था के तहत प्रस्तुत की गई है)
Created On :   30 Jun 2020 10:00 PM IST