बलिदान दिवस : फौलादी इरादों और निडर फैसलों वाली शख्सियत थी इंदिरा
- इंदिरा को उनके ही सिख अंगरक्षकों ने गोलियों से छलनी करते हुए मौत के घाट उतार दिया था।
- इतिहास में 31 अक्टूबर की तारीख इंदिरा गांधी की हत्या के दिन के तौर पर दर्ज है।
- देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आज 34वीं पुण्यतिथि है।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आज 34वीं पुण्यतिथि है। इतिहास में 31 अक्टूबर की तारीख इंदिरा गांधी की हत्या के दिन के तौर पर दर्ज है। फौलादी इरादों और निडर फैसलों वाली देश की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री इंदिरा को इस दिन सुबह सवेरे उनके ही सिख अंगरक्षकों ने गोलियों से छलनी करते हुए मौत के घाट उतार दिया था। कांग्रेस के अनुसार बुधवार को इंदिरा के बलिदान दिवस पर यूपी और बिहार समेत देशभर में पार्टी के वर्कर कैंप लगाकर रक्तदान करेंगे।
कांग्रेस नेताओं के अनुसार हर जिले के सरकारी अस्पताल में पहुंचकर कांग्रेसी वर्कर्स जरूरतमंदों के लिए ब्लड डोनेट करेंगे। बिहार प्रदेश कांग्रेस के मीडिया प्रभारी एचके वर्मा ने बताया कि इस अवसर पर पटना जिला कांग्रेस सेवादल द्वारा सदाकत आश्रम में रक्तदान शिविर का भी आयोजन किया जायेगा। बता दें कि कांग्रेस इन दिनों होने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों की और लोकसभा 2019 की तैयारी में जुटी हुई है।
31 अक्टूबर 1984 का वो काला दिन
इंदिरा गांधी ने 1966 से 1977 के बीच लगातार तीन बार देश की बागडोर संभाली और उसके बाद 1980 में दोबारा इस पद पर पहुंचीं। इसके बाद 31 अक्टूबर 1984 का वो कालादिन भी आया, जब पद पर रहते हुए ही उनकी हत्या कर दी गई। 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद में जन्मीं इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी आकर्षक व्यक्तित्व वाली मृदुभाषी महिला थीं और अपने कड़े से कड़े फैसलों को पूरी निर्भयता से लागू करने का हुनर जानती थीं।
जब आई मौत की खबर
एक नवंबर 1984 को गौरीगंज के कौहार गांव में आयोजित कांग्रेस के बड़े कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित करने के लिए इंदिरा गांधी को आना था, लेकिन 31 को ही उनकी हत्या कर दी गई। नतीजन एक नवंबर को वे तो नहीं आई, लेकिन उनके आने से पहले उनके मौत की खबर आ गई। कांग्रेस जिलाध्यक्ष योगेंद्र मिश्र व वरिष्ठ साहित्यकार जगदीश पीयूष कहते हैं कि इंदिरा गांधी आधुनिक अमेठी की जननी हैं। उनका व्यक्तित्व अदभुत था।
आतंकियों से मुक्त कराया स्वर्ण मंदिर
प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा ने जून 1984 में अमृतसर में सिखों के पूजनीय स्थल स्वर्ण मंदिर से आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए सैन्य कार्रवाई को अंजाम दिया था। इसके अलावा 1975 में आपातकाल की घोषणा और उसके बाद के घटनाक्रम को भी उनके एक कठोर फैसले के तौर पर देखा जाता है।
शिवभक्त थीं इंदिरा
इंदिरा गांधी के बारे में बता दें कि वह भगवान शिव की अनन्य भक्त थीं। आज इंदिरा के पौते और वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की शिवभक्ति सियासी गलियारों में चर्चा में है। मगर बता दें कि राहुल अपनी ही दादी की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। हाल ही में राहुल ने उज्जैन पहुंचकर महाकाल भगवान के दर्शन कर पूजा-पाठ किया। इससे पहले महाकाल के दर्शन इंदिरा गांधी से लेकर, राजीव गांधी और सोनिया गांधी भी कर चुके हैं। राहुल गांधी की दादी और देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दिसंबर 1979 में सत्ता में लौटने से पहले महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन किए थे।
फिरोज ने इंदिरा को कहा फासीवादी
इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी अभिव्यक्ति की आज़ादी के बड़े समर्थक थे। यही कारण था कि एक दिन फिरोज गांधी, इंदिरा गांधी और जवाहर लाल नेहरू आनंद भवन में खाना खाने के लिए बैठे हुए थे। इसी दौरान मेज पर खाना खाते समय केरल में तख्ता पलट की बात उठी तो फिरोज ने इंदिरा को फासीवादी कह दिया था। इसके बाद भी एक स्पीच में इंदिरा ने लगभग आपातकाल के संकेत दे दिए थे।
संसद में इंदिरा ने कभी नहीं की फिरोज की तारीफ
इंदिरा और फिरोज के रिश्ते का एक कड़वा सच ये भी है कि अपने ससुर जवाहर लाल नेहरू के साथ फिरोज की बिल्कुल भी नहीं बनती थी। जवाहरलाल नेहरू अपने दामाद फिरोज से खुश नहीं थे, शायद यही कारण है कि इंदिरा गांधी ने भी कभी संसद में फिरोज के महत्वपूर्ण काम की तारीफ नहीं की। फिरोज गांधी की मौत के 15 साल बाद इंदिरा ने आपातकाल की घोषणा की और अपने पति के बनाए प्रेस लॉ को एक तरह से कचरे के डिब्बे में फेंक दिया।
रामलीला मैदान से की थी चुनाव अभियान की शुरुआत
इंदिरा गांधी ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत 5 फ़रवरी, 1977 को दिल्ली के रामलीला मैदान से की थी। अपने हार्ड हिटिंग भाषण में इंदिरा गांधी ने जनता पार्टी को खिचड़ी कह कर उसका मज़ाक उड़ाया था। एक समय ऐसा भी आया था जब बीच भाषण में सामने बैठी कुछ औरतें उठकर जाने लगी थीं। सेवा दल के कार्यकर्ता उन्हें दोबारा बैठाने के लिए अपना पूरा ज़ोर लगा रहे थे। इससे पहले आयोजकों ने भीड़ जमा करने के लिए अपना सारा ज़ोर लगा दिया था। स्कूल अध्यापकों, दिल्ली नगर निगम के कर्मचारियों और मज़दूरों को बसों में भर भर कर रामलीला मैदान पहुंचाया गया था।
इंदिरा गांधी से बांग्लादेश को आजादी
इंदिरा गांधी वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत गणराज्य की प्रधानमंत्री रहीं। भारत की पाकिस्तान पर इस ऐतिहासिक जीत भी उन्हीं के शासनकाल में प्राप्त हुई थी। इस जीत को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत ने 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। इस रक्तरंजित युद्ध को जीतने के बाद इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश को पाकिस्तान से स्वाधीनता प्राप्त कराई थी। बांग्लादेश का स्वतंत्रता संग्राम 1971 में हुआ था, इसे "मुक्ति संग्राम" भी कहते हैं।
अपातकाल
इंदिरा गांधी ने 1975 से 1977 तक राज्यों में आपातकाल की स्थिति घोषित की और सभी राज्यों में इसे लागू करने का भी आदेश दिया। 26 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था। तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था।
Created On :   31 Oct 2018 12:09 AM IST