हत्या, दुष्कर्म के कारण भी है दिल्ली अपराध की राजधानी! (आईएएनएस एक्सक्लूसिव)
नई दिल्ली, 25 नवंबर (आईएएनएस)। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों में भले ही ईएफआईआर (चोरी वाहन चोरी की ऑन लाइन फ्री एफआईआर) के चलते देश के मेट्रो शहरों में सन 2017 में दिल्ली क्राइम-कैपिटल बनी है, लेकिन वर्ष 2018 के 15 नवंबर तक के आंकड़े और 2019 के 15 नवंबर तक के आंकड़े अलग ही कहानी बयान कर रहे हैं।
आईएएनएस के हाथ लगे चौंकाने वाले आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2018 में 15 नवंबर तक, और फिर 2019 में 15 नवंबर तक राजधानी में अपराध बेतहाशा बढ़े हैं। और इसकी वजह चोरी और वाहन चोरी के मामलों में ई-एफआईआर नहीं, बल्कि हत्या और दुष्कर्म जैसे संगीन अपराधों की श्रेणी में दर्ज हुए मामले भी हैं।
हाल ही में एनसीआरबी द्वारा जारी महानगरों के तुलनात्मक आंकड़ों के हिसाब-किताब से सन 2017 में दिल्ली को जब पहले पायदान पर रखकर इसे क्राइम-कैपिटल घोषित कर दिया गया, तो दिल्ली पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक को अपनी कुर्सी खिसकती नजर आने लगी थी। आनन-फानन में उन्होंने खुद की कुर्सी की खैरियत के वास्ते संसद में उठाए गए एक सवाल के जबाब में दाखिल कराया, एनसीआरबी 2017 में जिन सर्वाधिक बढ़ी हुई एफआईआर के आधार पर महानगरों में दिल्ली को पहले नंबर पर घोषित किया गया है, दरअसल उसकी वजह फ्री ई-एफआईआर रजिस्ट्रेशन है। इन फ्री ई-एफआईआर में सर्वाधिक संख्या चोरी और वाहन चोरी की है, जो दिल्ली वाले घर बैठे दर्ज कर लेते हैं।
दिल्ली में खाकी की खाक में मिलती इज्जत को बचाने के लिए दिए गए पुलिस आयुक्त पटनायक के इस दावे की फिलहाल हवा निकल गई है। आईएएनएस के हाथ लगे 2018-2019 (नवंबर तक) के तुलनात्मक आंकड़े एक बार फिर दिल्ली पुलिस के तमाम इंतजामों को धता साबित कर रहे हैं। इसमें चोरी/वाहन चोरी की ई-एफआईआर का भी कोई झमेला नहीं हैं।
दिल्ली पुलिस के ही आंकड़ों के मुताबिक, साल 2019 में नवंबर महीने तक (15 नवंबर तक) अकेले हत्या के 459 मामले दर्ज हो चुके हैं। जबकि 2018 में इसी अवधि के दौरान यानी 115 नवंबर तक हत्या के दर्ज मामलों की संख्या 439 थी। यानी 2018 की तुलना में 2019 में नवंबर तक दर्ज मामलों के लिहाज से दिल्ली में हत्या की वारदातों में लगभग पांच फीसदी का इजाफा हुआ है।
कमोबेश यही बदतर और डरावना आलम देश की राजधानी दिल्ली में दुष्कर्म की भी घटनाओं का है। सन 2018 में 15 नवंबर तक राजधानी में जहां दुष्कर्म के 1921 केस दर्ज हुए थे, वहीं 2019 में 15 नवंबर तक यह संख्या बढ़कर 1947 हो गई। गंभीर बात यह है कि अब इन दोनों ही संवेदनशील मदों में दर्ज मामलों को लेकर पुलिस आयुक्त (दिल्ली पुलिस) की बोलती बंद है। क्योंकि दोनों ही मामलों में ई-एफआईआर नहीं होती है। हत्या और दुष्कर्म दोनों ही जघन्य (हीनियस) अपराध की श्रेणी में शुमार होते हैं। दिल्ली पुलिस आयुक्त के सामने अब सवाल मुंह बाये खड़ा है कि इन आंकड़ों से क्राइम-कैपिटल साबित होती दिल्ली को कैसे बचाएं? क्या बहाना बनाएं?
आईएएनएस के हाथ लगे दिल्ली पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल 15 जुलाई, 2019 तक राजधानी में हत्या के 283 मामले दर्ज किए गए थे। जबकि इस समयावधि में सन् 2018 में हत्या के सिर्फ 250 केस दिल्ली में दर्ज हुए थे। यानी इन आंकड़ों के नजरिये से दिल्ली में 2018 की तुलना में हत्या के मामलों में करीब 13 फीसदी की वृद्धि हुई है।
ऐसा नहीं है कि राष्ट्रीय राजधानी में हत्या के मामलों में ही इजाफा हो रहा है। दिल्ली में हत्या के मामलों को खोलने में भी दिल्ली पुलिस बुरी तरह फिसड्डी साबित हो रही है। इसका सबसे मजबूत उदाहरण है, दो-तीन महीने पहले पूर्वी दिल्ली जिले के मधु विहार थाने में शनि मंदिर के पास 55 साल की महिला की हत्या का अनसुलझा मामला।
मोटरसाइकिल सवार दो बदमाशों ने 16 सितंबर को दिन-दहाड़े उषा देवी नामक महिला की कार के अंदर ही गोली मारकर हत्या कर दी थी। सीसीटीवी फूटेज में हत्यारे साफ-साफ दिखाई भी पड़ रहे हैं। दिन-दहाड़े हत्या की इस वारदात को पूर्वी दिल्ली जिले के पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) जसमीत सिंह के दफ्तर के बिलकुल करीब ही अंजाम दिया गया था। इस मामले का अबतक खुलासा नहीं हो पाया है। इस विफलता के लिए किसी पुलिस अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई भी नहीं की गई है।
हत्या की ताबड़तोड़ हो रही वारदातों का पदार्फाश न कर पाने के बारे मे नाम न छापने की शर्त पर एक आला पुलिस अधिकारी ने कहा, हां, मर्डर खुल तो नहीं पा रहे हैं। मगर हम लोग हथियार तो आए दिन पकड़ रहे हैं। पता नहीं क्यों इतनी बड़ी संख्या में हथियार जब्त करने के बाद भी दिल्ली में मर्डर ग्राफ लगातार ऊपर जा रहा है।
अंत में अब अगर वाहन चोरी की घटनाओं पर नजर डालें, तो वह भी दिल्ली पुलिस को उसकी अपनी नजरों में ही गिराने के लिए काफी है। मगर शायद ही दिल्ली पुलिस पर इन बढ़ते आपराधिक मामलों का कोई असर नजर आए। दिल्ली पुलिस की छीछालेदर करा रहे उसी के आंकड़ों के मुताबिक, बीते साल 15 नवंबर तक दिल्ली में वाहन चोरी के करीब 40 हजार 73 मामले दर्ज हुए थे। जबकि इस साल 15 नवंबर, 2019 तक यह आंकड़ा बढ़कर 40 हजार 736 पर पहुंच गया।
मतलब साफ है कि दिल्ली में क्राइम ग्राफ बढ़ रहा है, जबकि वारदातों का पदार्फाश करने का प्रतिशत दिन-ब-दिन घट रहा है। ऐसे में अगर दिल्ली को आम नागरिक दिल्ली पुलिस के ही आपराधिक आंकड़ों के आधार पर क्राइम कैपिटल कह रही है तो फिर दिल्ली पुलिस को इसमें भला मुंह चिढ़ाने की भी क्या जरूरत?
Created On :   25 Nov 2019 5:00 PM IST