निजता मानव गरिमा का संवैधानिक अधिकार : सुप्रीम कोर्ट

Privacy is constitutional core of human dignity  : Supreme Court
निजता मानव गरिमा का संवैधानिक अधिकार : सुप्रीम कोर्ट
निजता मानव गरिमा का संवैधानिक अधिकार : सुप्रीम कोर्ट

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकारों का दर्जा देते हुए गुरुवार को अपने ऐतिहासिक फैसले में इसे मानव गरिमा का संवैधानिक अधिकार मानते हुए संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए जीवन की गारंटी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों से जोड़ा है। आइये जानते हैं कोर्ट ने इस अहम मुद्दे पर अपने फैसले में क्या कहा और इसे किस तरह से परिभाषित किया।

1. निजता किसी व्यक्ति विशेष की स्वतंत्रता और जीवन के प्रमुख आयामों को नियंत्रित करने की क्षमता को संरक्षित करती है। "अनुच्छेद 21 में दिए गए अन्य मौलिक अधिकारों के समान ही निजता का अधिकार भी एक पूर्ण अधिकार है।" 

2.मौजूदा डिजिटल युग में शासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि लोगों की निजी जानकारी पर देश और देश के बाहर की ताकतों का दखल न हो और न ही किसी व्यक्ति को कोई खतरा पैदा हो। "हम केन्द्र सरकार से ऐसे किसी भी संभावित खतरे का परीक्षण कर जानकारियों की सुरक्षा के लिए एक व्यापक व्यवस्था बनाने की आशा करते हैं।"

3. ऐसी किसी भी व्यवस्था को बेहद सावधानी और संवेदनशील तरीके से व्यक्ति के हितों और देश की वाजिब चिंताओं के हिसाब से संतुलन किया जाना चाहिए। "देश की वाजिब चिंता में राष्ट्रीय सुरक्षा, किसी अपराध की रोकथाम या जांच, नवाचार को बढ़ावा देने या ज्ञान के प्रसार अथवा सामाजिक कल्याण योजनाओं के लाभ से वंचित करने जैसे बिंदु शामिल हो सकते हैं।"

4. लगातार हो रहे तकनीकी बदलाव ने आज जितनी चिंताएं पैदा की है, उतनी सात दशक पहले नहीं थी। ऐसे में देश के युवा और किशोर उम्र के नागरिकों को वर्तमान से जोड़ना जरूरी है ताकि उनमें गलतफहमी पैदा न हो। इसलिए संविधान को परिभाषित करते समय इतनी फ्लेक्सिबिलिटी होनी चाहिए ताकि भावी पीढ़ि के दिमाग में इसके मूल और आवश्यक बिंदु बने रहें।

5. अनुच्छेद-21 के संदर्भ में किसी की निजता पर अतिक्रमण तभी कानूनी रूप से जायज ठहराया जा सकता है जब इससे जुड़ी प्रक्रिया बराबरी पूर्ण, ईमानदार और वाजिब हो। "अनुच्छेद-21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अतिक्रमण करने वाला कोई भी कानून संविधान के मुताबिक मान्य होना चाहिए।"

6. जीवन बेशकिमती है लेकिन इसे तभी जिया जा सकता है जब हर व्यक्ति को उसकी पसंद के मुताबिक जीवन जीने की आजादी हो। किसी के लिए जिंदगी जीने का सबसे अच्छा फैसला लेने का अधिकार उसी व्यक्ति पर छोड़ देना चाहिए। ऐसे सभी मामलों में सरकार की जिम्मेदारी फैसला लेने में व्यक्ति की क्षमता को संरक्षित करने, व्यक्ति की स्वतंत्रता के संरक्षण पर केन्द्रित हो, इसमें किसी तरीके का दबाव न डाला जाए।

Created On :   24 Aug 2017 2:05 PM GMT

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