युद्ध, संघ और सेना : मोहन भागवत के बचाव में आईं सुमित्रा महाजन, कहा- भाव को समझें
डिजिटल डेस्क, नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत द्वारा पिछले दिनों भारतीय सेना की तुलना में युद्ध के लिए स्वयंसेवकों के जल्दी तैयार होने वाले बयान पर खूब बवाल मचा था। अब लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने इसे लेकर मीडिया को कटघरे में खड़ा किया। भागवत के बयान का बचाव करते हुए उन्होंने कहा है, "मीडिया बेवजह बातों को तूल देता है। बड़ी लड़ाई की बात आती है तो हम मदद करेंगे। चिंता करने की बात नहीं है। ये कहने के भाव थे। लेकिन संवाद माध्यमों ने बेवजह बवाल मचा दिया।" महाजन ने कहा, "वे देश की भावना को ध्यान में रखकर बोल रहे थे। उसका महत्व देखे और समझे।"
स्वातंत्र्यवीर सावरकर स्मारक समिति नागपुर के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को विदर्भ साहित्य संघ में दो दिवसीय स्वातंत्र्यवीर सावरकर साहित्य सम्मलेन का आयोजन किया गया था। सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर वे बोल रही थी। मंच पर प्रमुख अतिथि के रुप में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितीन गडकरी, केंद्रीय गृहराज्यमंत्री हंसराज अहीर उपस्थित थे।
हिंदुत्ववादी संगठनों पर स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान पर उठ रहे सवालों पर लोकसभा अध्यक्ष महाजन ने कहा, "एक बात ध्यान में रखना जरूरी है। कुछ संगठन लगातार आपत्ति जताते है कि आपने स्वतंत्रता आंदोलन में क्या किया। उस समय किसने क्या किया और अब कौन क्या कर रहा, इस पर बोलने का कोई अर्थ नहीं है।" उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने किसी गुप्त आंदोलन में भाग नहीं लिया था। उनका एक ही मकसद था। भारत को स्वतंत्रता दिलाना। अगर सावरकर 1947 के बाद जन्म लेते तो वे उत्कृष्ट साहित्यकार बनते। लेकिन उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के साथ साहित्य की रचना भी की।
महाजन ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा ही हमारा साहित्य होना चाहिए। यहीं आद्य चिंतन होना चाहिए। राष्ट्र का हित सर्वोपरी है। सावरकर ने अपने साहित्य में एक देव, एक देश, एक जीव, एक भाषा को महत्व दिया। उन्होंने आजीवन राष्ट्र और राष्ट्रहित का विचार किया। राष्ट्रहित ही उनकी भाषा थी। उनके इन विचारों को आत्मसाथ कर नई पीढ़ी ने देशाभिमान अपनाना चाहिए।
केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितीन गडकरी ने इस दौरान कहा कि सावरकर चाहते थे कि हिंदू समाज सांप्रदायिकता और जातिवाद से मुक्त विज्ञान के आधार पर आगे बढ़े। सावरकर ने बहुत त्याग किया। उनके परिवार ने भी अपना सर्वस्व अर्पण किया, लेकिन अपने अंतिम दिनों में उन्हें खूब प्रताड़ना सहनी पड़ी। महात्मा गांधी की तरह ही सावरकर का आंदोलन भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, "दुनिया में दो तरह का संघर्ष चल रहा है। सहिष्णु-असहिष्णु और दूसरी ओर आंतकवाद। अमेरिका भी इससे पीड़ित है। हिंदू संस्कृति सबको आत्मसात करने का काम करती है। हिंदुत्व ही राष्ट्रीयत्व है। किन्तु 1947 के बाद से हिंदुत्व को संकुचित मानसिकता से देखा गया। उस पर सवाल उठते रहे। इसलिए सावरकर और हिंदू विचारों के खिलाफ गैरसमझ फैलाने वालों को सफलता मिली। अगर कोई धर्म से अलग हटकर अपने विचार रखता है तो उसे नष्ट करने की जरूरत है। भिन्न-भिन्न विचारों को अपने में शामिल करना होगा। अपने विचार ही नहीं, सबके विचार श्रेष्ठ मानकर अपनाने की जरूरत है।"
Created On :   24 Feb 2018 10:48 PM IST