Resignation: अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी का हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से इस्तीफा, अलग होने की यह है असली वजह

Syed Ali Shah Geelani resigns from All Party Hurriyat Conference
Resignation: अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी का हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से इस्तीफा, अलग होने की यह है असली वजह
Resignation: अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी का हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से इस्तीफा, अलग होने की यह है असली वजह

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वरिष्ठ हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी ने सोमवार को ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (APHC) से इस्तीफा दे दिया। एक प्रेस स्टेटमेंट में गिलानी ने इसकी घोषणा की। गिलानी ने हुर्रियत सदस्यों को एक विस्तृत पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने कहा, हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के भीतर वर्तमान स्थिति को देखते हुए, वह इस प्लेटफॉर्म से खुद को पूरी तरह से अलग कर रहे हैं। गिलानी ने कहा कि इसके बाद वह प्लेटफॉर्म के सदस्यों के भविष्य के आचरण के बारे में किसी भी तरह से जवाबदेह नहीं होंगे। हालांकि गिलानी के इस्तीफे की वजह कुछ और बताई जा रही है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू कश्मीर से अनुच्छेध 370 हटाने के बाद पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी उनसे कश्मीर में अशांति करवाना चाहती थी लेकिन गिलानी फेल रहे और आईएसआई के दवाब में उन्हें अलगाववादी संगठन ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस छोड़ना पड़ा।

क्या कहा गिलानी ने?
गिलानी ने कहा, हाउस अरेस्ट के दौरान उन्होंने APHC के सदस्यों से संपर्क करने की पूरी कोशिश की, जिन्हें 5 अगस्त के बाद गिरफ्तार नहीं किया गया था, लेकिन किसी ने भी जवाब नहीं दिया। गिलानी ने कहा, APHC के सभी मेंबर अपना निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। उन्होंने कहा, बुढ़ापे और शारीरिक कमजोरी ने न तो मेरी स्पिरिट कम हुई है और न ही मेरी मानसिक क्षमताएं। जब तक मैं मर नहीं जाता, तब तक मैं हमेशा अपने लोगों का मार्गदर्शन करता रहूंगा। सैयद अब्दुल्ला गिलानी, पाकिस्तान और अन्य देशों में मेरे प्रतिनिधि बने रहेंगे।  गिलानी ने कहा, मैं उन लोगों का शुक्रगुजार हूं जिन्होंने मुझे अपने जीवन के अंतिम छोर पर एक महत्वपूर्ण निर्णय लेने में मदद की। अगर मैंने कोई गलती की है, या मेरे शब्दों या कर्मों से किसी को चोट पहुंचाई है, तो मैं माफी मांगता हूं।

9 मार्च 1993 को हुआ था हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गठन
हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गठन 9 मार्च, 1993 को कश्मीर में अलगाववादी दलों के एकजुट राजनीतिक मंच के रूप में किया गया था। सैय्यद अली शाह गिलानी का इसमें अहम रोल था। गिलानी के अलावा मीरवाइज उमर फारूक, अब्दुल गनी लोन, मौलवी अब्बास अंसारी और अब्दुल गनी भट्ट भी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की स्थापना में अहम सदस्य थे। कॉन्फ्रेंस के पहले चेयरमैन मीरवाइज उमर फारूक थे जबकि 1997 में इस पद पर सैय्यद अली शाह गिलानी काबिज हुए थे। इसके गठन के करीब दस साल बाद, यह संगठन दो हिस्सों में बंट गया। मीरवाइज के गुट को मॉडरेट हुर्रियत कॉन्फ्रेंस कहा जाने लगा, जबकि दूसरी तरफ गिलानी के संगठन को हार्डलाइन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस या तहरीक-ए-हुर्रियत) के रूप में पहचाना जाने लगा।

2004 में हुई थी ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की स्थापना
जिस हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन पद पर गिलाने थे, उसकी स्थापना 7 अगस्त 2004 को हुई थी। पाकिस्तान से खुफिया रिश्तों के लिए गिलानी को जेल हो चुकी है। 1972 में गिलानी ने जमात-ए इस्लामी जम्मू-कश्मीर के टिकट पर विधानसभा का चुनाव जीता था। अभी गिलानी की उम्र 90 साल है। उनकी सेहत पिछले कुछ महीनों से ठीक नहीं चल रही। कहा जाता है कि उन्हें हार्ट, किडनी और लंग्स में दिक्कत है। फरवरी में उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती किया गया था। कई बार उनकी तबीयत को लेकर अफवाहें भी उड़ाई गई थीं। गिलानी लंबे समय से अपने घर में ही नजरबंद हैं।

Created On :   29 Jun 2020 11:25 AM GMT

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