सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट: अब तक क्यों अटका रहा CAA, किसे फायदा- किसे नुकसान, कैसे मिलेगी नागरिकता, CAA से जुड़ी हर वो बात जो आप जानना चाहते हैं

अब तक क्यों अटका रहा CAA, किसे फायदा- किसे नुकसान, कैसे मिलेगी नागरिकता, CAA से जुड़ी हर वो बात जो आप जानना चाहते हैं
  • देशभर में सीएए हुआ लागू
  • सोमवार को गृह मंत्रालय ने जारी किया सीएए नोटिफिकेशन
  • केंद्र सरकार ने सीएए को लेकर लिया ऐतिहासिक फैसला

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देशभर में CAA लागू हो गया है। गृह मंत्रालय की ओर से इसे लेकर नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया गया है। भारत में नागरिकता संशोधन अधिनियम 5 साल पहले ही दोनों सदनों से पारित हो गया था। लेकिन यह अभी तक इस कानून को लेकर मामला अटका रहा। हालांकि, आज सरकार ने इस कानून को लेकर फाइनल मुहर लगा दी। साल 2019 में सीएए पारित होने के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन देखने को मिला था। विशेषकर पूर्वोत्तर के राज्यों में सीएए का सबसे ज्यादा विरोध देखने को मिला था। पूर्वोत्तर के सात राज्य सीएए कानून से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए थे। वहां तोड़फोड़ की कारण करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हुआ था। हालांकि, अब चर्चाएं इस बात को लेकर हो रही है कि CAA बहुत पहले लागू होने के बाद भी यह इतने समय तक क्यों अटका रहा।

क्या है सीएए?

सबसे पहले हम सीएए के बारे जानते हैं। सीएए जिसे सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट और नागरिकता संशोधन अधिनियम के रूप में जाना जाता है। यह कानून मुख्य रूप से गैर मुस्लिम देशों में प्रताड़ित होकर भारत आने वाले नागरिकों को भारत की नागरिकता प्रदान करेगा। इस कानून के लागू होने से भारत के तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए उन लोगों को भारत की नागरिकता मिलेगी, जो दिसंबर 2014 तक अपने देशों में किसी न किसी प्रताड़ना का शिकार होकर भारत आ गए हैं। इन लोगों में गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक – हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शामिल हैं।

2016 में लोकसभा में पारित हुआ बिल, राज्यसभा में अटका

साल 2016 में सबसे पहले लोकसभा में सीएए को लेकर बिल पेश किया गया था। यह बिल लोकसभा से पारित भी हो गया था। लेकिन राज्यसभा में जाकर यह बिल अटक गया था। आगे चलकर इस बिल को संसदीय समिति को सौंप दिया गया। फिर साल 2019 का लोकसभा चुनाव आ गया जिसमें एक बार फिर भाजपा सरकार जीत गई। दिसंबर 2019 में सीएए के बिल को लोकसभा में एक बार फिर पेश किया गया। हालांकि इस बार यह बिल लोकसभा और राज्यसभा, दोनों सदनों से पारित हो गया। 10 जनवरी 2020 को इस बिल पर राष्ट्रपति की मुहर भी लग गई। इसके बाद राजधानी दिल्ली में कई लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। इसके अलावा उस वक्त कोविड के चलते इसे लागू करने में देरी हुई।

अब लागू हो गया सीएए

साल 2020 से लगातार किसी न किसी वजह से सीएए को एक्सटेंड किया जाता रहा। असल में संसदीय प्रक्रियाओं की नियमावली के अनुसार किसी भी कानून के नियम राष्ट्रपति की मंजूरी के 6 माह के अंदर तैयार किया जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हो पाता है तो लोकसभा और राज्यसभा के तहत आने वाली विधान समितियों से विस्तार की मांग की जा सकती है। नागरिकता कानून के संबंध में 2020 से गृह मंत्रालय नियम बनाने के लिए संसदीय समितियों से लगातार नियमित अंतराल में एक्सटेंशन ले रहा था।

सीएए में नागरिकता मिलने के प्रावधान

1. केंद्र सरकार के पास ही नागरिकता देने का पूरा अधिकार रहेगा।

2. पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर मुस्लिम लोगों को ही भारत की नागरिकता दी जाएगी। इसमें हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी धर्म के लोगों शामिल होंगे।

3. केवल उन लोगों को ही भारत की नागरिकता मिल पाएगी जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आकर बस गए हैं।

4. सीएए के अनुसार जो लोग अवैध रूप से, बिना पासपोर्ट या वीजा के घुस आए हैं उन्हें अवैध प्रवासी माना गया है।

5. जो लोग वैध दस्तावेज के साथ आए हैं मगर तय अवधि से अधिक वक्त तक भारत में रुके हुए हैं, उन्हें भी अवैध प्रवासी माना गया है।

कैसे होगी आवेदन की प्रक्रिया?

1. सीएए में नागरिता की प्रक्रिया ऑनलाइन होगी। जिसके लिए ई-पोर्टल भी बनाया गया है।

2. नागरिकता के लिए आवेदकों को वह साल बताना होगा जब उन्होंने दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया था।

3. आवेदकों से किसी भी तरह का कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा। नागरिकता से संबंधित जितने भी ऐसे मामले पेंडिंग हैं वह सब ऑनलाइन कन्वर्ट कर दिए जाएंगे।

4. नागरिकता के लिए जो पात्र हैं उन्हें सिर्फ पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन करना होगा। उसके बाद आगे की प्रक्रिया में गृह मंत्रालय उसकी जांच करेगा और फिर भारत की नागरिकता जारी करेगा।

क्या है विरोध का कारण?

1. सीएए को लेकर विपक्ष लगातार विरोध करता रहा है। विपक्ष के अनुसार इस कानून से मुस्लिम समुदाय को टारगेट किया जा रहा है। उन्हें इस बात की चिंता है कि इस कानून से मुसलमानों को जानबूझकर अवैध घोषित किया जा सकता है और बाकियों को बिना दस्तावेज के भी जगह मिल सकती है। विपक्ष का तर्क है कि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो समानता का अधिकार सुनिश्चित करता है।

2. पूर्वोत्तर के पास सीएए विरोध की एक दूसरी वजह है। उन्हें लगता है कि अगर बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता मिलती है, तो उनके राज्य के संसाधन बंट जाएंगे। एक बड़े वर्ग का यह भी मानना है पूर्वोत्तर के मूल रहवासियों के सामने अपनी पहचान और अजीविका का संकट पैदा हो जाएगा।

3. भारत के पूर्वोत्तर में बसे आदिवासी लोग सीएए के विरोध में हैं। इन राज्यों में असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, त्रिपुरा और नागालैंड शामिल हैं।

नॉर्थ ईस्ट में क्यों बसे शरणार्थी?

भारत में पूर्वोत्तर के राज्य इस समय अल्पसंख्यक बंगाली हिंदुओं का गढ़ बन चुके हैं। इसका कारण भी सामने आया है। असल में पाकिस्तान के पूर्वी क्षेत्र में बड़ी तादाद में बंगाली भाषी लोग बसे हुए थे, जो लगातार हिंसा का शिकार हो रहे थे। वहां युद्ध हुआ और वह क्षेत्र पाकिस्तान से आजाद होकर और बांग्लादेश नाम से अलग बन गया। पर कुछ ही समय बाद बांग्लादेश में भी हिंदुओं पर अत्याचार होने लगे।

पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू अल्पसंख्यक अत्याचार से परेशान होकर भारत आकर रहने लगे और यहीं बस गए। वैसे तो इन लोगों को भारत के अलग-अलग राज्यों में बसाया जा रहा था। पर नॉर्थ-ईस्ट का कल्चर इन्हें ज्यादा रास आया। तभी से यह लोग यहां बसने लगे। पूर्वोत्तर राज्यों में बसने की एक यह वजह भी हो सकती है कि इन राज्यों के बॉर्डर बांग्लादेश से सटे हुए हैं।

क्या बदलाव होगा?

सीएए से जो सबसे बड़ा बदलाव होगा वह पुराने नागरिकता के कानून के संशोधन पर होगा। अभी तक भारत में नागरिकता पाने के लिए भारत में 11 साल तक रहना जरूरी। लेकिन जो नागरिकता संशोधित कानून होगा उसमें यह अवधि कम कर 6 साल कर दी गई है। मेघालय में आम तौर पर तो गारो और जैंतिया जैसे आदिवासी समुदाय मूल निवासी हैं। पर बांग्लादेशी अल्पसंख्यकों के आने के बाद से वहां के मूल आदिवासी पीछे रह गए हैं। इसी प्रकार त्रिपुरा में बोरोक समुदाय मूल निवासी हैं। लेकिन वहां भी बांग्ला शरणार्थी भर चुके हैं।

इन राज्यों में सरकारी नौकरियों में बड़े पद भी उनके पास चले गए हैं। और अभी अगर सीएए लागू किया जाता है तो मूल निवासियों का प्रतिनिधित्व इन राज्यों से पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। दूसरे देशों के अल्पसंख्यक उनके संसाधनों पर कब्जा कर लेंगे। इसी डर के कारण पूर्वोत्तर के लोग सीएए का जमकर विरोध कर रहें हैं। असम में अभी 20 लाख से अधिक बांग्लादेशी अल्पसंख्यक अवैध रूप से रह रहे हैं. यह दावा वर्ष 2019 में असम के स्थानीय संगठन कृषक मुक्ति संग्राम कमेटी ने किया था। ऐसे ही हालात बाकी के पूर्वोत्तर राज्यों के भी हैं।

भाजपा के एजेंडे में शामिल है नागरिकता कानून?

पिछले वर्ष दिसंबर 2023 में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि भाजपा की केंद्र सरकार सीएए लागू करेगी और इसे कोई नहीं रोक सकता है। अमित शाह का यह बयान टीएमसी सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर निशाना माना गया था। ममता बनर्जी शुरुआत से ही सीएए का खूब विरोध करती रही हैं। अमित शाह ने घुसपैठ, भ्रष्टाचार, राजनीतिक हिंसा और तुष्टीकरण जैसे मुद्दों पर भी ममता बनर्जी को घेरा था। उस वक्त उन्होंने पश्चिम बंगाल की जनता से ममता की सरकार को हटाने और 2026 विधानसभा चुनाव में भाजपा को चुनने का आग्रह भी किया था। भाजपा ने पश्चिम बंगाल के पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में सीएए को एक प्रमुख मुद्दा भी बनाया था। साथ ही, 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने मैनिफेस्टो में CAA को लागू करने की बात कही थी। जिसे अब बीजेपी सरकार ने पूरा कर दिया है।



Created On :   11 March 2024 1:40 PM GMT

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