''द सब्सटेंस एंड द शैडो'' में समाए हैं दिलीप कुमार और राज कपूर की दोस्ती के किस्से

#happyfreindshipday When Raj Kapoor dares Dilip Kumars friendship with girls
''द सब्सटेंस एंड द शैडो'' में समाए हैं दिलीप कुमार और राज कपूर की दोस्ती के किस्से
''द सब्सटेंस एंड द शैडो'' में समाए हैं दिलीप कुमार और राज कपूर की दोस्ती के किस्से

डिजिटल डेस्क,भोपाल। बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता दिलीप कुमार की तबीयत इन दिनों खराब चल रही है और वो मुंबई के लीलावती अस्पाल में भर्ती हैं, हालांकि फिलहाल उनकी हालत में सुधार है। दिलीप साहब एक ऐसे अभिनेता हैं जिन्हें उनकी अदाकरी के लिए हमेशा याद किया जाता रहा है, लेकिन आज (रविवार 6 अगस्त) को हम फ्रेंडशिप-डे पर उनकी दोस्ती की दास्तान के बारे में बात करेंगे। वैसे तो बॉलीवुड में दोस्ती कम ही देखने मिलती हैं। लेकिन जैसे पुराने एक्टर्स ने एक्टिंग के बेंच मार्क सेट किए हैं ठीक वैसे ही दाेस्ती के भी बेंज मार्क सेट किए हैं और अगर फिल्मी जगत में दोस्ती का सही उदाहरण देखना हो तो वो दिलीप साहब और राज कपूर का ही होगा...

राज कपूर और दिलीप कुमार ने साथ में केवल एक फिल्म "अंदाज़" में काम किया था। उन्हें एक दूसरे का प्रतिद्वंदी भी माना जाने लगा था, लेकिन ऐसा था नहीं, उनकी दोस्ती बहुत गहरी थी। दिलीप और राज एक दूसरे के बचपन दोस्त थे और ये दोस्ती मुंबई आने पर भी बदस्तूर जारी रही। 

अपनी दोस्ती का जिक्र दिलीप कुमार ने अपनी आत्म-कथा ‘दिलीप कुमार – द सब्सटेंस एंड द शैडो’ (The substance and shadow) में इन किस्सों को दर्ज करते हुए लिखा है "मैं ये किस्से इसलिए इतनी तफसील से बयान कर रहा हूं क्योंकि हमारे चाहनेवालों को ये पता चल सके कि हमारे बीच कैसे रिश्ते थे। क्योंकि अक्सर लोगों को ये लगता रहा कि मेरे और राज के बीच एक किस्म की पेशेवर प्रतिद्वंद्विता थी।"

दोनों के बीच थी खानदानी दोस्ती 

दिलीप कुमार का जन्म 1922 में हुआ और 1930 में उनका परिवार मुंबई (उस वक्त बॉम्बे) आया। सन् 1936-37 तक कई वजहों से ये लोग पूना और देवलाली में रहे और फिर बॉम्बे लौट आए। दिलीप कुमार हाई-स्कूल कर चुके थे। अब जब वो बॉम्बे लौटे तो उनका दाखिला माटुंगा के खालसा कॉलेज में हुआ।

दिलीप साहब अपनी किताब में लिखते हैं कि खालसा कॉलेज में मेरी मुलाकात, बरसों बाद राज कपूर से हुई। राज के दादा, दीवान बशेश्वरनाथ कपूर हमारे यहां, पेशावर में आया करते थे। दोनों खानदानों के रिश्ते बम्बई में भी बदस्तूर जारी रहे, उसी गर्मजोशी के साथ जिनके लिए पठान मशहूर हैं।

दिलीप कुमार आगे लिखते हैं, कॉलेज में मेरे बहुत थोड़े दोस्त थे, राज से मेरी जिगरी दोस्ती थी। अक्सर उसके साथ माटुंगा, उसके घर जाता रहता था जहां पृथ्वीराज जी और उनकी शाइस्ता बीवी रहती थीं। घर के दरवाजे हमेशा खुले रखते थे क्योंकि उनके बेटे पृथ्वीराज जी के भाई और मां के भाई वगैरह कभी भी आया-जाया करते थे। 

दिलीप कुमार खालसा कॉलेज के दिनों को याद करते हुए कहते हैं, "राज के दोनों छोटे भाई शम्मी और शशि उस वक्त स्कूल में पढ़ते थे। (फुटबॉल के लिए मेरी दीवानगी से अलग) राज को फुटबॉल का उतना ही शौक था जितना कॉलेज में दूसरों को था। हमारे कॉलेज के दोस्तों में ज्यादातर क्रिकेट के दीवाने थे और उनमें राज भी था, लेकिन वो फुटबॉल भी खेलता था। हां जब उसे फुटबॉल के लिए मेरी दीवानगी का पता चला तो मेरे लिए उसका बर्ताव हिम्मत बांधने वाला ही रहता था।"

राज ने लड़िकयों से कराई दोस्ती

शर्मीले स्वभाव के दिलीप लड़कियों से बात नहीं करते थे। लेकिन राज कपूर ने शायद जिद ठान ली थी कि वो दिलीप की लड़कियों से झिझक दूर कराकर ही मानेंगे। इसके लिए राज कपूर ने जो तरकीब निकाली उसका पूरा ब्याैरा दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा में दिया है। दिलीप ने बताया है। "एक शाम वो मेरे घर आया और मुझसे कोलाबा स्थित ताज महल होटल के दूसरी तरफ प्रोमेनेड पर टहलने के लिए चलने की जिद करने लगा। जब हम गेटवे ऑफ इंडिया के पास बस से उतरे तो उसने कहा कि ‘आओ तांगे से चलें।’ मैं मान गया। हमने एक तांगा रोका और उसमें बैठ गए। अभी हमारा तांगा वाला चलने ही वाला था कि राज ने उसे रोक लिया। उसे फुटपाथ पर खड़ी दो पारसी लड़कियां खड़ी दिखीं। उन्होंने शॉर्ट फ्रॉक पहन रखा था और दोनों ही किसी बात पर खिलखिला रही थीं। राज ने अपनी गर्दन बाहर निकालकर उन्हें गुजराती में पुकारा। लड़कियां उसकी तरफ मुड़ गईं।"

ये तो बस राज का तरीका था...

राज कपूर ने फिल्मी अंदाज में दोनों लड़कियों से पूछा कि क्या वो उन्हें कहीं छोड़ सकते हैं?  लड़कियां मान गईं, और उसके बाद एक लड़की दिलीप कुमार के बगल में बैठ गई और दूसरी राज कपूर के।  दिलीप कुमार लिखते हैं,"मैंने किनारे सरककर लड़की के लिए काफी जगह दे दी थी लेकिन राज ने ऐसा कुछ नहीं किया। वो लड़की से करीब बैठा था। कुछ ही पलों की बातचीत के बाद ऐसा लग रहा था जैसे वो पुराने दोस्त हों। राज ने अपना एक हाथ लड़की के कंधे पर रख लिया था और उसने भी इसका बुरा नहीं माना। लेकिन मैं झिझक के मारे सिकुड़ा जा रहा था।" दिलीप कुमार और राज कपूर रेडियो क्लब पर तांगे से उतर गए और दिलीप ने राहत की सांस ली। दिलीप कुमार लिखते हैं, "तो ये था राज का मेरी लड़कियों के संग झिझक दूर कराने का तरीका।"

Created On :   6 Aug 2017 4:36 AM GMT

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