कर्मयोगी राष्ट्रसंत गाडगे महाराज की जयंती

Jayanti of social reformer karmayogi rashtrasant gadge maharaj
कर्मयोगी राष्ट्रसंत गाडगे महाराज की जयंती
कर्मयोगी राष्ट्रसंत गाडगे महाराज की जयंती

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मानवता के मूर्तिमान आदर्श संत गाडगे राष्ट्रसंत बाबा जी का जन्म महाराष्ट्र के अमरावती जिले के शेणगांव अंजनगांव में 23 फरवरी 1876 दिन बुधवार को हुआ था। उनका बालपन का नाम डेबूजी झिंगराजी जानोरकर था। गाडगे बाबा सच्चे निष्काम कर्मयोगी थे।

उनके पिता का नाम झिंगरजी माता का नाम साखूबारई और कुल का नाम जाणोरकर था। पीड़ित मानवता की सहायता तथा समाज सेवा के लिये उन्होनें सन 1905 को गृहत्याग किया। एक लकड़ी तथा मिट्टी का बर्तन जिसे महाराष्ट्र में गाडगा (लोटा) कहा जाता है, लेकर आधी रात को घर से निकल गये। दया, करूणा, भ्रातृभाव, सम-मैत्री, मानव कल्याण, परोपकार, दीनहीनों की सहायता आदि गुणों के भण्डार बुद्व के आधुनिक अवतार डेबूजी सन 1905 मे गृहत्याग से लेकर सन 1917 तक साधक अवस्था में रहे।

उन्होंने महाराष्ट्र के हर क्षेत्र में अनेक धर्मशालाएं, गौशालाएं, विद्यालय, चिकित्सालय तथा छात्रावासों का निर्माण कराया। यह सब उन्होंने भिक्षा मांग-मांगकर बनावाया किंतु अपने सारे जीवन में इस महापुरुष ने स्वमं के  लिए कभी एक कुटिया तक नहीं बनवाई। उन्होंने धर्मशालाओं के बरामदे या आसपास के किसी वृक्ष के नीचे ही अपनी सारा जीवन बिताया।वे कहते थे ”शिक्षा बड़ी चीज है. पैसे की तंगी हो तो खाने के बर्तन बेच दो, औरत के लिये कम दाम के कपड़े खरीदो। टूटे-फूटे मकान में रह लो पर अपने बच्चों को शिक्षा दिये बिना न रहो।”


महाराष्ट्र सहित सम्पूर्ण भारत उनका सेवा-क्षेत्र था। गरीब उपेक्षित एवं शोषित मानवता की सेवा ही उनका धर्म था।बाबा ने अपने जीवनकाल में लगभग 60 संस्थाओं की स्थापना की और उनके बाद उनके अनुयायियों ने लगभग 42 संस्थाओं का निर्माण कराया। उन्होनें कभी कहीं मन्दिर निर्माण नहीं कराया अपितु दीनहीन, उपेक्षित एवं साधनहीन मानवता के लिये स्कूल, धर्मशाला, गौशाला, छात्रावास, अस्पताल, परिश्रमालय, वृद्धाश्रम आदि का निर्माण कराया। 

बाबा अपने अनुयायिययों से सदैव यही कहते थे कि मेरी जहां मृत्यु हो जाय, वहीं पर मेरा अंतिम संस्कार कर देना, मेरी मूर्ति, मेरी समाधि, मेरा स्मारक मन्दिर नहीं बनाना। मैने जो कार्य किया है, वही मेरा सच्चा स्मारक है। जब बाबा बीमार हुए तो चिकित्सकों ने उन्हें अमरावती ले जाने की सलाह दी किन्तु वहां पहुचने से पहले बलगाव के पास पिढ़ी नदी के पुल पर 20 दिसम्बर 1956 को रात्रि 12 बजकर 20 मिनट पर बाबा की जीवन समाप्त हो गया। जहां बाबा का अन्तिम संस्कार किया गया। आज वह स्थान गाडगे नगर के नाम से जाना जाता है।

धरती पर समाज सेवी संत महात्मा, जन सेवक, साहित्यकार एवं मनीषी जन्म लेंगे परन्तु मानव मात्र को अपना परिजन समझकर उनके दु:खदर्द को दूर करने में अनवरत रूप से तत्पर गाडगे बाबा जैसा नि:स्पृह एवं समाजवादी सन्त शायद ही कभी मिल पाए क्योंकि रूखी-सूखी रोटी खाकर दिन-रात जनता जनार्दन के कष्टों को दूर करने वाले जनसेवी सन्त कम ही जन्म लेते है।

Created On :   11 Feb 2019 4:27 AM GMT

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