जानें क्यों किया जाता है आसों दूज व्रत, क्या है इसका महत्व

जानें क्यों किया जाता है आसों दूज व्रत, क्या है इसका महत्व

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत एक बहुत बड़ा देश है। यहां हर प्रदेश की वेशभूषा तथा भाषा में बहुत बड़ा अन्तर दिखाई देता है। इतनी बड़ी भिन्नता होते हुए भी एक समानता है जो देश को एक सूत्र में पिरोये हुए है। वह है यहां की सांस्कृतिक-एकता,पर्व, मैले उत्सव,एवं त्यौहार। स्वभाव से ही मनुष्य उत्सव-प्रिय है, महाकवि कालिदास ने ठीक ही कहा है - "उत्सव प्रियः मानवा:"। पर्व हमारे जीवन में उत्साह, उल्लास व उमंग की पूर्ति करते हैं। 

बुन्देलखण्ड के पर्वों की अपनी ऐतिहासिकता है। उनका पौराणिक व आध्यात्मिक महत्व है और ये हमारी सांस्कृतिक विरासत के अंग हैं। कुछ अत्यन्त महत्वपूर्ण त्यौहारों का विवेचन हिन्दी मासों के अनुसार प्रचालन पौराणिक काल से चला आ रहा है जिसमे से एक आसों दूज भी है। आसमाई या आसों दोज यह पर्व वैशाख कृष्ण पक्ष की दूज के दिन मनाया जाता है। 

आसमाई पूजा या आसोंदूज पूजा विधि :-
वैशाख, आषाढ़ तथा माघ के महीनो के अर्न्तगत किसी रविवार को आसमाई की पूजा का विधान है। यह व्रत कार्य सिद्धि के लिए किया जाता है। अधिकतम बाल-बच्चे वाली महिलाएं इस व्रत को करती हैं। इस दिन भोजन में नमक का प्रयोग वर्जित होता है। ताम्बूल पर सफेद चन्दन से पुतली बनाकर चार कौड़ियों को रखकर पूजा की जाती है। इसके बाद चौक पूरकर कलश स्थापित करते है। उसी के समीप गोटियो वाला मांगलिक सूत्र व्रत करने वाली महिला रखती है फिर भोग लगाते समय इस मागलिक सूत्र को धारण करती हैं।

नैवेद्य या भोग के लिए सात आसें एक प्रकार बनाई जाती हैं तो व्रत करने वाली स्त्री ही उसे खाती है। इसके बाद घर का सबसे छोटा बच्चा कौड़ियों को पटे पर डालता है। स्त्री उन कौड़ियों को अपने पास रखती हैं और हर वर्ष इनकी पूजा करती है और फिर आसमाई की कथा की जाती है। 

आसमाई दूज की कथा :-
एक राजा के एक लड़का था वह लाड़ प्यार के कारण मनमाने कार्य करने लगा था। वह प्रायः पनघट पर बैठकर गुलेल से पनिहारियों की गगरियां फोड़ देता था राजा ने घोषणा कर दी कि कोई पनघठ पर मिट्टी का घडा लेकर न जाए तब सभी स्त्रियां पीतल या तांबे के घड़े ले जाने लगी। अब राजा के बेटे ने लोहे व शीशे के टुकडो से पनिहारियो के घडे फोडना शुरू कर दिए। तब राजा बहुत क्रोधित हुआ तथा अपने पुत्र का देश निकाला कर दिया राजकुमार घोड़े पर बैठकर वन में चल दिया। 

राह में उसकी भेंट चार वृद्ध स्त्रिओं से हुई। अकस्मात राजकुमार का चाबुक गिर गया उसने घोड़े से उतरकर चाबुक उठाया तो वृद्ध स्त्रिओं को लगा की यह हमे प्रणाम कर रहा है किन्तु समीप पहुंचने पर उन चारो स्त्रिओं के पूछने पर राजकुमार बताता है कि उसने चौथी बुढ़िया (आसमाई) को प्रणाम किया है। इस पर आसमाई बहुत प्रसन्न हुई तथा उसे चार कौडियां देकर आशीर्वाद दिया कि जब तक ये कौडियां तुम्हारे पास रहेगी तुम्हे कोई हरा नही सकेगा समस्त कार्यो में तुम्हे सफलता मिलेगी। आसमाई देवी का आशीर्वाद पाकर राजकुमार आगे चल दिया।

वह भ्रमण करता हुआ एक देश की राजधानी में पहुंचा। वहां का राजा जुआ खेलने में पारंगत था। राजकुमार ने राजा को जुए में हरा दिया तथा राजा का राजपाट जुए में जीत लिया बूढे मंत्री की सलाह से राजा उसके साथ अपनी राजकुमारी का विवाह कर देता है। राजकुमारी बहुत ही शीलवान व सदाचारिणी थी। महल में सास-ननद के अभाव में वह कपड़े की गुड़ियो द्वारा सास ननद की परिकल्पना कर उनके चरणो को आंचल पसारकर छूती तथा आशीर्वाद लेती एक दिन यह सब करते हुए राजकुमार ने देख लिया और पुछा तुम यह क्या करती हो ? 

राजकुमारी ने सास-ननद की सेवा करने की इच्छा बताई इस पर राजकुमार सेना लेकर अपने घर चल दिया अपने पिता के यहां पहुंचने पर उसने देंखा उसके मां बाप निरन्तर रोते रहने से अंधे हो गए पुत्र का समाचार पाकर राजा रानी बहुत प्रसन्न हुए महल में प्रवेश करने पर बहु सास के चरण स्पर्श करती है सास के आशीर्वाद से कुछ दिन बाद वह एक सुन्दर बालक ने जन्म देती है। आसमाई की कृपा से राजा-रानी के आखों की ज्योती लौट आती है तथा उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।

Created On :   19 April 2019 6:06 AM GMT

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