बचपन में तालाब से उठा लाए थे घड़ियाल का बच्चा

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बचपन में तालाब से उठा लाए थे घड़ियाल का बच्चा
बचपन में तालाब से उठा लाए थे घड़ियाल का बच्चा

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रविवार 17 सितंबर को जन्मदिन है। इसी दिन शिल्प और इंजीनयिरंग के देवता माने जाने वाले भगवान विश्वकर्मा का भी जन्मदिन मनाया जाता है। मोदी ने देश की कमान 26 मई 2014 को संभाली। वे देश को नई दिशा देने के साथ भारत के पुराने खोए हुए वैभव को लौटाने की कोशिश कर रहे हैं। उनको लेकर राजनतिक अंर्तविरोध हो सकते हैं लेकिन मोदी ने दुनिया में भारत की एक नई इमेज बनाई है।

वे मेक इन इंडिया के जरिए भारत के नए विश्वकर्मा बनने की राह में आगे बढ़ते दिख रहे हैं। सितंबर में एक और संयोग है कि 11 सिंतबर को ही स्वामी विवेकानंद ने डेढ सौ साल पहले शिकागो की धर्मसभा में ऐतिहासिक भाषण दिया था। देश के पूर्वी तट पर जन्में उन नरेंद्र और पश्चिमी तट पर जन्में इन नरेंद्र के जीवन में काफी समानताएं हैं। bhaskarhindi.com ने उनके जन्मदिन पर अपने पाठकों को कुछ अलग जानकारी देने की कोशिश की है।

गुजरात में बेहद साधारण परिवार में जन्‍मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17 सितंबर को पूरे 67 बरस के हो गए। एक चाय बेचने वाले कभी देश का पीएम भी बनेगा ये किसी ने सोचा नहीं था।मोदी ने राजनीति शास्त्र में एमए किया। बचपन से ही उनका संघ की तरफ खासा झुकाव था और गुजरात में आरएसएस का मजबूत आधार भी था। वे संघ से ऐसे जुड़ते चले गए कि संघ ने उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लिए वो सब कुछ किया जो उसने किसी के लिए नहीं किया था।

बचपन से ही निडर थे
नरेंद्र मोदी बचपन में आम बच्चों से बिल्कुल अलग थे। उनकी अभिरुचियां और खेल कूद भी दूसरे बच्चों से बिल्कुल अलग हुआ करते थे। एक बार वह घर के पास के शर्मिष्ठा तालाब से एक घड़ियाल का बच्चा पकड़कर घर ले आए थे। बहुत सारे लोगों ने उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन वह किसी तरह घडि़याल के बच्चे को छोड़ने को तैयार नहीं हुए। उनकी मां ने कहा बेटा इसे वापस छोड़ आओ, तो भी नरेंद्र राजी नहीं हुए। लेकिन जब मां ने समझाया अगर कोई तुम्हें मुझसे चुरा ले तो तुम पर और मुझ पर क्या बीतेगी, जरा सोचो। यह बात नरेंद्र के बाल मन पर असर कर गई। उन्होंने घड़ियाल के बच्चे को उठाया और तालाब में छोड़ दिया। 

अभिनय का चस्का
बचपन से ही नरेंद्र मोदी का जीवन बहुआयामी रहा है। वह अपने गेटअप को लेकर भी अन्य लोगों से अलग थे। कभी बाल बढ़ा लेते, तो कभी सरदार के गेट अप में आ जाते थे। रंगमंच उन्हें खूब लुभाता था। स्कूल के दिनों में वह नाटकों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया करते थे। वड़नगर के भगवताचार्य नारायणाचार्य स्कूल में पढ़ने वाले नरेंद्र मोदी पढ़ाई में औसत छात्र थे। लेकिन बाकी गतिविधियों में वह सबसे आगे रहा करते थे। एक ओर वह रंगमंच के दीवाने थे, तो दूसरी ओर उन्होंने एनसीसी भी ज्वाइन कर रखी थी। बोलने की कला में तो उनका कोई जवाब नहीं था। हर वाद विवाद प्रतियोगिता के वह पूर्व घोषित विजेता हुआ करते थे। 

संन्यासी बनने जा पहुंचे थे हिमालय 
नरेंद्र मोदी की सामान्य अभिरुचियां भी बचपन से ही अन्य बच्चों के बिल्कुल अलग थीं। जिस उम्र में अन्य बच्चे खेल-कूद में मस्त रहते हैं, उस उम्र में नरेंद्र मोदी को साधु-संतों से बेहद लगाव पैदा हो गया था। वह खुद संन्यासी बनना चाहते थे। एक बार संन्यासी बनने के लिए वह स्कूल की पढ़ाई के बाद घर से भाग गए थे। इस दौरान मोदी पश्चिम बंगाल के रामकृष्ण आश्रम सहित कई स्थानों पर घूमते-घूमते हिमालय जा पहुंचे थे। कई महीनों तक साधुओं की संगत में रहने के बाद वापस लौट आए। उनके व्यक्तिगत जीवन पर अध्यात्म का गहरा प्रभाव है। उनकी दिनचर्या पूरी तरह धर्म पर अवलंबित है। वह ध्यान करते हैं। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए वह नियमित रूप से योग करते हैं। यही वजह है इस उम्र में भी उनकी सक्रियता जवान लोगों को मात देती है। 

बचपन में ही ले ली थी आरएसएस की दीक्षा
नरेंद्र मोदी बचपन से ही बेहद अनुशासित थे। हिन्दुत्व का भाव उनमें बचपन से ही प्रबल था। यही वजह रही वह बचपन में ही आरएसएस से जुड़ गए। सन 1958 में दीपावली के दिन गुजरात आरएसएस के पहले प्रांत प्रचारक लक्ष्मण राव इनामदार उर्फ वकील साहब ने नरेंद्र मोदी को बाल स्वयंसेवक के रूप में शपथ दिलवाई थी। इसके बाद से मोदी आरएसएस की शाखाओं में नियमित रूप से जाने लगे। लेकिन जब मोदी और उनके भाई ने अहमदाबाद में चाय की दुकान खोली तो उनका शाखाओं में आना-जाना कम हो गया। लेकिन उनका आरएसएस से जुड़ाव लगातार बना रहा। 
 

Created On :   16 Sep 2017 5:16 PM GMT

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