तुलसी विवाह की विधि, आज सृष्टि का कार्यभार पुनः संभालेंगे श्रीहरि
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। श्रीहरि आज सृष्टि का कार्यभार पुनः संभालेंगे। चार माह तक शयन के बाद देवउठनी ग्यारस या देव प्रबोधनी एकादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु जागते हैं। जिसके बाद शुभ कार्यों का श्रीगणेश होता है। इसी दिन तुलसी विवाह की भी परंपरा है। यह तिथि दिवाली से ठीक 11वें दिन आती है।
परंपरानुसार कार्तिक माह की एकादशी को भगवान विष्णु और तुलसी का विवाह किया जाता है। शालिग्राम के रूप में गन्ने के मंडप के नीचे तुलसी-विष्णु विवाह संपन्न होता है। यह विवाह वैदिक रूप में कराया जाता है। इस दिन को उत्सव की तरह मनाया जाता है। यहां हम आपको तुलसी विवाह की पूर्ण विधि बताने जा रहे हैं...
अपनाएं ये विधि
- घर में भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित कर एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए।
- तुलसी के पौधे और विष्णु मूर्ति को पीले वस्त्रों को सजाना चाहिए। श्रीहरि को पीले वस्त्र अत्यंत प्रिय हैं।
- तुलसी विवाह के लिए सबसे जरूरी है तुलसी के पौधे को अच्छी तरह सजाकर, साजो श्रंगार कर गन्ने का मंडप बनाना चाहिए।
- इसके बाद तुलसी के पौधे पर एक ओढ़नी या चुनरी डालें, इसके बाद तुलसी विवाह की विधि शुरू करें।
- तुलसी और शालिग्राम पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं। यह मंडप पर भी लगाएं।
- भाजी, मूली, बेर और आंवला जैसी सामग्री भी पूजन में शामिल करें। इस दिन इन्हें खाने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
- वैदिक परंपरा अनुसार विवाह में वे सभी रीति-रिवाज करें जो पूजन के लिए अनिवार्य बताए गए हैं।
- ब्राम्हण की सहायता से भी इस पूजन को संपन्न किया जा सकता है।
- ऊं तुलस्यै नम: का मंत्रोच्चरण करते हुए भगवान विष्णु के समक्ष हाथ जोड़ें और पूजा स्वीकृत करने की प्रार्थना करें।
- पूजन के बाद प्रसाद ग्रहण कर उपवास खोलें। इसके पश्चात जो भी तुलसी के पत्ते स्वयं टूटकर या झड़कर जमीन पर गिर जाते हैं उनका सेवन करें।
Created On :   24 Oct 2017 5:45 AM GMT