संविधान की पांचवीं अनुसूची पर बवाल: कांग्रेस महासचिव जयराम ने धीरौली कोयला खनन परियोजना के मुद्दे पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को घेरा, कही ये बात

कांग्रेस महासचिव जयराम ने धीरौली कोयला खनन परियोजना के मुद्दे पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को घेरा, कही ये बात
  • जयराम रमेश ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय पर लगाए गंभीर आरोप
  • वन अधिकार और पंचायत अधिनियम के नियमों का नहीं किया पालन
  • धीरौली कोयला खनन परियोजना का वास्तव

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने मध्य प्रदेश के धीरौली कोयला खनन परियोजना को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। इस मामले में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने बताया था कि इस परियोजना को संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत संरक्षित क्षेत्र नहीं आता है। वहीं, कांग्रेस महासचिन ने दावा किया है कि 9 अगस्त, 2023 को तत्कालीन कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने स्पष्ट किया था कि यह परियोजना पांचवी अनुसूची के अंतर्गत संरक्षित इलाके में आता है।

वन अधिकार नियमों का नहीं हुआ पालन

हाल ही में कांग्रेस नेता ने मंत्रालय पर आरोप लगाया है कि मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में आदाणी समूह के इस परियोजना ने वन अधिकार अधिनियम, 2006 (FRA) और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा) के नियमों का पालन नहीं किया है। हालांकि, कांग्रेस के इन आरोपों को मोहन सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया है।

पूर्व मंत्री प्रह्लाद जोशी ने सोशल मीडिया एक्स पर कहा, "मैंने 12 सितंबर को ‘मोदानी’ की धीरौली कोयला खनन परियोजना की मंजूरी प्रक्रिया में हुई भारी गड़बड़ियों का मुद्दा उठाया था। इस पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने लगभग तुरंत प्रतिक्रिया दी और दावा किया कि खनन क्षेत्र संविधान की पांचवीं अनुसूची में संरक्षित क्षेत्र में नहीं आता है और वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत आवश्यक कानूनी प्रक्रिया विधिवत पूरी कर ली गई है।"

उन्होंने आगे बताया, "पहला दावा झूठा है। नौ अगस्त, 2023 को तत्कालीन कोयला मंत्री ने लोकसभा में स्पष्ट और ठोस रूप से उतर दिया था कि धीरौली कोयला खनन परियोजना वास्तव में संविधान की पांचवीं अनुसूची में संरक्षित क्षेत्र में आती है।"

कांग्रेस नेता ने किया ये दावा

जयराम रमेश ने इस मामले में आगे कहा कि अगर दूसरे दावे के सवाल पर बात की जाए तो वन अधिनियम, 2006 के तहत केवल व्यक्तिगत वन अधिकार नहीं आता है। इसके अलावा सामुदायिक वन संसाधन अधिकार और इसके साथ विशेष रूप से संविदेनशील जनजातीय समूहों के निवास के अधिकार को भी शामिल किया है।

कांग्रेस महासचिव ने कहा, "धीरौली कोयला खदान के तहत लगभग 3,500 एकड़ वनभूमि पांच गांवों से डायवर्ट की जानी है, और इन वनों से सटे कम से कम तीन अन्य गांवों के भी इस पर निर्भर होने की संभावना है। इन आठ गांवों में सभी तीन प्रकार के जनजातीय अधिकारों का पहले निपटारा किया जाना आवश्यक है।"

कांग्रेस नेता का कहना है कि 31 मार्च, 2022 को जिला कलेक्टर ने बताया था कि वन अधिकार अधिनियम, 2006 के अंतर्गत आने वाले अधिकारों की पहचना और उनका निपटना की प्रोसेस पूरी हो गई है। इस दौरान विशेषकर संवेदनशील जनजातीय समूहों के अधिकारों को सुरक्षित किया गया है। उन्होंने दावा किया था, "लेकिन, मध्य प्रदेश सरकार की अपनी जानकारी के अनुसार, सिंगरौली जिले में, जहां ये आठ गांव स्थित हैं, अब तक न तो कोई सामुदायिक अधिकार और न ही कोई आवास अधिकार मान्यता प्राप्त हुए हैं।"

Created On :   17 Sept 2025 5:43 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story