पीएफआई मामले पर ट्रिब्यूनल का गठन, अब आगे क्या होगा ? संगठन के पास क्या हैं विकल्प ?

Formation of tribunal on PFI case, what will happen next? What are the options available to the organization?
पीएफआई मामले पर ट्रिब्यूनल का गठन, अब आगे क्या होगा ? संगठन के पास क्या हैं विकल्प ?
नई दिल्ली पीएफआई मामले पर ट्रिब्यूनल का गठन, अब आगे क्या होगा ? संगठन के पास क्या हैं विकल्प ?
हाईलाइट
  • यूएपीए ट्रिब्यूनल से पुष्टि

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और उसके सहयोगियों को बैन करने के मामले में गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) न्यायाधिकरण के पीठासीन अधिकारी के रूप में नियुक्त किया है। ये पीएफआई पर प्रतिबंध की समीक्षा करेंगे। ऐसे में अब आगे क्या होगा ? संगठन के पास क्या हैं विकल्प?

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 28 सितंबर को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत पीएफआई और उसके आठ सहयोगियों को पांच साल के लिए बैन कर दिया था। अब इस मामले में गठित ट्रिब्यूनल इसकी सुनवाई करेगा। दरअसल किसी भी संगठन पर केंद्र सरकार की ओर से लगाए गए प्रतिबंध की यूएपीए ट्रिब्यूनल से पुष्टि कराना जरूरी होता है।

यूएपीए एक्ट के अनुसार किसी भी संगठन को गैरकानूनी करार दिए जाने के 1 महीने के भीतर नोटिफिकेशन को ट्रिब्यूनल के पास भेजना होता है। इसके बाद ट्रिब्यूनल ये तय करता है कि क्या वाकई उस संगठन को गैरकानूनी करार दिए जाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं या नहीं। ट्रिब्यूनल को ये प्रक्रिया एक निर्धारित तय समय के भीतर पूरी करनी होती है।

वरिष्ठ वकील संजय चड्ढा ने आईएएनएस से बात करते हुए बताया कि ट्रिब्यूनल की सुनवाई कोर्ट की तरह से ही होती है। अगर प्रतिबंधित संगठन को लगता है कि उसके खिलाफ की गई कार्यवाही गलत है, तो वो पक्ष ट्रिब्यूनल के सामने जा सकता है। इसके बाद सुनवाई के लिए एक तारीख तय की जाती है। इसमें दोनों तरफ के वकील अपना अपना पक्ष रखते हैं।

वहीं दूसरी तरफ प्रतिबंध की पुष्टि के लिए अभी ट्रिब्यूनल सुनवाई करेंगे, लेकिन जांच एजेंसियां अपनी कार्रवाई जारी रखेंगी। इसमें कोई बदलाव नहीं होगा। वहीं दोनों पक्षों को अपना अपना पक्ष रखने का मौका मिलेगा। ट्रिब्यूनल को सुनवाई के बाद अगर लगता है कि संगठन को गैरकानूनी घोषित करने के पर्याप्त सबूत हैं, तो प्रतिबंध जारी रहेगा, लेकिन सबूत नहीं मिलते हैं तो प्रतिबंध हटाया भी जा सकता है।

इस साल मार्च में ही एक यूएपीए ट्रिब्यूनल ने जाकिर नाईक के इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन को बैन करने की अधिसूचना को सही पाया था। ट्रिब्यूनल को अगर पर्याप्त सबूत नहीं मिलते हैं, तो फिर बैन हटाया भी जा सकता है। दरअसल साल 2008 में एक ट्रिब्यूनल ने सिमी पर बैन से जुड़ी सरकार की अधिसूचना को रद्द कर दिया था। हालांकि तत्कालीन केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के आदेश पर रोक लगा दी थी।

गौरतलब है की केंद्र सरकार ने पीएफआई सहित रिहैब इंडिया फाउंडेशन, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया इमाम काउंसिल, नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन, नेशनल विमेन फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन (केरल) पर भी 5 साल का प्रतिबंध लगाया है।

 

आईएएनएस

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Created On :   6 Oct 2022 5:30 PM GMT

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