लोकसभा चुनाव 2024: उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी का अच्छा प्रदर्शन, ये रहीं मुख्य वजह
- 2004 में जीती थीं 35 सीटें
- मुलायम के गढ़ में पूरी रफ्तार से दौड़ी साइकिल
- मैनपुरी में डिंपल यादव 2.21 लाख वोटों से जीती
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 18 वें लोकसभा चुनाव के नतीजों में उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी ने अब तक के अपने इतिहास में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया। सपा ने कुल 37 सीटें जीतीं। सपा देश की तीसरी बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई है। सपा की कामयाबी के पीछे कांग्रेस के साथ गठबंधन कर इंडिया ब्लॉक में शामिल होने के साथ साथ सपा ने धार्मिक मुद्दों से इतर रहकर जमीनी मुद्दों पर फोकस किया। 2019 के चुनाव में पूर्व कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह ही सपा से अलग थे, लेकिन इस बार परिवार की एकजुटता के लिए सपा में वापसी की। सपा ने प्रत्याशी तय करने में पीडीए फार्मूले का भी पूरा ध्यान रखा। सपा ने टिकट बंटवारे में सोशल इंजीनियरिंग का ध्यान रखते हुए हमेशा भाजपा का साथ देने वाले शाक्य और दोहरे बिरादरी के मतदाताओं को भी पार्टी से जोड़ा। यह कारगर साबित हुआ।
अबकी बार गठबंधन में रहकर राजनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण यूपी में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने विपक्ष के अभियान का नेतृत्व किया। सपा ने गठबंधन के तहत 62 संसदीय सीटों पर चुनाव लड़ा। 17 सीटें कांग्रेस और एक सीट तृणमूल कांग्रेस को दी। इंडिया ब्लॉक में सीट शेयरिंग की यह रणनीति काफी कारगर साबित हुई। कांग्रेस के साथ साझेदारी करने के चलते सपा ने राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का विकल्प मौजूद होने के संकेत दिए।
मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव था। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के गढ़ में साइकिल पूरी गति से दौड़ी। यादवलैंड की छह सीटों में मैनपुरी का रुतबा बरकरार रहा, जबकि सपा ने बीजेपी से चार सीटें छीन लीं। आपको बता दें सपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में 35 सीटें जीती थीं। इस लोकसभा चुनाव में सपा ने 37 सीटें जीती है।
मैनपुरी में डिंपल यादव 2.21 लाख, इटावा में सपा ने बसपा से आए जितेंद्र सिंह दोहरे पर दांव लगाया और करीब 58 हजार वोट से चुनाव जीत लिया। कन्नौज में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव 1.70 लाख से जीते हैं। फिरोजाबाद में सपा के अक्षय प्रताप यादव ने भाजपा प्रत्याशी विश्वदीप सिंह को करीब 89 हजार वोट से हराया। एटा में राजवीर सिंह राजू को सपा के देवेश शाक्य ने करीब 25 हजार वोटों से हराया।
जातीय समीकरण और यादवों-मुस्लिमों पर फोकस न करते हुए राहुल गांधी के संविधान व लोकतंत्र बचाने की बात करते हुए बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी पर अधिक फोकस किया। आपको बता दें सपा ने 2019 का पिछला लोकसभा चुनाव बहुजन समाज पार्टी के साथ लड़ा था। तब सपा 5 सीटों पर सिमट गई।
सपा ने अपना आधार वोट माने जाने वाले यादवों और मुस्लिमों से ज्यादा कुर्मी बिरादरी के प्रत्याशी उतारे। ब्राह्मण व ठाकुर समेत सामान्य जाति के प्रत्याशियों को भी मौका दिया। अखिलेश का यह दांव बिल्कुल सही बैठा और पार्टी को अप्रत्यशित सफलता मिली। सपा चीफ ने स्वामी प्रसाद मौर्य के विवादित बयानों से खुद को और अपनी पार्टी को दूर रखा। सपा ने पेपर लीक और अग्निवीर के सहारे बेरोजगारी की समस्या से बड़ी चोट की। इस रणनीति ने उन्हें सफलता के शिखर पर पहुंचाया।
Created On :   5 Jun 2024 5:36 PM IST