भारत-पाक संघर्ष: इतिहास की यादें, वर्तमान की ज़मीनी सच्चाइयाँ- डॉ आशीष जोशी

इतिहास की यादें, वर्तमान की ज़मीनी सच्चाइयाँ- डॉ आशीष जोशी
  • भारत-पाक संघर्ष पर एक सटीक और राष्ट्रवादी उत्तर
  • केवल सैनिक मोर्चे पर नहीं लड़ा जाता युद्ध
  • कूटनीति और वैश्विक समीकरण भी निर्णायक होते हैं

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता गया। ऑपरेशन सिंदूर के बाद चार दिनों तक चले हवाई संघर्ष सीजफायर के साथ समाप्त हो गया, हालांकि पाकिस्तान अभी भी सीजफायर उल्लंघन कर अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। ऐसे में पाकिस्तान और भारत के बीच बीते समय में हुए संघर्षों की एक झलक याद आती है।

भारत और पाकिस्तान के बीच ‘सीज़फायर’ है, ‘युद्ध समाप्त’ नहीं! यह केवल एक क्षणिक विराम है, स्थायी समाधान नहीं। जब तक आतंक का अस्तित्व है, जब तक भारतविरोधी मानसिकता जीवित है, तब तक हमारी पूर्ण विजय का संकल्प अडिग है। शांति हमारी इच्छा है, पर राष्ट्र की सुरक्षा हमारा संकल्प! विजय अभी बाकी है

1971 भारत पाकिस्तान वार

1971 का युद्ध निर्णायक था। लेकिन हालात भी पूरी तरह भिन्न थे। पाकिस्तान अंदर से टूटा हुआ था। बांग्लादेश यानी तब के पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने खुद नेतृत्व संभाला था-मुजीबुर रहमान की अगुआई में। भारत ने एकजुट जन-आंदोलन का साथ दिया—अंदर से फूटा विद्रोह था।

अब ज़रा यह भी याद करिए

93,000 पाकिस्तानी सैनिकों के समर्पण के बाद भारत ने क्या किया?

* क्या भारत ने लाहौर पर कब्ज़ा किया?

* क्या बलोचिस्तान को स्वतंत्र किया?

* नहीं—बल्कि शिमला समझौते में सब वापस कर दिया।

कहते हैं कि सेना लाहौर तक पहुंच गई थी-तो फिर लौटी क्यों? क्योंकि युद्ध केवल सैनिक मोर्चे पर नहीं लड़ा जाता, कूटनीति और वैश्विक समीकरण भी निर्णायक होते हैं।

अब वर्तमान की बात करें

आज पाकिस्तान के साथ चीन खुलकर खड़ा है। तुर्किये को अमेरिका F-35 लड़ाकू विमान देना चाहता है। इज़राइल इससे नाराज़ है-लेकिन अमेरिका की मुनाफाखोर हथियार लॉबी अपनी चालें चल रही है। बांग्लादेश में अमेरिकन स्पेशल फोर्स के कमांडो उतर चुके हैं-क्यों? कहीं भारत बांग्लादेश पर कार्रवाई ना कर दे, इस डर से!

इसलिए, जब कुछ लोग पूछते हैं-“क्यों नहीं आज वैसा युद्ध?” तो उत्तर है-क्योंकि आज की दुनिया, कल जैसी नहीं है। युद्ध केवल रणभूमि में नहीं लड़ा जाता, वह कूटनीति, वैश्विक दबाव और रणनीतिक संतुलन का खेल भी है। और हाँ, अमेरिका की भूमिका?

क़तील शिफ़ाई का शेर याद आता है

बड़ा मुंसिफ़ है अमरीका, उसे अल्लाह ख़ुश रक्खे,

ब-ज़ोम-ए-ख़्वेश वो सब को बराबर प्यार देता है।

किसी को हमला करने के लिए देता है मीज़ाइल,

किसी को इन से बचने के लिए राडार देता है…”

विश्व व्यवस्था की सोच बदल देता है नया भारत

आज भारत भावनाओं से नहीं, विवेक से चल रहा है। आज भारत को युद्ध से नहीं, अपनी ताक़त को टिकाऊ रूप से संचालित करने से लाभ है। और जब भारत वार करता है-तो वह केवल बम नहीं गिराता, विश्व व्यवस्था की सोच बदल देता है। यह नया भारत है—जहाँ युद्ध अंतिम उपाय है, लेकिन प्रतिशोध कभी बंद नहीं होता।

बहिष्कार का संकल्प-अब शब्द नहीं, संकल्प बोलेंगे!

जब भारत माता की ओर शत्रु देश ड्रोन, हथियार और घृणा लेकर बढ़ते हैं, तो भारत का हर सच्चा नागरिक भी निर्णयों की तलवार लेकर खड़ा होता है। क्या हम उनके पर्यटन स्थलों की तस्वीरें खिंचवाएं, जो पाकिस्तान के साथ खड़े होकर हमारे सैनिकों की पीठ में छुरा घोंपते हैं?

क्या हम उन वस्तुओं को खरीदें, जिन्हें बना रहा वह चीन, जो आज भी अपने ड्रोन से हमारे सीमाओं पर हमला करने का दुस्साहस कर रहा है? अब समय आ गया है कि हर भारतवासी एक स्वर में बोले , नहीं चाहिए ऐसा पर्यटन जो भारत विरोध को पोषण दे। नहीं चाहिए ऐसी वस्तुएं जो दुश्मनों की ताकत बनें। इसलिए लें संकल्प-

• पाकिस्तान समर्थक देशों (तुर्की, अज़रबैजान आदि) के पर्यटन का बहिष्कार

• चीन निर्मित वस्तुओं का त्याग

• आर्थिक रूप से भारत-विरोधी ताकतों को कमज़ोर करने की प्रतिज्ञा

यह सिर्फ़ बहिष्कार नहीं, यह भारत माता की रक्षा का व्रत है। यह हर उस नागरिक की जिम्मेदारी है जो कहता है-मैं भारतीय हूँ। घर से लेकर बाज़ार तक, ऑनलाइन से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों तक-अब हर निर्णय राष्ट्र के पक्ष में होगा। हम नहीं खरीदेंगे-वो नहीं बढ़ेंगे!

(ये लेखक के अपने निजी विचार है, लेखक लोकसभा टीवी के पूर्व संपादक रह चुके है)

Created On :   11 May 2025 1:51 PM IST

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