MP News: राज्य लघु वनोपज संघ को सहकारिता से मुक्त कर कंपनी बनाने की तैयारी

डिजिटल डेस्क, भोपाल। मध्य प्रदेश के वन विभाग के अधीन संचालित राज्य लघु वनोपज संघ को सहकारिता के प्रावधानों से मुक्त कर एक कंपनी के रुप में बनाने की तैयारी की जा रही है। दरअसल राजभवन में बने जनजातीय प्रकोष्ठ की बैठक में राज्यपाल मंगु भाई पटेल ने निर्देश दिये हैं कि वन विभाग इस बात पर विचार करे कि राज्य लघु वनोपज संघ को सहकारिता व्यवस्था में रखा जाये या कोई अन्य व्यवस्था बनाई जाये। इस निर्देश पर अब वन मुख्यालय के उच्च अधिकारी पशोपेश में हैं क्योंकि लघु वनोपज संघ पिछले 41 सालों से बढिय़ा काम कर रहा है और यह लाभ में भी चल रहा है तथा उनका दावा है कि सारा लाभ वनवासियों को दिया जाता है।
दरअसल, राज्यपाल को महसूस हुआ है कि लघु वनोपज संघ से वनवासियों को उतना लाभ नहीं मिल रहा है जितना कि स्वयं वन विभाग के अधिकारी एवं कर्मचारी इसका लाभ उठा रहे हैं। फिर संघ के संचालक मंडल द्वारा कोई निर्णय लिये जाने पर सहकारिता आयुक्त से उसकी मंजूरी लेनी पड़ती है जिसमें बहुत समय लग जाता है। उल्लेखनीय है कि वनोपज के संग्रहण एवं व्यापार से वनवासियों को लाभ दिलाने की दृष्टि से वर्ष 1984 में राज्य लघु वनोपज संघ का गठन मध्यप्रदेश सहकारिता अधिनियम, 1960 के अन्तर्गत हुआ। राज्य शासन द्वारा वर्ष 1988 में लघु वनोपज के संग्रहण, भण्डारण एवं व्यापार से बिचौलियों को पूर्णत: समाप्त करने के लिये वास्तविक संग्रहण कर्ताओं की त्रिस्तरीय सहकारी संस्थाओं का गठन किया गया।
प्राथमिक स्तर पर वास्तविक संग्राहकों की सदस्यता से 1071 प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियां, जिला स्तर पर 60 जिला वनोपज सहकारी यूनियन तथा शीर्ष स्तर पर मध्यप्रदेश राज्य लघु वनोपज संघ कार्यरत है। वर्तमान में मात्र तेन्दूपत्ता के विपणन को छोडक़र शेष अन्य लघु वनोपज जैसे हर्रा, बहेडा, लाख, अचार, महुआ, शहद, माहुल पत्ता, आंवला एवं औषधीय वनोपजों का संग्रहण एवं विपणन करने की ग्रामीणों को स्वतंत्रता है। राज्य लघु वनोपज संघ, तेन्दूपत्ता का संग्रहण एवं व्यापार प्राथमिक लघु वनोपज समितियों एवं ग्राम सभाओं के माध्यम से करता है तथा शेष अन्य वनोपज के संग्रहण, विपणन में समन्वयक की भूमिका निभाता है।
Created On :   27 Oct 2025 11:46 PM IST












