कुंभ मेले की खास बात, महिला नागा साधुओं से जुड़े रोचक तथ्य

Kumbh 2019:know interesting facts related to female Naga sadhu
कुंभ मेले की खास बात, महिला नागा साधुओं से जुड़े रोचक तथ्य
कुंभ मेले की खास बात, महिला नागा साधुओं से जुड़े रोचक तथ्य
हाईलाइट
  • 12 साल के अंतराल में कुंभ मेले का आयोजन
  • महाकुंभ
  • अर्धकुंभ या फिर सिंहस्थ कुंभ के बाद नागा साधुओं को देखना बहुत मुश्किल

डिजिटल डेस्क। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि 12 साल के अंतराल में कुंभ मेले का आयोजन होता है, जो कि हिन्दु अनुयायियों से जुड़ा हुआ आस्था का पर्व है। कुंभ मेले का आयोजन भारत के चार प्रमुख तीर्थ स्थानों पर किया जाता है, प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन। कुंभ मेले में स्नान करने के लिए पूरे देश के साथ विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं।कुंभ मेले की खास बात यह है कि यहां पर आने वाले नागा साधु सबके आकर्षण का क्रेंद होते हैं। जो बड़ी संख्या में स्नान करने आते हैं। दो बड़े कुंभ मेलों के बीच एक अर्धकुंभ मेला भी लगता है। इस बार प्रयागराज में साल 2019 में आने वाला कुंभ मेला दरअसल, अर्धकुंभ ही है।

 

महाकुंभ, अर्धकुंभ या फिर सिंहस्थ कुंभ के बाद नागा साधुओं को देखना बहुत मुश्किल होता है। नागा साधुओं के विषय में कम जानकारी होने के कारण इनके बारे में हमेशा कौतुहल बना रहता है। कुंभ के सारे शाही स्नान की तिथियों से लेकर आज हम आपको महिला साधुओं से जुड़े रोचक तथ्यों के बारे में बताने जा रहे है।

आपने नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया के बारे में तो जरूर सुना होगा, लेकिन महिला नागा साधु का जीवन सबसे अलग होता है। इनके बारें में हर एक बात निराली होती है। इनका गृहस्थ जीवन से कोई लेना-देना नहीं होता है। इनका जीवन कई कठिनाइयों से भरा होता है। इन लोगों को संसार में क्या हो रहा है इससे कोई मतलब नहीं है।

नागा साधुओं को लेकर कई प्रकार की बातें सामने आती हैं। इनकी जींदगी इतनी आसान नहीं हैं। इनसे जुड़ी जानकारी के बाद आप भी सोचने पर मजबूर हो जाएंगें, क्योंकि नागा साधु बनने के लिए इन्हें बहुत ही कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ता है। इनको नागा साधु या संन्यासन बनने के लिए 10 से 15 साल तक कठिन परिश्रम और ब्रम्हर्चय का पालन करना पड़ता है। जो भी साधु या संन्यासन बनना चाहता है उसे अपने गुरु को इस बात का विश्वास दिलाना पड़ता है कि वह साधु बनने के लायक है। संन्यासन बनने से पहले महिला को यह साबित करना होता है कि उसका अपने परिवार और समाज से अब कोई मोह नहीं है। 

महिला नागा संन्यासन बनने से पहले अखाड़े के साधु-संत उस महिला के घर परिवार और उसके पिछले जन्म की जांच पड़ताल करते हैं। सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि नागा साधु बनने से पहले महिला को खुद को जीवित रहते हुए अपना पिंडदान करना पड़ता है और अपना मुंडन कराना होता है, फिर उस महिला को नदी में स्नान के लिए भेजा जाता है। 
इसके बाद महिला नागा संन्यासन पूरा दिन भगवान का जाप करती है और सुबह ब्रह्ममुहुर्त में उठ कर शिवजी का जाप करती है। शाम को दत्तात्रेय भगवान की पूजा करती हैं। सिंहस्थ और कुम्भ में नागा साधुओं के साथ ही महिला संन्यासिन भी शाही स्नान करती हैं। दोपहर में भोजन करने के बाद फिरसे शिवजी का जाप करती हैं और शाम को शयन करती हैं। इसके बाद महिला संन्यासन को आखाड़े में पूरा सम्मान दिया जाता है। पूरी संतुष्टी के बाद आचार्य महिला को दीक्षा देते हैं।

इतना ही नहीं उन्हें नागा साधुओं के साथ भी रहना पड़ता है। हालांकि महिला साधुओं या संन्यासन पर इस तरह की पाबंदी नहीं है। वह अपने शरीर पर पीला वस्त्र धारण कर सकती हैं। जब कोई महिला इन सब परीक्षा को पास कर लेती है तो उन्हें माता की उपाधि दे दी जाती है और अखाड़े के सभी छोटे-बड़े साधु-संत उस महिला को माता कहकर बुलाते हैं।

पुरुष नागा साधु और महिला नागा साधु में केवल इतना फर्क है कि महिला साधु को पीला वस्त्र लपेटकर रखना पड़ता है और यही वस्त्र पहनकर स्नान करना पड़ता हैं। महिला नागा साधुओं को नग्न स्नान की अनुमति नहीं हैं। कुंभ मेले में भी नहीं।

 

Created On :   23 Dec 2018 11:05 AM GMT

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