अजब-गजब: दुनिया के इस सबसे खतरनाक लैब में जिंदा इंसानों के भीतर डाले गए थे जानलेवा वायरस

अजब-गजब: दुनिया के इस सबसे खतरनाक लैब में जिंदा इंसानों के भीतर डाले गए थे जानलेवा वायरस

Bhaskar Hindi
Update: 2020-09-15 11:14 GMT
अजब-गजब: दुनिया के इस सबसे खतरनाक लैब में जिंदा इंसानों के भीतर डाले गए थे जानलेवा वायरस

डिजिटल डेस्क। कोरोनावायरस को लेकर चीन का एक लैब कंस्पिरेसी थ्योरी के तहत सुर्खियों में है। वुहान शहर में स्थित इस लैब को लेकर बहुत देशों को इस बात का शक है कि, यहां कोरोना वायरस पर काम चल रहा था, जो लापरवाही से या जानबूझकर लीक हो गया। हालांकि, अभी तक इसके कोई प्रमाण नहीं मिले हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे खतरनाक लैब के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके सामने चीन के ये लैब कुछ भी नहीं हैं।

दरअसल, शाही जापानी सेना के सैनिकों ने साल 1930 से 1945 के दौरान चीन के पिंगफांग जिले में ये प्रयोगशाला बना रखी थी। इस लैब का नाम "यूनिट 731" था। वैसे चीन का इससे कोई संबध तो नहीं था, लेकिन लैब में किए जाने वाले प्रयोग चीन के लोगों पर ही होते थे। जापान सरकार के पुरालेख विभाग के पास रखे दस्तावेज में भी यूनिट 731 का जिक्र किया गया है। हालांकि, बहुत से दस्तावेजों को जला दिया गया है।

यूनिट 731 लैब में ऐसे कई दर्दनाक प्रयोग किए गए, जो मजबूत से मजबूत इंसान को भी डरा सकते हैं। इस लैब में जिंदा इंसानों को यातना देने के लिए एक खास प्रयोग था फ्रॉस्टबाइट टेस्टिंग। योशिमुरा हिसातो नाम के एक वैज्ञानिक को इस प्रयोग में बहुत मजा आता था। वो ये देखने के लिए प्रयोग करते थे कि जमे हुए तापमान का शरीर पर क्या असर होता है। इसे जांचने के लिए किसी व्यक्ति के हाथ-पैर ठंडे पानी में डुबो दिए जाते थे। जब व्यक्ति का शरीर पूरी तरह से सिकुड़ जाता, तब उसके हाथ-पैर तेज गर्म पानी में डाल दिए जाते थे। इस प्रक्रिया के दौरान हाथ-पैर पानी में लकड़ी के चटकने की तरह आवाज करते हुए फट जाते थे। इस जांच में कई लोगों की जानें गईं, लेकिन प्रयोग चलता रहा।

यूनिट 731 लैब में एक "Maruta" नाम का शाखा था। इसका प्रयोग तो भयंकर यातना देने वाला था। इस शाखा में हो रहे प्रयोग के तहत यह जानने की कोशिश होती थी कि आखिर इंसान का शरीर कितना टॉर्चर झेल सकता है। इसके लिए किसी व्यक्ति को बिना बेहोश किए धीरे-धीरे उनके शरीर का एक-एक अंग काटा जाता था।

इस लैब में कई तरह के प्रयोग हुए। एक अन्य प्रयोग में जिंदा इंसानों के भीतर हैजा या फिर प्लेग के पैथोजन (वायरस) डाल दिए जाते। इसके बाद संक्रमित व्यक्ति के शरीर की चीरफाड़ कर ये देखने की कोशिश होती थी कि इन बीमारियों का शरीर के हिस्से पर क्या असर होता है। संक्रमित इंसान के मरने का भी इंतजार नहीं किया जाता था और जिंदा रहते हुए ही चीरफाड़ कर दिया जाता था। अगर कोई व्यक्ति इतनी यातना के बाद भी जिंदा बच जाए, तो उसे जिंदा जला दिया जाता था। 

हालांकि, बाद में इस लैब के अधिक से अधिक रिकॉर्ड जला दिए गए। ऐसा कहा जाता है कि इस रिसर्च में शामिल लोग जापान के कई विश्वविद्यालयों या अच्छे जगहों पर काम करने लगे थे। लेकिन आज तक इस लैब से संबंधित कोई चेहरा सामने नहीं आया है।
 

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