दवाईयों पर लागत से कई गुना ज्यादा लिखी जाती है MRP, देश में ड्रग पॉलिसी की जरूरत 

दवाईयों पर लागत से कई गुना ज्यादा लिखी जाती है MRP, देश में ड्रग पॉलिसी की जरूरत 

Bhaskar Hindi
Update: 2019-02-02 17:26 GMT
दवाईयों पर लागत से कई गुना ज्यादा लिखी जाती है MRP, देश में ड्रग पॉलिसी की जरूरत 

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जेनरिक और जीवन रक्षक दवाएं गरीबों को रहात देने के बजाय दवा निर्माताओं से लेकर मेडिकल स्टोर संचालकों की जेब भर रही है। द निजामाबाद चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के संस्थापक अध्यक्ष पुरुषोत्तम सोमानी ने आरोप लगाया है कि दवा निर्माता कंपनियों की ओर से मनमाने ढंग से दवाईयों पर लागत से हजारों गुना ज्यादा एमआरपी लिखी जाती है ताकि कुछ फीसदी छूट देने के बावजूद रिटेलर मोटा मुनाफा कमा सकें। उन्होंने सरकार से सामान्य जनता की हो रही लूट को रोकने के लिए ऐसी व्यवस्था करने की मांग की है कि सभी दवाइयों के कुल बिक्री मूल्य का कारोबारी अंतर 35 फीसदी से ज्यादा न हो।

उन्होंने शनिवार को यहां प्रेस क्लब में संवाददाता सम्मेलन में इस संबंध में तथ्य और आंकड़े पेश करते हुए कहा कि यह इसलिए हो रहा है क्योंकि दवाईयों की कीमतों पर नियंत्रण रखने के लिए देश में कोई ड्रग प्राइस पॉलिसी नहीं है। उन्होंने बताया कि दवाइयों के लेबल पर निर्माताओं की ओर से छापी गई MRP इन दवाओं की बिक्री के दामों से 3000 फीसदी तक होती है। यह केवल जेनेरिक और जीवन रक्षक दवाइयों पर ही नहीं बल्कि सर्जिकल उपकरण के दाम भी बढ़ा-चढ़ाकर प्रिंट किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि इस धंधे में डॉक्टर से लेकर खुदरा व्यापारियों की कंपनियां के साथ मिलीभगत होती है और अपनी दवाएं ज्यादा से ज्यादा बेचने के चक्कर में वे लेबल पर मनमाने ढंग से एमआरपी प्रिंट करवाते हैं।

उन्होंने उदाहरण के तौर पर बताया कि सिप्ला कंपनी द्वारा निर्मित ओकासेट-एल टैबलेट वितरक 3.70 रुपये में निर्माताओं से खरीदते है, पर इस दवा के पैकेट पर 57 रुपए एमआरपी छापी गई है जो कि 1540 फीसदी ज्यादा है। रिलायंस की ओर से निर्मित एरिथ्रोपाइन आईपी 4000 आईयू (डायलिसिस इंजेक्शन) 150 रुपये में वितरकों को मिलती है, लेकिन इस इंजेक्शन के लेबल पर 1400 रुपये एमआरपी प्रिंट है। यह इंजेक्शन अपनी वास्तविक कीमत से 933 फीसदी ज्यादा दाम पर बाजार में बेचा जा रहा है। वहीं वॉकहार्ट द्वारा निर्मित सिनवॉक्स 25 टी (सिनारिजाइन आईपी 25 मिलिग्राम) वितरक को 8 रुपये में मिलती है, लेकिन इन दवाओं पर 160.13 रुपये एमआरपी प्रिंट है जो 2001 फीसदी ज्यादा है।

सोमानी ने कहा कि देश में 32834 प्रकार की दवाईयां बाजार में बेची जाती है। रसायन और उर्वरक मंत्रालय से 24 जनवरी 2019 को मिले पत्र का हवाला देते हुए कहा कि इन कुल दवाईयों में से 80 फीसदी दवाइयां ऐसी है जो कीमतों के नियंत्रण से बाहर है। उन्होंने बताया कि उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू से मिलकर दवाईयों पर बेताहाशा बढ़ा-चढाकर प्रिंट करके सामान्य जनता की हो रही लूट का मुद्दा उनके संज्ञान में लाया।

साथ ही केन्द्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री सदानंद गौडा, केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे पी नढ्‌ढा, रसायन एवं उर्वरक राज्यमंत्री मनसुख मांडवीय के समक्ष भी यह मुद्दा उठाया और दवाईयों पर 35 फीसदी कैप लगाने की मांग की है। सोमानी ने कहा कि सरकार ने हालांकि दवाईयों के बिक्री मूल्य पर 35 फीसदी के कारोबारी अंतर पर नियंत्रण रखने की मांग स्वीकार की है। यदि इस पर अमल नही होने पर वह जल्द ही इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल करेंगे।

 


 

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