बच्चों का बचाएं- हर हफ्ते मिल रहे ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस से पीड़ित 200 विद्यार्थी
डिजिटल डेस्क, नागपुर, चंद्रकांत चावरे। जिले में हर हफ्ते 200 बच्चे ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस (ओएसएमएफ) से पीड़ित पाए जा रहे हैं। इसकी पुष्टि शासकीय दंत चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े कर रहे हैं। इस विभाग द्वारा हर हफ्ते जिले के विविध क्षेत्रों के स्कूली बच्चों के दातों की जांच करने शिविर का आयोजन किया जाता है। हर हफ्ते 5 शिविरों में औसत 1000 बच्चों की जांच की जाती है। जांच के दौरान 20 फीसदी बच्चे ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस नामक बीमारी से ग्रस्त पाए जा रहे हैं।
हर हफ्ते होती है 1000 विद्यार्थियों की जांच
शासकीय दंत चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग द्वारा स्वयंप्रेरित होकर 2008 से लगातार जिले के ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों की स्कूलों के विद्यार्थियों के लिए दंत रोग जांच अभियान चलाया जा रहा है। हफ्ते में पांच दिन अलग-अलग क्षेत्रों की स्कूलों में जाकर विद्यार्थियों के दांतों की जांच की जाती है। जांच के दौरान कीड़े लगना, पायरिया, मसूड़ों में सड़न, दांतों में दर्द होना, कैविटी, दांतों में धब्बे, झनझनाहट, दांतों का पीला पड़ना आदि सामान्य समस्याएं पाई जाती है। इसमें सर्वाधिक समस्या ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस बीमारी की पाई जा रही है। हफ्ते में कमसे कम 5 शिविरों में 1000 विद्यार्थियाें की नि:शुल्क जांच की जाती है। इनमें से 20 फीसदी विद्यार्थी यानी 200 विद्याथिर्यों में यह बीमारी पाई जा रही है।
चलता-फिरता मोबाइल अस्पताल
इस अभियान के लिए दो वाहनों की व्यवस्था है। पिछले साल 1 जनवरी से 31 दिसंबर तक 323 स्कूलों में जाकर विद्यार्थियों की जांच की गई थी। इस साल अभियान अंतर्गत जनवरी से अब तक 80 से अधिक शिविर में 16000 बच्चों की जांच की गई है। इनमें से 3200 बच्चों में ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस बीमारी पाई गई है। इसके अलावा दंत चिकित्सालय में प्रतिदिन की ओपीडी 250 में 25 बच्चे इस बीमारी से ग्रस्त पाए जाते हैं। यह आंकड़ा अलग है। विद्यार्थियों की बात करें तो उनमें से ग्रामीण के 60 फीसदी यानी 120 और शहरी क्षेत्र के 40 फीसदी यानी 80 विद्यार्थी होते हैं। इनका सरकारी सहूलियत के आधार पर उपचार किया जा सकता है।
खुलेआम मिलती है सामग्री इसलिए हो रहे व्यसनाधीन
विद्यार्थियों में ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस बीमारी होने के कई कारण है। इसमें तंबाकू, तंबाकूजन्य पदार्थों का सेवन, पान मसाला, चूना, कत्था आदि का अधिक सेवन प्रमुख कारण माना जाता है। दंत चिकित्सालय के डॉक्टरों के अनुसार स्कूलों व कॉलेजों के अासपास कानूनन 100 मीटर के दायरे में पानठेला या तंबाकू आदि बिक्री पर पाबंदी है। इसके बावजूद वहां ऐसी सामग्री बिकती है। यह खुलेआम होने से विद्यार्थियों में इसकी लत बढ़ रही है। स्थानीय प्रशासन व पुलिस विभाग भी इसकी अनदेखी करता है। परिणामस्वरुप विद्यार्थी कम उम्र से ही खर्रा, तंबाकू, पान मसाला सेवन करते है। इसलिए उनमें ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस की बीमारी पाई जा रही है। ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस के प्रमुख लक्षणों में मुंह खोलने में कठिनाई होना, मुंह में बार-बार छाले होना, होंठ का पतला होना, मुंह के अंदर के ऊतक का सफेद हो जाना, मुंह में सूखापन आना, खाते समय जलन होना, स्वर परिवर्तन होता, स्वाद विकार होना आदि है। विशेषज्ञ डॉक्टरों के अनुसार समय पर उपचार नहीं किए जाने पर मुंह का कैंसर होने का खतरा बना रहता है। विभाग द्वारा नियमित जांच अभियान चलाए जाने से इस खतरे से बच्चों को बचाया जा रहा है।
सामाजिक जागरूकता जरूरी है
शासकीय दंत चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल के जनसंपर्क अधिकारी डॉ. वैभव कारेमोरे के मुताबिक सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग द्वारा स्कूली बच्चों के लिए जांच अभियान चलाया जा रहा है। इस दौरान ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस के सर्वाधिक पीड़ित पाए जा रहे हैं। कानूनन पाबंदी के बावजूद स्कूलों के 100 मीटर के भीतर पानठेला या ऐसी टपरी पर खर्रा, तंबाकू, पान मसाला जैसी सामग्री खुलेआम बिक रही है। इनके कारण बच्चे व्यसनाधीन हो रहे हैं। स्थानीय प्रशासन और पुलिस विभाग ने इसकी दखल लेनी चाहिए। बच्चों का भविष्य संकट में आ रहा है। संभव है कि आने वाले समय में मुंह के कैंसर के सर्वाधिक मरीज बच्चे ही होंगे। इसलिए नागरिकों ने और सरकारी विभागों ने जागरूकता दिखाने की आवश्यकता है।
Created On :   7 May 2023 5:14 PM IST