ग़रीबनवाज़ लोकार्पण: संतोष चौबे का ताजा कहानी संग्रह 'ग़रीबनवाज़' का लोकार्पण साहित्य अकादमी, दिल्ली में आयोजित हुआ

संतोष चौबे का ताजा कहानी संग्रह ग़रीबनवाज़ का लोकार्पण साहित्य अकादमी, दिल्ली में आयोजित हुआ
  • साहित्य अकादमी, दिल्ली में आयोजित हुआ लोकार्पण समारोह
  • लेखक की पवित्रता और भोलापन हमेशा बना रहना चाहिए–संतोष चौबे

भोपाल। वरिष्ठ कवि–कथाकार, निदेशक विश्व रंग एवं रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे के ताजा कहानी संग्रह 'ग़रीबनवाज़' का लोकार्पण एवं पुस्तक चर्चा का आयोजन साहित्य अकादमी, दिल्ली के सभागार में समारोह पूर्वक किया गया। यह महत्वपूर्ण आयोजन वनमाली सृजन पीठ दिल्ली एवं राजकमल प्रकाशन समूह, दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया।

उल्लेखनीय है कि 'ग़रीबनवाज़' के पूर्व संतोष चौबे के छः कहानी संग्रह 'हल्के रंग की कमीज', 'रेस्त्राँ में दोपहर', 'नौ बिन्दुओं का खेल', 'बीच प्रेम में गाँधी', 'मगर शेक्सपियर को याद रखना' तथा 'प्रतिनिधि कहानियाँ' प्रकाशित और काफी चर्चित हुए हैं।

'ग़रीबनवाज़' का लोकार्पण सुप्रसिद्ध कथाकार ममता कालिया जी के आत्मीय सान्निध्य में और वरिष्ठ रचनाकार जानकी प्रसाद शर्मा की अध्यक्षता में अतिथियों द्वारा किया गया।

इस अवसर पर संतोष चौबे ने अपने ताजा कहानी संग्रह से "ग़रीबनवाज़" कहानी का बेहतरीन पाठ किया। उन्होंने इस अवसर पर अपनी रचना प्रक्रिया पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि पठनीयता को लेकर मैं हमेशा सजगता बरतता हूँ। कहानी पढ़ते समय पाठक पहले ही वाक्य से कहानी के भीतर प्रवेश करें और फिर उसे पूरा पढ़कर ही रहें। मेरा मानना है कि लेखक की पवित्रता और उसका भोलापन हमेशा बना रहना चाहिए। मेरी कहानियों का मुख्य आधार उनमें दृश्यात्मकता और इंटेनसिटी का होना हैं।

सुप्रतिष्ठित कथाकार ममता कालिया जी ने कहा कि आज हम सुप्रसिद्ध कथाकार संतोष चौबे जी से मुखातिब है, वे सामाजिक सरोकारों और मानवता की पक्षधरता के प्रति काफी सजग है। 'ग़रीबनवाज़' एक यथार्थवादी कहानी है। इसके अपने सामाजिक सरोकार हैं। इसमें श्रमजीवी पक्ष और वर्चस्ववादी पक्ष का यथार्थवादी द्वंद है। संतोष चौबे मेहनतकश और श्रमजीवी लोगों के पक्ष में खड़े होते हैं। वे अपनी लेखनी से समाज को सकारात्मक और स्वस्थ सोच की ओर ले जाते हैं।

लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार जानकीप्रसाद शर्मा ने कहा कि संतोष चौबे की कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता है उनकी असाधारण पठनीयता का होना। उनकी कहानियाँ पाठक को पहले ही वाक्य से अपने संगसाथ बहाकर ले जाती है। उन्होंने आगे कहा कि रचनाकार अपने समय को रेखांकित करते हुए लिखता है लेकिन उसके सिरे कहाँ कहाँ तक जाते हैं यह महत्वपूर्ण होता है। पाठकीय दृष्टिकोण से जब मैं संतोष चौबे की कहानियों से गुजरना हूँ तो पाता हूँ कि उनकी कहानियाँ अपने समय के बहुत गंभीर सवाल पूरी सजगता से उठाती हैं। पाठक होने के नाते हम उन सवालों के प्रति बैचेन हो जाते हैं। संतोष चौबे अपनी कहानियों में कोई सीधा सपाट रास्ता नहीं बरतते हैं। उनकी कहानियों में स्मृतियों की डिवाइस होती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे अपनी कहानियों में आलोचना भी रचते हैं।

कार्यक्रम में वरिष्ठ आलोचक–संपादक अखिलेश ने कहा कि संतोष चौबे जी की कहानी यथार्थ की गहनता और व्याप्ति में जाकर सत्य को आख्यान में रूपांतरित करने का जतन करती है। इस प्रक्रिया में वह कहानी कहने के अनेक अनुशासनों को नकारती है और यूँ अपनी तरह के कथानुशासन एवं शिल्प की निर्मिति करती है। संतोष जी कहानी में कई विधाओं का व्यापक उपयोग करते हुए नवाचार को महत्ता देते हैं। उनकी कहानियों में जीवन के तजुर्बे और दृश्यात्मकता जबरदस्त होती हैं।

'ग़रीबनवाज़' की अधिकसंख्य कहानियों में साहित्य, कला से जुड़े चरित्र उपस्थित हैं लेकिन कहानियाँ महज यहाँ से उड़ान भरती हैं। अंततः वे आर्थिक उदारीकरण से उपजी मूल्यहीनता, लालच, कपटीपन और क्षरणशील आधुनिकता का प्रत्याखान करती हैं। इन चीजों में इतनी निष्ठुरता है कि समाज की तमाम सुंदरताएँ नष्ट हो रही है। संतोष चौबे की कहानी पूंजी, तकनीक एवं ताक़त के सहमेल से उपजी विरूपता से मुठभेड़ करती अंततः जीवन के सुंदरतम के पक्ष में खड़ी होती है।

वरिष्ठ आलोचक विनोद तिवारी ने कहा कि इस संग्रह की खुबसूरती यह हैं कि जब कभी लंबी कहानियों का इतिहास बनेगा तो इन्हें जरूर रेखांकित किया जाएगा। संतोष चौबे की कहानियों में प्रेम, करुणा, मानवता, दया प्रमुखता से उपस्थित होते हैं। कहानियों को रचते हुए वे विधाओं से बाहर भी जाते हैं। उनकी कहानियों में साहित्यिक, सांस्कृतिक वातावरण के साथ सामाजिक सरोकार का मोटिव भी प्रमुखता से होता हैं। संतोष चौबे की कहानियों में अंत अनायास ही नहीं होता वे अंत की चिंता पूर्ण संवेदनशीलता के साथ करते हैं।

वरिष्ठ कथाकार अल्पना मिश्र ने कहा कि इतने तेज गति से भागते समय में आत्मीय माहौल रचते हुए संतोष जी की कहानियाँ धीरे–धीरे से चलती है और अचानक से विचार एक केन्द्रीय बिंदु के रूप में हमारे समक्ष आ जाता है।

युवा कथाकार आशुतोष ने कहा कि संतोष चौबे जी कहानियों का आरंभ कौतूहल के साथ करते हैं और अंत भी कौतूहल के साथ करते हैं। उनकी कहानियाँ लेखकीय नियंत्रण में रहती हैं। वे दार्शनिक दृष्टि के स्थान पर वैज्ञानिक और मानवीय दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुए कहानियाँ रचते हैं। कहानियाँ रचते हुए वे अपने विचार और अनुभवों को प्राथमिकता देते हैं।

लोकार्पण समारोह में स्वागत उद्बोधन वरिष्ठ कवि एवं वनमाली सृजन पीठ, दिल्ली के अध्यक्ष लीलाधर मंडलोई ने दिया। अतिथियों का स्वागत वनमाली सृजन पीठ की राष्ट्रीय संयोजक एवं आईसेक्ट पब्लिकेशन की प्रबंधक सुश्री ज्योति रघुवंशी द्वारा किया गया।

इस यादगार लोकार्पण समारोह का संचालन युवा रचनाकार प्रांजल धर ने किया। प्रारंभिक संचालन युवा कथाकार एवं वनमाली कथा के संपादक कुणाल सिंह द्वारा किया गया। आभार राजकमल प्रकाशन समूह के अशोक माहेश्वरी ने व्यक्त किया।

इस अवसर पर दिल्ली एनसीआर से बड़ी संख्या में वरिष्ठ एवं युवा रचनाकारों तथा साहित्यप्रेमियों ने रचनात्मक भागीदारी की।

Created On :   5 Sept 2025 7:37 PM IST

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