शोधार्थी सम्मेलन समापन: हिंदी शोध की वैश्विक गूंज — रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में "विश्व रंग अंतरराष्ट्रीय हिंदी शोधार्थी सम्मेलन" का भव्य ऐतिहासिक समापन

हिंदी शोध की वैश्विक गूंज — रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में विश्व रंग अंतरराष्ट्रीय हिंदी शोधार्थी सम्मेलन का भव्य ऐतिहासिक समापन
  • विश्व स्तरीय व्यक्तित्व भारतीय भाषा में ही पैदा होते हैं: डॉ करुणाशंकर उपाध्याय
  • भारतीय, राष्ट्रीय और सांस्कृतिकता के शोध को मिले प्राथमिकता: संतोष चौबे

भोपाल। रबींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, रायसेन द्वारा विश्व रंग फाउंडेशन के सहयोग से आयोजित "विश्व रंग अंतरराष्ट्रीय हिंदी शोधार्थी सम्मेलन" का समापन अत्यंत गरिमामय, वैचारिक और सांस्कृतिक माहौल में संपन्न हुआ। इस दो दिवसीय सम्मेलन में देश-विदेश के हिंदी प्रेमियों, शोधार्थियों, शिक्षकों, विद्वानों एवं सांस्कृतिक दूतों ने भाग लिया। आयोजन का मुख्य उद्देश्य हिंदी को वैश्विक शोध की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करना और नई पीढ़ी को भारतीय भाषाओं, विशेषतः हिंदी में मौलिक शोध के लिए प्रेरित करना रहा। कार्यक्रम की समन्वयक डॉ सावित्री सिंह परिहार ने बताया कि इस सम्मेलन में ओमान, कतर, अर्मेनिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, अफगानिस्तान, चीन और भारत के अलग-अलग राज्यों से आये शोधार्थियों ने हिस्सा लिया। अतिथियों द्वारा शोधार्थी विजेताओं को सर्टिफिकेट और नगद राशि से किया गया सम्मानित।

समापन सत्र के मुख्य अतिथि डॉ करुणाशंकर उपाध्याय, विभाग अध्यक्ष हिंदी मुंबई विश्वविद्यालय ने कहा कि विश्व स्तरीय व्यक्तित्व भारतीय भाषा में ही पैदा होते हैं। विकास का संबंध स्वभाषा से होता है तभी जितने विकसित देश हैं उन्होंने अपनी स्वभाषा मैं ही विकास किया है। उन्होंने आगे कहा कि ऐसे अंतरराष्ट्रीय आयोजनों से हिंदी को वैश्विक संवाद का नया आयाम मिलता है। शोधार्थियों और विद्वानों के विचार-विनिमय से भाषा और संस्कृति के नए अध्याय खुलते हैं। हिंदी आज केवल साहित्य तक सीमित नहीं, बल्कि वैश्विक बौद्धिक विमर्श का हिस्सा बन रही है। यह सम्मेलन शोध और संवाद की इस चेतना को और अधिक सशक्त करेगा।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलाधिपति संतोष चौबे ने कहा कि विश्व रंग और विज्ञान पर्व से इस शोध सम्मेलन की प्रेरणा मिली। उन्होंने कहा कि भारतीय, राष्ट्रीय और सांस्कृतिकता को मजबूत करने वाली शोध को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हिंदी वैश्विक भाषा बनने वाली है इस पर शोध की आवश्यकता है। हिंदी और तकनीक को जोड़कर देखा जाना चाहिए। भाषा सत्तात्मक विमर्श है इस पर भी चर्चा करना होगा। उन्होंने आगे कहा कि हिंदी केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक चेतना की वाहक है। विश्वविद्यालय का यह प्रयास युवा शोधार्थियों में नई ऊर्जा और दृष्टि का संचार करेगा।

बतौर विशिष्ट अतिथि ब्रिटेन से पधारी डॉक्टर वंदना मुकेश ने अपने संबोधन में कहा कि शोध जीवन से कभी समाप्त नहीं होता। शोध से ही जीवन में जीवंतता बनी रहती है। हम हमेशा शोध करते ही रहते हैं केवल एकेडमिक रहती है।

अमेरिका से पधारी सुश्री कुसुम नेपशिक ने बताया कि पढ़ रहे हैं विदेशों में लोग हिंदी पढ़ रहे हैं क्योंकि वह अपनी जड़ों और संस्कृति से जुड़ना चाहते हैं। उन्होंने अमेरिका में हिंदी पढ़ना और वहां की उत्सुकताता को विस्तार से बताया।

वही डॉ आशुतोष जी ने बताया कि हिंदी का गुणात्मक विस्तार हो रहा है जबकि हमें हिंदी का गुणात्मक विस्तार करना है। वैचारिक स्वराज की भाषा हिंदी को बनाने की आवश्यकता है। संवाद और संप्रेषण के साथ शास्त्र की भाषा बने हिंदी।

डॉ जितेंद्र श्रीवास्तव ने अपने वक्तव्य में कहा कि शोध की ट्रेनिंग आवश्यक है प्राध्यापकों को यह ट्रेनिंग अवश्य देनी चाहिए।

आज के सत्रों में राष्ट्रीय चेतना और हिंदी विषय पर डॉ. पूर्णिमा सिंह ने भावपूर्ण वक्तव्य में कहा कि "हिंदी हमारी पहचान है, इसे आत्मगौरव से अपनाना चाहिए।

डॉ. शारदा सिंह ने शोध में मौलिकता पर बल दिया और अरुणेश शुक्ल ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा की भूमिका को रेखांकित किया।

अगले सत्र में वैश्विक संदर्भों में हिंदी का उदय (पुणे), ब्रिटेन से डॉ. वंदना मुकेश, अफगानिस्तान से मोहम्मद फहीम जलाद, आर्मेनिया से अरीना, और मुंबई विश्वविद्यालय से डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय ने विश्व के विविध देशों में हिंदी की स्थिति, संभावनाएँ और आवश्यक प्रयासों की चर्चा की। डॉ. वंदना ने कहा, “शोध केवल अकादमिक दायित्व नहीं, सामाजिक उत्तरदायित्व है।”

अंतिम सत्र में आदिवासी समाज और बोलियाँ विषय पर प्रमुख वक्ता रहे डॉ. अरुणाभ सौरभ, डॉ. कीर्ति शर्मा और अमेरिका से डॉ. कुसुम ने भाषायी विविधता, संस्कृति और अनुसंधान के माध्यम से आदिवासी अस्मिता की रक्षा की आवश्यकता को रेखांकित किया।

सत्रों के समापन पर विचारों की गहनता, शोध की गंभीरता और भाषा के प्रति सम्मान से परिपूर्ण रहा। यह आयोजन उन सभी शोधार्थियों, शिक्षकों और विद्यार्थियों के लिए प्रेरणास्रोत बना जो हिंदी को केवल भाषा नहीं, एक सांस्कृतिक चेतना के रूप में देखते हैं।

डॉ. विशाखा राजुरकर ने संचालन में साहित्यिक गरिमा और भाव-बहुलता के साथ सभी वक्ताओं को संयोजित किया। कार्यक्रम के अंत में कुलसचिव डॉ संगीता जौहरी ने सभी का आभार व्यक्त किया।

Created On :   19 July 2025 7:11 PM IST

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