कांवड़ यात्रा 2025: जबलपुर में आस्था, प्रकृति और संस्कृति का अद्भुत संगम

जबलपुर में आस्था, प्रकृति और संस्कृति का अद्भुत संगम
  • मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी कांवड़ यात्रा - 15वां भव्य संस्करण, जबलपुर में संपन्न।
  • दादा गुरु का संदेश: "कांवड़ माता-पिता, प्रकृति और शिवभक्ति के प्रति प्रेम का प्रतीक है।"
  • “बोल बम भोले” के जयघोष से गूंजता रहा यात्रा मार्ग।

Jabalpur News: जबलपुर शहर इस बार एक ऐतिहासिक और भव्य धार्मिक आयोजन का साक्षी बना। 21 जुलाई 2025 को यहां निकली संस्कार कांवड़ यात्रा ने न केवल शिवभक्तों की आस्था को उजागर किया, बल्कि पर्यावरण प्रेम और सामाजिक एकता का भी बेहतरीन उदाहरण पेश किया। इसे मध्यप्रदेश की अब तक की सबसे बड़ी कांवड़ यात्रा माना गया है।

यात्रा की शुरुआत और मार्ग

सुबह 7 बजे गौरीघाट, नर्मदा तट से हज़ारों शिवभक्तों ने “बोल बम” के जयघोष के साथ पदयात्रा शुरू की। लगभग 35 किलोमीटर की यह यात्रा गुरुकुल, रामपुर, रांझी जैसे इलाकों से गुजरती हुई खमरिया स्थित कैलाशधाम में जाकर समाप्त हुई।

पंद्रह वर्षों की परंपरा और उद्देश्य

यह यात्रा पिछले 15 वर्षों से लगातार की जा रही है। इस आयोजन का उद्देश्य सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि प्रकृति संरक्षण और सामाजिक जागरूकता भी है।

हर यात्री नर्मदा जल के साथ एक पौधा भी साथ लेकर चलता है, जिसे अंत में कैलाशधाम की पहाड़ियों पर रोपा जाता है। यह संदेश देता है — “संस्कार और संरक्षण साथ-साथ।”

श्रद्धा और सामाजिक समरसता

श्रावण के पावन महीने में यह यात्रा शिवभक्तों के लिए बेहद खास होती है। यात्रा में हर उम्र और वर्ग के लोग शामिल हुए — युवा, बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे सबने मिलकर यह पदयात्रा पूरी की।

रास्ते भर भोजन, पानी, और प्राथमिक चिकित्सा के इंतज़ाम किए गए थे। लोगों ने यात्रा के हर मोड़ पर यात्रियों का स्वागत किया।

प्रशासनिक और सुरक्षा व्यवस्था

यात्रा को सुरक्षित और व्यवस्थित बनाए रखने के लिए 2000 से अधिक स्वयंसेवक और पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे।

पूरे मार्ग पर भारी वाहनों की आवाजाही रोक दी गई, ताकि यात्रियों को कोई असुविधा न हो।

दादा गुरु का संदेश

आयोजन के मार्गदर्शक ‘दादा गुरु’ ने कहा,

“कांवड़ केवल शिवभक्ति नहीं, माता-पिता और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है।”

उन्होंने बताया कि यह यात्रा एकता, सेवा और जिम्मेदारी का प्रतीक बन चुकी है।

पर्यावरण की सेवा भी साथ-साथ

इस यात्रा की सबसे खास बात यह रही कि भक्त केवल पूजा के लिए नहीं, बल्कि हरियाली बढ़ाने के लिए भी निकले। यात्रा के अंत में हज़ारों पौधे रोपे गए, जिससे पहाड़ी क्षेत्र अब हरियाली की ओर बढ़ रहा है।

संस्कार कांवड़ यात्रा 2025 केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक जन-जागरण है। यह यात्रा यह दिखाती है कि श्रद्धा के साथ जब प्रकृति प्रेम और सामाजिक भावना जुड़ती है, तब एक सकारात्मक बदलाव संभव है। जबलपुर की यह यात्रा आने वाली पीढ़ियों के लिए एक संस्कार और पर्यावरण संरक्षण की मिसाल बनकर सामने आई है।

Created On :   21 July 2025 5:43 PM IST

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