मुद्दा: मराठा समाज की अंतिम अधिसूचना जारी करने चार महीने का समय लगेगा - मुख्यमंत्री

मराठा समाज की अंतिम अधिसूचना जारी करने चार महीने का समय लगेगा - मुख्यमंत्री
  • सरकार को 8 लाख 47 हजार आपत्तियां मिली
  • सामाजिक न्याय विभाग आपत्तियों की छानबीन कर रहा
  • राज्य में 26 फरवरी से 10 प्रतिशत मराठा आरक्षण लागू किया

डिजिटल डेस्क, मुंबई। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि मराठा समाज के लोगों के सगे-संबंधियों को भी कुणबी जाति का प्रमाणपत्र देने के संबंध में अंतिम अधिसूचना जारी करने में चार महीने का समय लगेगा।

मुख्यमंत्री ने दी विस्तृत जानकारी : शनिवार को राज्य अतिथिगृह सह्याद्री में मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार ने 26 जनवरी को मराठा समाज के सगे-संबंधियों के संबंध में अधिसूचना जारी किया था। इस अधिसूचना पर सरकार ने सुझाव और आपत्तियां मंगाई थीं। जिस पर सरकार को 8 लाख 47 हजार आपत्तियां मिली हैं। राज्य के सामाजिक न्याय विभाग की ओर से आपत्तियों की छानबीन की जा रही है। लेकिन सामाजिक न्याय विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों पर लोकसभा चुनाव के काम की भी जिम्मेदारी दी गई है। इसलिए सरकार को अंतिम अधिसूचना जारी करने में चार महीने का समय लगेगा। राज्य के विधि व न्याय विभाग की स्वीकृति से अंतिम अधिसूचना जारी की जाएगी। इसी बीच मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार ने राज्य में 26 फरवरी से 10 प्रतिशत मराठा आरक्षण लागू किया है।

मराठा समाज को आरक्षण मिलता रहेगा : कुछ लोग मराठा आरक्षण के खिलाफ अदालत में गए हैं। लेकिन अदालत ने मराठा आरक्षण कानून पर रोक नहीं लगाई है। सरकार ने बाम्बे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल किया है। मुझे विश्वास है कि भविष्य में भी मराठा समाज को आरक्षण मिलता रहेगा। दूसरी ओर मराठा आंदोलक मनोज जरांगे-पाटील ने कहा कि सरकार ने संगे-संबंधियों की अधिसूचना को लागू नहीं किया है। इसलिए हम लोग लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ दल के उम्मीदवारों को गुलाल नहीं लगने देंगे।

शिक्षकों की बुनियादी समस्याओं पर ध्यान देने की मांग : सभी स्कूलों के शिक्षकों के लिए आगामी सत्र से ड्रेस कोड लागू किया गया है जिस पर शिक्षक संगठनों ने नाराजगी जताते हुए इसे गैरजरूरी बताया है। शिक्षक भारती के कार्याध्यक्ष सुभाष मोरे ने कहा कि शिक्षक पहले से ही पहनावे को लेकर जारी सूचनाओं का पालन कर रहे हैं इसलिए नए आदेश का कोई औचित्य नहीं है। कौन क्या पहनेगा यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का विषय है। सरकार को पहले शिक्षकों की ठेके पर नियुक्ति बंद कर उनके लिए उचित वेतन, पेंशन, प्रोविडेंट फंड, कैशलेस स्वास्थ्य सुविधा की व्यवस्था करनी चाहिए। सिर्फ नाम के आगे टीआर लगाने से शिक्षकों को सम्मान नहीं मिलने लगेगा। शिक्षा विभाग को शिक्षकों को सम्मान देना होगा और उनकी परेशानियां दूर करनी होगी। शिक्षा के अलावा दूसरे काम कराने बंद करने होंगे और संच मान्यता में हर विषय के शिक्षकों को मंजूरी देनी होगी। महाराष्ट्र राज्य शिक्षक परिषद के शिवनाथ दराडे ने कहा कि शिक्षकों को किस तरह के कपड़े पहनने चाहिए यह पहले से ही आचार संहिता में निर्धारित है।

1981 के नियमावली में इसकी जानकारी है और शिक्षक इसका अनुकरण भी कर रहे हैं। इसके अलावा शिक्षा से लेकर बोलचाल, उठने-बैठने, सहन सहन, खानपान जैसी सभी चीजों में आधुनिकता का प्रभाव है। ऐसे में सिर्फ पोशाक परंपरागत क्यों होनी चाहिए। शिक्षक कोई मॉडलों की तरह के कपड़े पहनकर स्कूल आते हैं ऐसी कोई शिकायत नहीं है। ज्यादातर शिक्षकाएं पहले से ही साड़ी या सलवार कुर्ता पहनतीं हैं इसमें नई क्या बात है। सरकार सभी शिक्षकों को एक ही रंग के कपड़े पहनाकर क्या हासिल करना चाहती है। ड्रेस ठीक ठाक हो जिससे शरीर ढका हो और वह साफ सुथरा हो यह बात स्वीकार्य है लेकिन ड्रेस कोड स्वीकार नहीं है। हमारी सरकार से मांग है कि वह सिर्फ मार्गदर्शक सूचना दे दे और ड्रेस कोड जबरन लागू करने की कोशिश न करे। भाजपा शिक्षक आघाडी से जुड़े अनिल बोरनारे ने भी कहा कि कहीं कोई शिकायत आई होगी तो इसका मतलब यह नहीं कि राज्यभर के शिक्षकों का पहनावा ठीक नहीं होता। शिक्षकों को अपनी जिम्मेदारी का एहसास होता है और वे जानते हैं कि स्कूल किस तरह के कपड़े पहनकर जाने चाहिए। ड्रेस कोड की कोई जरूरत नहीं है आचार संहिता खत्म होते ही हम सरकार से बात करेंगे और इसे वापस लेने को कहेंगे।

Created On :   16 March 2024 1:44 PM GMT

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