कोर्ट-कचहरी: मराठा उम्मीदवारों को बॉम्बे हाई कोर्ट से बड़ी राहत

मराठा उम्मीदवारों को बॉम्बे हाई कोर्ट से बड़ी राहत
राज्य सरकार समेत 100 से अधिक मराठा उम्मीदवारों की याचिका पर फैसला

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट से शुक्रवार मराठा उम्मीदवारों को बड़ी राहत मिली। अदालत ने शुक्रवार को मराठा समुदाय के उम्मीदवारों के लिए राज्य सरकार की नौकरियों में आरक्षण से संबंधित महाराष्ट्र प्रशासनिक न्यायाधिकरण (एमएटी) के फरवरी 2023 के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि मराठा समुदाय के उम्मीदवार आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) में सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं। अदालत ने राज्य सरकार के फैसले को बरकरार रखा है।

न्यायमूर्ति नितिन एम.जामदार और न्यायमूर्ति मंजूषा ए.देशपांडे की खंडपीठ ने शुक्रवार को उप-निरीक्षक, कर सहायक और क्लर्क (टाइपिस्ट) के पदों के लिए फरवरी 2023 के एमएटी के आदेश को चुनौती देने वाली राज्य सरकार समेत 100 से अधिक मराठा उम्मीदवारों की याचिकाओं पर फैसला सुनाया। खंडपीठ ने माना कि महाराष्ट्र प्रशासनिक न्यायाधिकरण का आदेश स्थापित कानूनी सिद्धांतों से भटक गया है और उसके आदेश ने बड़ी संख्या में उम्मीदवारों पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। अदालत ने कहा कि प्रतिवादियों की मांग के अनुसार यथास्थिति बनाए रखने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि राज्य सरकार द्वारा की जाने वाली नियुक्तियों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। सरकार की ओर से पेश महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ ने कहा कि विज्ञापनों में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि पद और आरक्षण दोनों परिवर्तन के अधीन थे।

मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने मराठा समुदाय को आरक्षण प्रदान करने वाले महाराष्ट्र कानून (एसईबीसी अधिनियम) के प्रावधानों को रद्द कर दिया था, जिसने राज्य में कुल कोटा को 1992 के इंद्रा साहनी मामले में अदालत द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा से ऊपर ले लिया था। उस कानून को जून 2019 में हाई कोर्ट ने बरकरार रखा था, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा मराठा कोटा रद्द करने के बाद राज्य सरकार ने एसईबीसी श्रेणी के तहत उम्मीदवारों के लिए ईडब्ल्यूएस कोटा सुविधा बढ़ा दी थी।

ट्रिब्यूनल ने 2 फरवरी 2023 को चुनौती को बरकरार रखा और उन उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित कर दिया, जिन्होंने शुरू में एसईबीसी (मराठा) श्रेणी के तहत आवेदन किया था। मैट के आदेश से क्षुब्ध अभ्यर्थियों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि विवादित मैट आदेश ने कानून और तथ्यों को गलत दिशा में निर्देशित किया है। विवादित जीआर को पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं किया जा सकता है।

Created On :   22 Dec 2023 1:18 PM GMT

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