बॉम्बे हाई कोर्ट: बीएमसी के अस्पताल की महिला सुरक्षा रक्षक को बर्खास्तगी के दौरान के वेतन एवं भत्ता देने का निर्देश, सेवानिवृत्त अधीक्षक को राहत

बीएमसी के अस्पताल की महिला सुरक्षा रक्षक को बर्खास्तगी के दौरान के वेतन एवं भत्ता देने का निर्देश, सेवानिवृत्त अधीक्षक को राहत
  • सड़क दुर्घटना में महिला सुरक्षा रक्षक को दिव्यांग होने पर किया गया था बर्खास्त
  • सेवानिवृत्त 75 वर्षीय अधीक्षक को मिली बड़ी राहत
  • अदालत ने 12 साल बाद के सेवानिवृत्त अधीक्षक के बकाया पेंशन एवं ग्रेच्युटी को देने का दिया निर्देश

Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) में कार्यरत महिला सुरक्षा रक्षक को सड़क दुर्घटना में 55 फीसदी दिव्यांग होने पर बर्खास्त किए जाने के दौरान के बेतन एवं भत्ता देने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि महिला सुरक्षा रक्षक के साथ दुर्घटना उस समय हुई, जब वह किसी अन्य कार्यस्थल पर सौंपी गई अपनी ड्यूटी के लिए रिपोर्ट करने जा रही थी। ऐसे में वह 1995 के अधिनियम की धारा 47 के संरक्षण की हकदार होगी। न्यायमूर्ति सुमन श्याम और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ ने 49 वर्षीय ज्योति जयेश तायडे की याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता की बर्खास्तगी को अवैध माना जाता है। उसे उस अवधि के लिए बकाया वेतन और भत्तों का भुगतान करें, जिस अवधि के दौरान उसे नौकरी से बर्खास्त किया गया था। याचिकाकर्ता को आदेश से तीन महीने की अवधि के भीतर बर्खास्तगी के दौरान की राशि का भुगतान किया जाए। ऐसा न करने पर अन्य कानूनी परिणामों के अलावा आदेश की तिथि से राशि की वसूली तक बकाया राशि पर 9 फीसदी प्रतिवर्ष की दर से ब्याज भी देना होगा। पीठ ने कहा कि दिव्यांग होने के बावजूद याचिकाकर्ता 1995 के अधिनियम की धारा 47(1) के अनुसार सेवा में बने रहने की हकदार थी। इसलिए उस अवधि के लिए उसका वेतन अस्वीकार नहीं किया जा सकता था। इस मामले को देखते हुए हमारा मत है कि "काम नहीं तो वेतन नहीं’ का सिद्धांत उस दावे के संबंध में कोई प्रभाव नहीं डालेगा, जो 1995 के अधिनियम की धारा 47 के तहत संरक्षित है। ज्योति जयेश तायडे 12 अप्रैल 1995 को बीएमसी में सुरक्षा रक्षक के रूप में नियुक्त हुई। उन्हें बीएमसी के ‘टी' वार्ड में तैनात किया था। बाद में उन्हें 12 अगस्त 2009 को मुलुंड जनरल अस्पताल (अग्रवाल नगर अस्पताल) की सुरक्षा चौकी पर ड्यूटी पर रिपोर्ट करने के लिए कहा गया। जब वह अपने पति के साथ मोटरसाइकिल से उस अस्पताल में ड्यूटी पर जा रही थी, तो एक कार ने उनकी मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी। वह गंभीर रूप से घायल हो गई। वह कई महीने अस्पताल में भर्ती रहीं और ठीक होने के बाद 55 फीसदी दिव्यांग हो गई। 23 अगस्त 2023 को ड्यूटी से बर्खास्त कर दिया गया। उन्होंने बर्खास्तगी को दिव्यांगजन कल्याण आयुक्तालय में चुनौती दी और उन्हें 4 सितंबर 2015 नौकरी पर बहाली के आदेश दिया। बीएमसी ने याचिकाकर्ता की बहाली की, लेकिन उनकी बर्खास्तगी के दौरान के वेतन और भत्ता देने से इनकार कर दिया। ज्योति तायडे ने बीएमसी के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी।


बॉम्बे हाई कोर्ट से केंद्रीय उत्पाद शुल्क के सेवानिवृत्त 75 वर्षीय अधीक्षक को मिली बड़ी राहत

उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने 18 साल बाद केंद्रीय उत्पाद शुल्क के सेवानिवृत्त 75 वर्षीय अधीक्षक सोमशेखर काशीनाथ बाबालडी के बकाया पेंशन एवं ग्रेच्युटी देने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि केंद्रीय उत्पाद शुल्क को अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने का कोई अधिकार नहीं था, क्योंकि इस घटना को 1976 और 1991 में घटित माना जाएगा। अदालत ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के 31 जून 2024 का आदेश रद्द कर दिया है। न्यायमूर्ति एम.एस. कार्णिक और न्यायमूर्ति एन.आर. बोरकर की पीठ ने सोमशेखर काशीनाथ बाबालडी की याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि केंद्रीय उत्पाद शुल्क अगस्त 2013 से 14 अगस्त 2025 तक याचिकाकर्ता की पेंशन की बकाया राशि 50 फीसदी और ग्रेच्युटी की राशि 3 सप्ताह के भीतर वितरित करें। इसके साथ ही वे अगस्त 2025 से याचिकाकर्ता को नियमित रूप से मासिक पेंशन का भुगतान करें। याचिकाकर्ता कर्नाटक के हिंदू गोल्ला जाति से संबंधित है, जिसे वहां खानाबदोश जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त है। वह 10 जून 1976 केंद्रीय उत्पाद शुल्क निरीक्षक के पद पर नियुक्त हुए। 1979 में निरीक्षकों की वरिष्ठता सूची प्रकाशित की गई, जिसमें उनकी जाति ‘एसटी' दर्शाई गई और बाद में 26 जून 1991 को उनकी जाति को एसटी मानकर उन्हें केंद्रीय उत्पाद शुल्क के अधीक्षक के पद पर पदोन्नत किया गया। जून 2004 में वह अपनी पत्नी के खराब स्वास्थ्य के कारण स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का विकल्प चुना। उनकी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति आवेदन स्वीकार कर लिया गया और उन्हें 30 सितंबर 2004 के आदेश के तहत रिहा कर दिया गया। इसके बाद 23 जून 2004 केंद्रीय उत्पाद शुल्क ने याचिकाकर्ता को सूचित किया कि याचिकाकर्ता की जाति उसकी सेवा पुस्तिका में ‘हिंदू गोल्ला' दिखाई गई है, जबकि उनकी जाति का एसटी के रूप में होने का कोई उल्लेख नहीं है। उनकी अगस्त 2013 से पेंशन और ग्रेच्युटी रोक दी गई। याचिकाकर्ता ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (न्यायाधिकरण) के 6 अगस्त 2013 के आदेश को चुनौती दी थी। न्यायाधिकरण ने उनकी याचिका को 31 जुलाई 2024 को खारिज कर दिया।

Created On :   19 Oct 2025 10:32 PM IST

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