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बॉम्बे हाई कोर्ट: अवैध पत्नी की संतान संपत्ति में हिस्से की हकदार, मुख्यमंत्री राहत कोष के वितरण की निगरानी नहीं हो सकती

- पत्नी से तलाक हुए बिना दूसरा विवाह अमान्य है, लेकिन अवैध पत्नी की संतान संपत्ति में हिस्से की हकदार हैं
- मुख्यमंत्री राहत कोष के वितरण की निगरानी नहीं की जा सकती, लेकिन उम्मीद है कि इसके उद्देश्य से कोई विचलन नहीं होगा
Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने दो पत्नियों के बच्चों में संपत्ति विवाद को लेकर एक मामले में अपने फैसले में कहा कि पत्नी से तलाक हुए बिना दूसरा विवाह अमान्य है, लेकिन अवैध पत्नी की संतान संपत्ति में हिस्से की हकदार हैं। अदालत ने दोनों पत्नियों के 7 बच्चों में पैतृक संपत्ति के बटवारे में बराबर का हिस्सेदार मानने वाले निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया है। न्यायमूर्ति माधव जामदार की एकल पीठ ने कहा कि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि पहली पत्नी शिवगंगा और विट्ठल के बीच तलाक हुआ है। ऐसे में विट्ठल का दूसरी पत्नी रुख्मिणी के साथ विवाह अमान्य है, लेकिन यह ध्यान देने योग्य है कि सुप्रीम कोर्ट के रेवनसिद्धप्पा के मामले में कहा गया है कि अमान्य विवाह से उत्पन्न संतानों को वैधता प्रदान की जाती है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि पहली पत्नी की बड़ी बेटी सत्यभामा द्वारा निचली अदालत में दायर याचिका में संपत्ति में से आठवां हिस्सा ही मांगा था। पीठ ने कहा कि रुक्मिणी विट्ठल की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी नहीं हैं, जबकि विशेष रूप से रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य जैसे राशन कार्ड, पैन कार्ड, चुनाव कार्ड और अन्य दस्तावेजों से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि वह विट्ठल की पत्नी हैं। रुक्मिणी विट्ठल के साथ लगभग 1971 से उनकी मृत्यु के समय 28 दिसंबर 2000 तक साथ रहीं। दिसंबर 2000 और उसके बाद वह विट्ठल के घर पर ही रहीं और यह भी स्थापित हो गया है कि उस रिश्ते से रुक्मिणी के दो बेटे संतोष और तुकाराम हैं, जो विट्ठल की संपत्ति में हिस्सेदारी के हकदार हैं। सोलापुर के विट्ठल धूमल की पहली शादी शिवगंगा से हुई थी। उनसे उनकी पांच बेटियां सत्यभामा, कृष्णा बाई, शोभा, पार्वती और अंबिका हैं। जबकि उन्होंने शिवगंगा से तलाक लिए बिना रुक्मिणी विवाह कर लिया था। रुक्मिणी से उनके दो बेटे संतोष और तुकाराम हैं। 28 दिसंबर 2000 में विट्ठल की मृत्यु हुई, तो उनकी संपत्ति पर पहली पत्नी की बेटियों ने अपनी हिस्सेदारी का दावा किया। निचली अदालत ने पिता विट्ठल की संपत्ति का वारिस बेटियों को माना और उनकी दूसरी पत्नी के बेटों संपत्ति का हिस्सेदार मानने से इनकार कर दिया। दूसरी पत्नी के बेटों ने निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी। पीठ ने उनकी याचिका स्वीकार करते हुए पिता की संपत्ति में हिस्सेदार माना है।
मुख्यमंत्री राहत कोष के वितरण की निगरानी नहीं की जा सकती, लेकिन उम्मीद है कि इसके उद्देश्य से कोई विचलन नहीं होगा....बॉम्बे हाई कोर्ट
बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि मुख्यमंत्री राहत कोष (सीएमआरएफ) से धन के वितरण की निगरानी नहीं की जा सकती, लेकिन उन्हें उम्मीद और विश्वास है कि इसका उपयोग उसी उद्देश्य के लिए किया जाएगा, जिसके लिए इसे संचालित किया जाता है और इसमें कोई विचलन नहीं होगा। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की पीठ ने सामाजिक संगठन पब्लिक कंसर्न फॉर गवर्नेंस ट्रस्ट की दायर जनहित याचिका का निपटारा करते हुए अपने फैसले में कहा कि सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी प्राप्त करके आम जनता इस कोष के लेन-देन की जानकारी प्राप्त कर सकती है। पीठ ने यह भी कहा कि सीएमआरएफ के उद्देश्यों को मंजूरी देना और उनका विस्तार करना राज्य सरकार का नीतिगत निर्णय है। याचिकाकर्ता इस बात पर जोर नहीं दे सकता कि सीएमआरएफ का संचालन केवल मूल उद्देश्य के लिए ही किया जाना चाहिए। सीएमआरएफ के उद्देश्य के विस्तार पर कोई कानूनी रोक नहीं है। जनहित याचिका में दावा किया गया कि मुख्यमंत्री राहत कोष का उपयोग पूरी तरह से प्राकृतिक आपदाओं, विपत्तियों और उथल-पुथल के पीड़ितों की सहायता के लिए किया जाना चाहिए, जैसा कि इसके गठन के समय परिकल्पना की गई थी। जबकि मुख्यमंत्री राहत कोष का उपयोग सांस्कृतिक हॉलों के निर्माण, टूर्नामेंटों के लिए टीमों को प्रायोजित करने, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक निकायों को व्यक्तिगत कर्ज देने आदि जैसे अन्य उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है। याचिका में हाई कोर्ट न्यायालय से मुख्यमंत्री राहत कोष से धन के वितरण के प्रबंधन के लिए एक समिति बनाने और एक ऑडिट कराने की भी अनुरोध किया गया था।सरकारी वकील ने इसका विरोध करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री राहत कोष की स्थापना प्राकृतिक आपदाओं और विपत्तियों के पीड़ितों की सहायता के लिए की गई थी, लेकिन नवंबर 2001 में इसके उद्देश्यों का विस्तार किया गया। ऐसा प्राकृतिक आपदाओं के अलावा अन्य घटनाओं के पीड़ितों की बढ़ती मांग को देखते हुए किया गया था। इसके लेन-देन से संबंधित जानकारी सूचना के अधिकार अधिनियम के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है। पीठ ने सीएमआरएफ की पारदर्शिता नहीं बनाए रखने के याचिकाकर्ता के आरोप को भी अस्वीकार करते हुए कहा कि ट्रस्ट के खातों का ऑडिट किया जाता है और आयकर रिटर्न दाखिल किए जाते हैं।
Created On :   5 Aug 2025 9:37 PM IST