बॉम्बे हाई कोर्ट: छात्रा की गिरफ्तारी पर सरकार और इंजीनियरिंग संस्थान को फटकार, प्रशासनिक न्यायाधिकरण के फैसले में जवाब तलब

छात्रा की गिरफ्तारी पर सरकार और इंजीनियरिंग संस्थान को फटकार, प्रशासनिक न्यायाधिकरण के फैसले में जवाब तलब
  • ऑपरेशन सिंदूर' पर सोशल मीडिया में विवादित पोस्ट करने वाली छात्रा की गिरफ्तारी पर राज्य सरकार और इंजीनियरिंग संस्थान को लगाई फटकार
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने एमपीएससी को 31 जुलाई 2018 के विशेषज्ञ की राय को रिकॉर्ड में लाने का दिया निर्देश

Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को ऑपरेशन सिंदूर पर सोशल मीडिया में विवादित पोस्ट करने वाली छात्रा की गिरफ्तारी को लेकर राज्य सरकार और पुणे के इंजीनियरिंग संस्थान को फटकार लगाई। अदालत ने 19 वर्षीय इंजीनियरिंग की छात्रा को तत्काल रिया करने और उसे 29 मई, 31 मई और 3 जून को होने वाली उसकी शेष विश्वविद्यालय की परीक्षाओं में बैठने की अनुमति देने का निर्देश दिया। अदालत ने पूछा कि क्या आप ने स्पष्टीकरण मांगा? शैक्षणिक संस्थान का उद्देश्य क्या है? क्या इसका उद्देश्य केवल अकादमिक शिक्षा देना है? आप को छात्रा को सुधारना है या अपराधी बनाना है? न्यायमूर्ति गौरी गोडसे और न्यायमूर्ति सोमशेखर सुंदरसन की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि हम समझते हैं कि आप कुछ कार्रवाई करना चाहते हैं, लेकिन आप उसे परीक्षा देने से नहीं रोक सकते हैं। यह चौंकाने वाला है कि पोस्ट डिलीट करने के बाद 9 मई को उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई, बिना यह विचार किए कि उसने पोस्ट डिलीट कर दिया है और माफी मांगी है। हमें कोई कारण नहीं दिखता कि उसे हिरासत में क्यों लिया गया? पीठ ने यह भी कहा कि आप को उसे सुधारने की जरूरत है, न कि उसे अपराधी बनाने की। जब राज्य की ओर से पेश अतिरिक्त सरकारी वकील प्रियभूषण काकड़े ने कहा कि छात्रा पुलिस एस्कॉर्ट के साथ कॉलेज की परीक्षा दे सकती है, तो पीठ ने टिप्पणी की कि वह अपराधी नहीं है। उसे पुलिस के साथ परीक्षा देने के लिए नहीं कहा जा सकता। उसे रिहा किया जाना चाहिए। उसे परीक्षा देने से नहीं रोका जा सकता। 6 मई को इंस्टाग्राम हैंडल 'रिफॉर्मिस्तान' से एक पोस्ट किया गया था, जिसमें ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान के साथ तनाव बढ़ाने में भारत सरकार की भूमिका की बहुत आलोचना की गई थी। सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से संबद्ध पुणे के सिंहगढ़ एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग की छात्रा ने उस विवादास्पद इंस्टाग्राम के पोस्ट को रीपोस्ट किया था। संस्थान ने उसे निष्कासित कर दिया। पुणे के कोंढवा पुलिस ने छात्रा को 9 मई को गिरफ्तार किया गया था। उसने अपने कथित आपत्तिजनक पोस्ट के लिए संस्थान से अपने निष्कासन को चुनौती दी है, जिसमें तर्क दिया गया है कि उस पर कार्रवाई "मनमाना और गैरकानूनी’ है।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने एमपीएससी को 31 जुलाई 2018 के विशेषज्ञ की राय को रिकॉर्ड में लाने का दिया निर्देश

उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग (एमपीएससी) द्वारा सहायक लेखा अधिकारी के पद पर नियुक्तियों के लिए 24 अप्रैल से 27 अप्रैल 2018 के बीच हुई विभागीय परीक्षाओं को लेकर विशेषज्ञ की राय को रिकॉर्ड में लाने का निर्देश दिया है। अदालत ने महाराष्ट्र प्रशासनिक न्यायाधिकरण के इसके लेकर दिए फैसले में विशेषज्ञ की राय के शामिल होने पर भी जवाब मांगा है। 20 जून को मामले की अगली सुनवाई रखी गई है। न्यायाधिकरण ने अपने सामान्य निर्णय 22 नवंबर 2022 द्वारा माना कि प्रश्न पत्र के प्रश्न क्रमांक 4, 5 (ए) और 5 (बी) निर्धारित पाठ्यक्रम से बाहर थे। इन प्रश्नों के लिए पूरे अंक दिए जाने के लिए उम्मीदवारों द्वारा की गई प्रार्थना को अस्वीकार करते हुए एमपीएससी को अपने निर्णय में बताए गए तरीके से उन प्रश्नों को अंक आवंटित करने का निर्देश दिया गया था। उस निर्णय का लाभ उन याचिकाकर्ताओं को दिया जाना था, जिन्होंने उचित समय के भीतर न्यायाधिकरण से संपर्क किया था। एमपीएससी के समक्ष शिकायत करने के बाद उम्मीदवारों ने न्यायाधिकरण के समक्ष विभिन्न याचिकाएं दायर की थी। हालांकि एमपीएससी ने यह रुख अपनाते हुए मूल याचिकाओं का विरोध किया था कि विभागीय परीक्षा के पेपर दो के भाग एक में प्रश्न पाठ्यक्रम के भीतर थे। इसके अलावा विशेषज्ञ से प्राप्त राय के अनुसार पूछे गए प्रश्न वैध थे और इसलिए उम्मीदवारों द्वारा उठाई गई शिकायत में कोई सार नहीं था। एमपीएससी न्यायाधिकरण के प्रश्न को पाठ्यक्रम से बाहर मानने वाले फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी। न्यायमूर्ति ए.एस. चंदुरकर और न्यायमूर्ति एम.एम.साठे की पीठ ने एमपीएससी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि हम एमपीएससी को यह निर्देश देना उचित समझते हैं कि वह 31 जुलाई 2018 को प्राप्त विशेषज्ञ की राय को रिकॉर्ड पर रखे, जो राय सीलबंद लिफाफे में न्यायाधिकरण को दी गई थी। विशेषज्ञ की राय को रिकॉर्ड पर रखने से न्यायालय को यह विचार करने में मदद मिलेगी कि क्या न्यायाधिकरण द्वारा विशेषज्ञ की राय की अनदेखी किया गया था? इसके बाद यह निष्कर्ष निकालना उचित था कि प्रश्न क्रमांक 4, 5(ए) और 5(बी) पाठ्यक्रम से बाहर थे। उम्मीदवारों को भी अपने इस मत के समर्थन में विशेषज्ञ की राय को चुनौती देने का अवसर मिलेगा कि वे प्रश्न वास्तव में पाठ्यक्रम से बाहर के थे। एमपीएससी को 20 जून को अगली सुनवाई के तक विशेषज्ञ की राय को रिकॉर्ड में रखने का निर्देश दिया गया है।

Created On :   27 May 2025 8:29 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story