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बॉम्बे हाई कोर्ट: न्यायिक कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग अन्य अदालतों में साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल नहीं होगी, गुजारा भत्ता की रकम बढ़ा ढाई लाख रुपए प्रति माह की

- अदालत ने एमईआरसी की सुनवाई की रिकॉर्डिंग करने संबंधी जनहित याचिका किया खारिज
- बॉम्बे हाई कोर्ट ने पति को ढाई लाख रुपए प्रति महीने पत्नी को गुजारा भत्ता देने का दिया निर्देश
- अदालत ने पुणे फैमिली कोर्ट के 50 हजार रुपए प्रति महीने के गुजारा भत्ते देने के आदेश को कम बताते हुए किया रद्द
Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र विद्युत नियामक आयोग (एमईआरसी) के समक्ष कार्यवाही की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य करने की मांग को लेकर दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि न्यायिक कार्यवाही की ऐसी रिकॉर्डिंग को किसी भी अदालत में साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंखड की पीठ ने कमलाकर रत्नाकर शेनॉय की जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अदालती कार्यवाही की रिकॉर्डिंग पर पहले से ही प्रतिबंध है। सुप्रीम कोर्ट पहले ही यह टिप्पणी कर चुका है कि स्वस्थ और निष्पक्ष न्याय प्रशासन के लिए खुली अदालतों में सार्वजनिक सुनवाई आवश्यक है और न्याय प्रशासन में जनता का विश्वास जगाना आवश्यक है। इसलिए न्यायिक न्यायाधिकरणों और अदालतों आदि को खुले में मामलों की सुनवाई करनी चाहिए और जनता को अदालत कक्ष में प्रवेश देना चाहिए। पीठ ने कहा कि ऐसा लगता है कि शीर्ष अदालत की इन टिप्पणियों को याचिकाकर्ता ने गलत समझा है, क्योंकि उनका मानना है कि विवादित प्रस्ताव जनहित में नहीं होना चाहिए। किसी वादी को अदालती कार्यवाही के वास्तविक रिकॉर्ड का इस्तेमाल करने और उसे साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं है। वास्तव में अदालती कार्यवाही को रिकॉर्ड नहीं करने पर प्रतिबंध है और अदालत में साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल करने पर तो बिल्कुल नहीं। पीठ ने कहा कि एमईआरसी की कार्यवाही की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग ऐसी कार्यवाही में गंभीर विसंगतियों को उजागर करेगी। निश्चित रूप से यह कानून के स्थापित सिद्धांतों के विरुद्ध है कि न्यायाधिकरणों या अदालत की कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग को साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। जनहित याचिका के रूप में चिह्नित यह याचिका निजी हित याचिका की प्रकृति की प्रतीत होती है। ऐसी जनहित याचिकाएं दायर करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और इसकी निंदा की जानी चाहिए। याचिका में दावा किया गया कि एमईआरसी के समक्ष कार्यवाही ठीक से नहीं चल रही थी और उसमें कई खामियां थीं। इसलिए कार्यवाही में इन विसंगतियों को उजागर करने के लिए रिकॉर्डिंग आवश्यक थी। रिकॉर्डिंग को किसी भी अन्य न्यायालय में साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। पीठ ने सभी दलीलों को इस स्पष्ट निष्कर्ष के साथ खारिज कर दिया कि कार्यवाही की ऐसी रिकॉर्डिंग को किसी अन्य न्यायालय में साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
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बॉम्बे हाई कोर्ट ने पति को ढाई लाख रुपए प्रति महीने पत्नी को गुजारा भत्ता देने का दिया निर्देश
बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक मामले में पति को ढाई लाख रुपए प्रति महीने पत्नी को गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया। अदालत ने पुणे फैमिली कोर्ट के 50 हजार रुपए प्रति महीने पत्नी को देने के अंतरिम भरण-पोषण के आदेश को काफी कम बताते हुए रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि तलाकशुदा पत्नी को भरण-पोषण के लिए इतना कम राशि देना पूरी तरह से अनुचित और अन्यायपूर्ण है। यह उसकी मां द्वारा किए जाने वाले खर्चों के अनुरूप बिल्कुल भी नहीं है। स्पष्ट रूप से पति एक मजबूत आर्थिक स्थिति वाला व्यक्ति है और फिर भी वह भरण-पोषण का भुगतान बकाया रहने दे रहा है। न्यायमूर्ति बी.पी. कोलाबावाला और न्यायमूर्ति सोमशेखर सुंदरेसन की पीठ ने मुंबई निवाली पूर्वी मुकेश गड़ा की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि पति मुकेश अदालत में बेदाग हाथों से नहीं आया है। न केवल उसकी वित्तीय ताकत का भौतिक दमन किया गया है, बल्कि उसने भरण-पोषण की राशि पर विचार करने के लिए कानूनी सिद्धांतों को कमजोर किया है। उसके दावों में भी गलत बयान दिए गए कि वह गरीब व्यक्ति है और अंतरिम आधार पर मूल रूप से दिए गए कम भरण-पोषण का भुगतान करने में भी असमर्थ है। पीठ ने भरण-पोषण को स्थायी गुजारा भत्ता में परिवर्तित करते हुए कहा कि पूर्वी प्रथम दृष्टया यह साबित किया है कि उसे दिया गया 50 हजार रुपए प्रति माह का गुजारा भत्ता बहुत कम है और उचित जीवन यापन एवं पालन-पोषण के खर्चों के अनुरूप नहीं है। पीठ ने कहा कि पूर्वी और मुकेश का विवाह 16 वर्षों तक चला है और जीवन का सर्वोत्तम समय विवाह में ही व्यतीत हो गया है। यह एक महत्वपूर्ण कारक है, जिसे फैमिली कोर्ट ने स्थायी गुजारा भत्ता निर्धारित करते समय ध्यान में नहीं रखा है। इसे ठीक करने की आवश्यकता है। पूर्वी को 3 लाख 50 हजार रुपए प्रति माह गुजारा भत्ता प्रदान किया जाता है। मुकेश द्वारा 1 नवंबर 2025 से शुरू होने वाले 12 महीनों के लिए 42 लाख रुपए की राशि चार सप्ताह के भीतर पत्नी पूर्वी के दिए गए बैंक खाते में जमा की जाए।
क्या है पूरा मामला
पूर्वी गड़ा ("पूर्वी") और मुकेश पोपटलाल गड़ा (मुकेश) का विवाह 16 नवंबर 1997 को हुआ था। मूल रूप से मुंबई की रहने वाली पूर्वी शादी के बाद मुकेश और उनके परिवार के साथ रहने के लिए पुणे चली गईं। यह विवाह 16 साल तक चला और दंपति अपने-अपने वैवाहिक घर में साथ-साथ रहे। वे 2013 से अलग-अलग रह रहे हैं। मुकेश ने 2015 में तलाक के लिए पुणे फैमिली कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया और 24 फरवरी, 2023 को क्रूरता के आधार पर उसे तलाक दे दिया। फैमिली कोर्ट ने स्थायी गुजारा भत्ता 50 हजार रुपए प्रति माह तय किया था। मुकेश अंतरिम भरण-पोषण राशि का भुगतान भी नियमित रूप से नहीं करता था। इसके बाद पूर्वी ने गुजारा भत्ता के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और 5 लाख रुपए प्रति महीने गुजारा भत्ता की मांग की।
Created On :   11 Nov 2025 9:25 PM IST












