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संघ को भी चुभती रही कर्नाटक चुनाव में बजरंग दल की आक्रामकता, अब हाेगा मंथन
- चुनाव प्रबंधन में संघ कार्यकर्ताओं की हुई अनसुनी
- करारी हार के बाद अब मंथन का दौर शुरु
- बूथ प्रबंधन की हुई अनदेखी
डिजिटल डेस्क, नागपुर, रघुनाथसिंह लोधी। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद अब मंथन का दौर शुरु है। इसे लेकर बजरंग दल की भूमिका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी पसंद नहीं आई। देश के विभिन्न भागों से प्रचार के लिए कर्नाटक पहुंचे संघ पदाधिकारियों को बजरंग दल की आक्रामकता चुभती रही। संघ व भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच चुनाव कार्य में समन्वय का अभाव था।
इसकी शिकायत संघ कार्यकर्ताओं ने की भी थी, लेकिन चुनाव प्रबंधन संभाल रहे भाजपा नेताओं ने ध्यान नहीं दिया। बजरंग दल को प्रोत्साहन के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका को लेकर यह तक कहा जाने लगा है कि संघ का विकल्प टटोलने की मोदी मंशा अगले चुनावों में भी भाजपा को झटका दे सकती है।
मंथन बैठक जल्द
कर्नाटक की पराजय पर मंथन के लिए संघ व भाजपा की मंथन बैठक जल्द होगी। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कर्नाटक में आयोजित कार्यक्रमों में शामिल वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि सरसंघचालक डॉ.मोहन भागवत ने वर्ष 2018 में संघ के विजयादशमी कार्यक्रम में नागपुर में कर्नाटक चुनाव के महत्व पर साफ साफ टिप्पणी की थी। सरसंघचालक डा.भागवत ने कर्नाटक के लिंगायत समुदाय को लेकर कहा था कि धार्मिक आरक्षण के माध्यम से हिंदू धर्म को कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है। संघ कार्य को बढ़ाने के लिए कर्नाटक के व्यवसाय क्षेत्र के अलावा शिक्षा क्षेत्र के संपन्न लोगों की सहायता ली जाने लगी थी। इतना ही नहीं संघ की प्रतिनिधि सभा केवल नागपुर में कराने की संघ परंपरा को तोड़ा गया।
काेविड संक्रमण काल में बंगलुरु में प्रतिनिधि सभा का आवाहन किया गया। हालांकि वह सभा नहीं हो पायी लेकिन संघ का जनसंवाद कार्यक्रम चलता रहा। बंगलुरु में संघ के पदाधिकारी चुनने के संबंध में बैठक भी हुई। चुनाव से पहले संघ व भाजपा की समन्वय बैठक हुई। संघ के सहसरकार्यवाह अर्थात संयुक्त महासचिव सीआर मुकुंद बैठक में शामिल थे। हालांकि चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा पदाधिकारी अपने तरीके से प्रचार में जुट गए। संघ के वैधानिक पदाधिकारी सरकार्यवाह अर्थात महासचिव दत्तात्रेय होसबले कर्नाटक से ही हैं। लेकिन उनकी तटस्थता के कारण ठीक ठीक तालमेल नहीं हो सका।
बूथ प्रबंधन की अनदेखी
चुनाव प्रबंधन के तहत भाजपा की पन्ना प्रमुख व्यवस्था को संघ ने खारिज कर दिया। मिलीजुली योजना के अनुसार हर पांच मतदान केंद्रों पर एक शक्ति केंद्र बनाया जाना था। 10 शक्ति केंद्रों को जोड़कर एक महाशक्ति केंद्र गठित करना था। इस तरह के 6500 शक्ति केंद्र पूरे राज्य में बनाने की योजना थी और इनके समन्वय का दायित्व संघ के प्रतिनिधि को सौंपेने का निर्णय हुआ था। चुनाव जोर पकड़ते ही मतदान केंद्र समन्वय के बजाय हनुमान चालीसा पाठ और हिंदुत्व की आक्रामकता पर विशेष जोर दिया जाने लगा। विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता भाजपा के प्रचारकों में अधिक महत्वपूर्ण हो गए। राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार का सपना देख रहे बजरंग दल ने कर्नाटक में अपनी गतिविधियां तेज कर दी। हालांकि बजरंग दल ने संघ कार्यों की तुलना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के धार्मिक बयानों को अपने प्रचार में प्राथमिकता दी।
Created On :   18 May 2023 8:56 PM IST