Nagpur News: जानिए - कैसे मिला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को नाम...हेडगेवार हो गए स्वयंसेवकों के परम पूज्य

जानिए - कैसे मिला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को नाम...हेडगेवार हो गए स्वयंसेवकों के परम पूज्य
  • रोचक तथ्य - व्यक्ति पूजा के विरोधी डॉ.केशव हेडगेवार हो गए स्वयंसेवकों के परम पूज्य
  • शोभा यात्रा में उमड़ती थी भीड़
  • बिना बताए चुने गए सरसंघचालक

Nagpur News. रघुनाथसिंह लोधी | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को संगठनात्मक स्वरूप व नाम देने को लेकर स्वयंसेवकों में विचार-मंथन के इतिहास के संबंध में यह दावा भी किया जाता है कि रामटेक में भीड़ नियंत्रण की व्यवस्था की जरूरत ने संघ के संगठनात्मक नाम बात को आगे बढ़ाया। सरसंघचालक चुने जाने की खास परंपरा रही है। इसमें यह भी रोचक है कि प्रथम सरसंघचालक डॉ.केशव बलिराम हेडगेवार को बताए बिना ही सरसंघचालक चुन लिया गया था। संघ में सरसंघचालक को परम पूज्य कहा जाता है। डॉ. हेडगेवार व्यक्ति पूजा के विरोधी थे, लेकिन बतौर सरसंघचालक वे स्वयंसेवकों के लिए परम पूज्य हो गए।

शोभा यात्रा में उमड़ती थी भीड़

संघ की स्थापना के आरंभिक काल में नागपुर क्षेत्र में सामाजिक व राजनीतिक स्थिति कुछ ऐसी थी कि संघ की स्वीकार्यकर्ता का भी सवाल था। ऐसे में संघ के स्वयंसेवकों ने सेवाकार्य के माध्यम से जनमानस के बीच अपना स्थान बनाने का प्रयास किया। नागपुर से 50 किमी दूर रामटेक तहसील मुख्यालय का इतिहास भगवान राम से जुड़ा है। तीर्थस्थल है। राजा भोसले ने रामटेक में राम मंदिर को भव्यता दी है। यहां रामनवमी की पूजा व शोभायात्रा में बरसों से हजारों की भीड़ उमड़ती रही है। बताते हैं कि रामटेक में रामनवमी को भीड़ नियंत्रण की व्यवस्था अंग्रेज प्रशासन के पास भी नहीं थी। ऐसे में संघ के स्वयंसेवकों ने सामाजिक कार्य का संदेश देने के लिए रामटेक में भीड़ नियंत्रण की व्यवस्था संभालने की तैयारी का नियोजन किया। तब यह सवाल भी सामने आया कि संगठन व उसका नाम नहीं होने से स्वयंसेवक भी भीड़ का हिस्सा बन जाएंगे। लिहाजा, संगठन व नाम का विचारक निर्णायक मोड़ पर पहुंचा। संघ से संबंधित किताब के लेखक नाना पालेकर ने संघ के नामकरण पर व्यापक जानकारी दी है। एक संघ पदाधिकारी के अनुसार, पालेकर ने किताब में संघ के तत्कालीन पदाधिकारियों के कथन का भी रिफरेंस दिया है। संघ का 3 नाम सुझाया गया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जरी पटका मंडल, भारतोद्धार मंडल। 26 सदस्यों में से सर्वाधिक 20 सदस्यों के मतों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम तय हुआ।

बिना बताए चुने गए सरसंघचालक

संघ में सरसंघचालक पद के लिए उत्तराधिकारी चुनने की परंपरा रही है। सरसंघचालक उत्तराधिकारी के नाम की चिट्ठी छोड़ जाते हैं। प्रसंगवश यह भी बताया जाता है कि प्रथम सरसंघचालक डॉ.केशव बलिराम हेडगेवार को बिना बताए सरसंघचालक चुना गया था। संघ की स्थापना के बाद 4 साल तक सरसंघचालक पद नहीं था। डॉ.हेडगेवार पर लिखी गई जीवनी के अनुसार अक्टूबर 1929 में नागपुर में संघ की बड़ी सभा की चर्चा चल रही थी। डॉ. हेडगेवार ने 19 अक्टूबर 1929 को सभी प्रदेशों के संघ चालकों को पत्र लिखकर नागपुर में बैठक में आने का आमंत्रण दिया था। मोहिते वाडा यानी महाल क्षेत्र स्थित संघ मुख्यालय में 9 व 10 नवंबर 1929 को बैठक रखी गई थी। स्वयंसेवकों के लिए प्रशासनिक व्यवस्था पर चर्चा हुई। बैठक में विश्वनाथराव केलकर, बालाजी हुद्दार, अप्पाजी जोशी, कृष्णराव मोहरीर, तात्याजी कालीकर, बाबूराव मुधाल, बाबासाहब कोलटे, मार्तंडराव जोग सहभागी थे। अगले दिन संयुक्त कार्यक्रम घोषित किया गया। उससे पहले वर्धा के संघचालक अप्पाजी जोशी ने तेज स्वर में कहा सरसंघचालक प्रणाम 1, 2, 3। पहले संघ में ध्वज को गुरु माना जाता है। डॉ. हेडगेवार को सरसंघचालक के तौर पर प्रणाम किया गया। उन्हें बताया गया कि स्वयंसेवकों ने उन्हें सरसंघचालक चुना है। संघ में प्रशासनिक व्यवस्था तैयार करने की बुनियादी व्यवस्था की शुरुआत हुई। डॉ.हेडगेवार व्यक्तिपूजा के विरोधी थे, लेकिन वे सरसंघचालक पद पर स्वयंसेवकों के लिए परम पूज्य हो गए।

अब तक 6 सरसंघचालक

अब तक 6 सरसंघचालक हुए हैं। 1940 में डॉ. हेडगेवार के निधन के बाद माधव सदाशिवराव गोलवलकर ने उत्तरदायित्व संभाला। उन्हें गुरुजी भी कहा जाता है। गोलवलकर के निधन के बाद 1973 में मधुकर दत्तात्रेय देवरस सरसंघचालक चुने गए। 1993 में राजेंद्रसिंह उर्फ रज्जू भैया ने संगठन का उत्तरदायित्व संभाला। वर्ष 2000 में केसी सुदर्शन सरसंघचालक बनाए गए। 2009 में सरसंघचालक सुदर्शन ने स्वास्थ्य कारणों से उत्तरदायित्व डॉ.मोहन भागवत को सौंप दिया। एक बार लक्ष्मण वासुदेव परांजपे कार्यवाहक सरसंघचालक बनाए गए थे।

Created On :   28 Sept 2025 8:31 PM IST

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