Nagpur News: लाड़-प्यार में 50% लाडलों के दांत खराब, 15 साल तक के बच्चों के दांतों में करना पड़ रहा है रुट कैनल

लाड़-प्यार में 50% लाडलों के दांत खराब, 15 साल तक के बच्चों के दांतों में करना पड़ रहा है रुट कैनल
  • डॉक्टर की सलाह के अनुसार पूरा उपचार जरूरी
  • 30 के दांतों में कीड़े, 12 के रुट कैनल की नौबत
  • पल्प की सफाई व भराव करना पड़ता है

Nagpur News. अलग-अलग कारणों से दांतों की समस्या आम बात हो चुकी है। युवा और बुजुर्गों के साथ अब यह समस्या बच्चों में भी बड़े प्रमाण में पाई जा रही है। शासकीय दंत चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (जीडीसीएच) की ओपीडी में दांतों की जांच व उपचार करवाने के लिए हर रोज औसत 400 मरीज आते हैं। इनमें 15 फीसदी मरीजों की आयु 15 साल तक होती है। इन बच्चों में 50 फीसदी मरीजों के दांतों में कीड़े लगने की समस्या होती है। इनमें से 40 फीसदी मरीजों को रुट कैनल करवाना पड़ता है। बच्चों में दांतों की बीमारियों के अनेक कारण होते हैं।

30 के दांतों में कीड़े, 12 के रुट कैनल की नौबत

जीडीसीएच में हर रोज की औसत ओपीडी 400 है। इनमें से 15 फीसदी यानि 60 मरीजों की आयु 15 साल तक होती है। इन 60 मरीजों में से 30 मरीजों के दांतों में कीड़े लगने की समस्या होती है। इनमें से औसत 12 मरीजों का रुट कैनल करना पड़ता है। इन बच्चों के दांतों की हालत काफी खराब हो चुकी होती है। कीड़े लगने से उनके दांतों में छेद हो जाते हैं। जो दातों की नसों तक को खोखला कर देते हैं। ऐसे में दांतों की नसों की सफाई कर वहां रुट कैनल करना पड़ता है। ऐसी नौबत तब आती है, जब समस्या काफी बढ़ जाती है। यदि प्रारंभिक अवस्था में ही अस्पताल पहुंचे तो रुट कैनल की नौबत नहीं आती। लेकिन अक्सर जब समस्या हद से आगे बढ़ जाती है, तब अस्पताल में जांच व उपचार के लिए लाया जाता है।

पल्प की सफाई व भराव

रूट कैनल एक दंत चिकित्सा प्रक्रिया है, जिसमें दांत के अंदर के संक्रमित या क्षतिग्रस्त पल्प को हटाया जाता है। फिर दांत को साफ और सील कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य दांत को बचाना है, जिससे उसे निकालने की आवश्यकता न पड़े। यह प्रक्रिया तब की जाती है जब बैक्टीरिया मसूड़े तक पहुंच जाते हैं, जिससे दर्द होता है और सूजन भी आती है। रूट कैनल प्रक्रिया में संक्रमित पल्प को हटायाा जाता है। इसके बाद रूट कैनाल को अच्छी तरह से साफ और कीटाणुरहित किया जाता है। खाली जगह को एक विशेष भराव सामग्री से भरा जाता है और फिर सील कर दिया जाता है, ताकि दोबारा संक्रमण न हो। दांत की ऊपरी सतह को भी एक स्थायी भराव या क्राउन से बदला जा सकता है।

ज्यादा मीठा खिलाना बड़ा कारण

विशेषज्ञ डॉक्टर के अनुसार दांत सड़ने के पीछे मुख्य कारण परिजनों द्वारा लाड़-प्यार में खिलाई जाने वाली सामग्रियां हैं। बच्चों को अधिक मात्रा में मीठा खिलाना या खाते रहना सबसे बड़ा कारण है। टॉफी चॉकलेटस्, कैंडी, बबलगम, आइसक्रीम, केक, मिठाई, मीठा दूध, वेफर्स समेत कुछ पैकेजिंग सामग्रियों के खाने से दांतों पर असर होता है। दूसरे व तीसरे साल से 15 साल की आयु तक असर दिखाई देता है। इन सामग्रियों के खाने बाद दांतों की सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता। रात को सोने से पहले दांतों की सफाई नहीं करने से बच्चों के दातों में बैक्टीरिया द्वारा कार्बोहाइड्रेट नामक एसिड तैयार होता है। इससे दांतों की पर्त कमजोर करते होकर कीड़े लगते हैं।

डॉक्टर की सलाह के अनुसार पूरा उपचार जरूरी

डॉ. रितेश कलसकर, बाल रोग विभाग प्रमुख, जीडीसीएच के मुताबिक बच्चों के दांतों में कोई भी समस्या होने पर पहले डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। डॉक्टर द्वारा जांच के बाद उपचार करना चाहिए। यदि रुट कैनल बताते हैं, तो वह करवाना चाहिए, ताकि बच्चों के दांत सुरक्षित हो जाए। बच्चों को अधिक मात्रा में मीठा खाने से रोकना चाहिए। उन्हें फल देने चाहिए। सुबह-शाम दोनों समय सही तरीके से ब्रशिंग करना जरूरी है। इसके अलावा साल में दो बार बच्चों के दांतों की विशेषज्ञ डॉक्टरों से जांच करवानी चाहिए। जीडीसीएच में दांतों की बीमारियों का उपचार की सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। कोई समस्या होने पर यहां आकर जांच व उपचार करवाया जा सकता है।


Created On :   3 Nov 2025 7:29 PM IST

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