सुप्रीम कोर्ट: पति के खिलाफ मुकदमा रद्द करने से इनकार, गंभीर चोट पहुंचाना भी क्रूरता है

पति के खिलाफ मुकदमा रद्द करने से इनकार, गंभीर चोट पहुंचाना भी क्रूरता है
  • मुकदमा रद्द करने की मांग खारिज
  • सास-ससुर और जेठानी के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं

Nagpur News. किसी व्यक्ति को गंभीर चोट पहुंचाने के इरादे से किया कार्य या उसे आत्महत्या के लिए मजबूर करने वाला कार्य क्रूरता है, ऐसा महत्वपूर्ण निरीक्षण सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में दर्ज किया है। एक विवाहिता को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में सास-ससुर और जेठानी के खिलाफ दर्ज मुकदमे को रद्द करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है। हालांकि, पति के खिलाफ मुकदमे को रद्द करने से इनकार कर दिया।

गंभीर आरोप लगाए

इस मामले में पीड़िता की शादी 14 जुलाई 2021 को हुई थी। पीड़िता ने बजाज नगर पुलिस स्टेशन में दर्ज शिकायत के अनुसार, शादी के समय और उसके बाद भी ससुराल वालों द्वारा दहेज के रूप में उपहारों की मांग की जाती रही। साथ ही, पति पर अप्राकृतिक यौन संबंधों के लिए दबाव डालने का गंभीर आरोप भी उसने लगाया। इस कारण, उसने 6 फरवरी 2022 को बजाज नगर थाने में शिकायत दर्ज की। पुलिस ने पीड़िता के पति, सास-ससुर और जेठानी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए, 377 और 506 के तहत मुकदमा दर्ज किया।

मुकदमा रद्द करने की मांग खारिज

हाई कोर्ट ने इस मुकदमे को रद्द करने की मांग को खारिज कर दिया था। इसके बाद, पीड़िता के सास-ससुर और जेठानी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। इस मामले की सुनवाई न्यायाधीश भूषण गवई, न्यायमूर्ति विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति अतुल चांदूरकर की तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष हुई। कोर्ट ने सभी का पक्ष सुनने के बाद उक्त आदेश जारी किए। याचिकाकर्ताओं की ओर से एड. कार्तिक शुकूल ने पैरवी की।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

न्यायालय ने मामले की पूरी जांच के बाद स्पष्ट किया कि सास-ससुर और जेठानी के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं हैं। केवल -"कपड़े और गहने लाओ' जैसा आरोप है, जिसका कोई ठोस आधार नहीं है और न ही पीड़िता के उत्पीड़न का कोई अन्य विवरण है। इसलिए, इन तीनों के खिलाफ मुकदमा चलाना कानून का दुरुपयोग होने का उल्लेख न्यायालय ने किया।

Created On :   29 Sept 2025 7:54 PM IST

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