यह है मेडिकल हब का हाल, गरीब मरीज हो रहे बेहाल

यह है मेडिकल हब का हाल, गरीब मरीज हो रहे बेहाल
  • एम्स में बायपास सर्जरी नहीं
  • बेड नहीं मिला तो पहुंचे मेडिकल
  • जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ दिया

डिजिटल डेस्क, नागपुर. संतरानगरी को मेडिकल हब के रूप में देखा जाता है। यहां सरकारी व निजी अस्पतालों की बढ़ती संख्या, अत्याधुनिक सुविधाएं और संसाधनों की उपलब्धता ने शहर को अलग पहचान दी है। इसलिए यहां मध्य भारत से हर रोज हजारों की संख्या में मरीजों को जांच व उपचार के लिए लाया जाता है। आर्थिक रूप से सक्षम लोग जहां निजी अस्पतालों में उपचार करवाते हैं, वहीं मध्यम व गरीब वर्ग के लोग सरकारी अस्पतालों का रुख करते हैं। लेेकिन सरकारी अस्पतालों में बीमारी से अधिक वहां के व्यवस्थापन व असहयोग से मरीज व परिजन त्रस्त हो जाते हैं। हाल ही में तीन ऐसे मामले सामने आए हैं, जो सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था की पोल खोल रहे हैं।

एम्स में बायपास सर्जरी नहीं

केस 1- सोमवार 4 सितंबर को अकोला निवासी गणेश घाटोले अपने पिता रमेश घाटोले (76) को लेकर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) मंे पहुंचे। उनके पिता को बाइपास सर्जरी करनी थी। इसके लिए जरूरी जांच की सभी रिपोर्ट उनके पास थी। एम्स में पहुंचने के बाद रिपोर्ट के आधार पर सीवीटीएस विभाग में बताया गया कि मामला गंभीर है। मरीज को शूगर है। एम्स में बाइपास सर्जरी नहीं होती है। यह कब होगी बता नहीं सकते। दो दिन में भी सर्जरी शुरू हो सकती है या 4 महीने भी लग सकते है। इसलिए बाइपास के लिए दूसरे अस्पताल लेकर जाइए। इस जवाब के बाद गणेश अपने पिता को लेकर रात 12.30 बजे अकोला लौट गए। अब वे शिरडी जाकर बाइपास सर्जरी करवाने वाले हैं। गणेश ने बताया कि उन्होंने अकोला के आसपास बाइपास सर्जरी के लिए सुविधाजनक अस्पताल के रूप में एम्स के बारे में जानकारी जुटाई थी, लेकिन जब एम्स में पहुंचे तो वहां बाइपास सर्जरी नहीं होने का पता चला।

बेड नहीं मिला तो पहुंचे मेडिकल

केस 2- भद्रावती निवासी शैलेश पारेकर अपनी पत्नी मंजूश्री (36) को लेकर 30 अगस्त को एम्स में पहुंचे। मंजूश्री को को बांयी तरफ लकवा हो गया था। एम्स में उसकी जांच की गई। प्राथमिक उपचार किया गया। मंजूश्री को भर्ती करना जरूरी बताया गया, लेकिन भर्ती रखने के लिए एम्स में बेड उपलब्ध नहीं होने की जानकारी दी गई। ऐसे में शैलेश के सामने नई समस्या पैदा हाे गई थी कि अब क्या करे। तब किसी ने बताया कि शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) में चले जाइए। एम्स से जैसे-तैसे रात 11.30 बजे मेडिकल पहुंचे। मेडिकल पहुंचने पर वहां के डॉक्टरों ने रिपोर्ट देखी और कहा कि कल सुबह आ जाइए। शैलेश एक समाजसेवी संस्था के वाहन से हिंगना में अपने एक रिश्तेदार के यहां रातभर रुका। अगले दिन 31 अगस्त को सुबह 10.30 बजे मेडिकल पहुंचा। मरीज को बेड तो क्या व्हीलचेयर तक नहीं मिली। इसकी जानकारी सेवा फाउंडेशन के राज खंडारे को मिलते ही उन्होंने डॉक्टरों से संपर्क किया। तब जाकर व्हीलचेयर मिली। मरीज 3 घंटे तक व्हीलचेयर पर ही रही। रात को 10 बजे इमर्जेंसी में एक पेशंट के साथ रखा गया। लेकिन मरीज की जांच व कर उपचार शुरू नहीं किया गया। रात में डॉक्टर ने अलग-अलग जांच बताई, जिसमें सीटी स्कैन भी था। दूसरी तरफ सीटी स्कैन के लिए प्रभारी अधिकारी और संबंधित डॉक्टर के बीच तालमेल नहीं होने से शैलेश को बार-बार वार्ड से सीटी स्कैन कक्ष तक चक्कर लगवाए जा रहे थे। दो दिन तक डॉक्टरों की तरफ से कोई प्रतिसाद नहीं मिला। वहीं सीटी स्कैन विभाग की प्रभारी की तरफ से भी अलग परेशान किया जा रहा था। इन सारी समस्याओं से त्रस्त होकर शैलेश अपनी पत्नी को लेकर भद्रावती लौट गया। उसने बताया कि 140 किलोमीटर दूर से आने के बाद भी यहां मरीज की दखल नहीं ली गई।

जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ दिया

केस 3- 16 अगस्त की रात 11 बजे भद्रावती निवासी 40 साल के प्रणय गुरनुले की मौत हुई। उसकी मौत का कारण पेट में पानी और लिवर का खराब होना बताया गया। मौत से पहले उनके साथ जाे हुआ उसके बारे में प्रणय के भाई प्रतीक गुरनुले ने बताया कि उसके भाई की हालत बिगड़ने पर उसे एम्स में लाया गया था। यहां पर उसकी तुरंत जांच नहीं की गई। ऑक्सीजन लेवल व बीपी चेक किया गया। इसके बाद आगे का उपचार यहां नहीं होगा, ऐसा कहकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ दिया। मरीज को दूसरे अस्पताल में ले जाने को कहा गया। हालत ज्यादा खराब होने से प्रणय को तुरंत मेडिकल में लाया गया। मेडिकल में उपचार शुरु किया गया। डॉक्टरों ने बचने की उम्मीद न के बराबर बताई थी। सलाइन, दवा, इंजेक्शन लगाए गए। उपचार को प्रतिसाद नहीं मिलने से प्रणय को अगले दिन भद्रावती ले जाया गया। प्रणय ने घर में दम तोड़ दिया। प्रतीक ने बताया कि जब दूर-दराज से मरीज लाए जाते हैं, तो कागजी प्रक्रिया पूरी करने में और मरीज का उपचार शुरू होने में लंबा समय लगा दिया जाता है। इससे मरीज की हालत बिगड़ती जाती है। वहीं डॉक्टरों और अन्य सहकर्मियों का बर्ताव देखकर ही घबराहट होती है। उसने यह भी बताया कि अत्याधिक शराब सेवन के चलते प्रणय का शरीर खराब हो चुका था, लेकिन डॉक्टरों की यह जिम्मेदारी भी होती है कि मरीज आते ही उसे जीवनदान देने का प्रयास पहले करना चाहिए। मरीज व परिजनों को मानसिक रुप से परेशान नहीं करना चाहिए।

Created On :   7 Sept 2023 6:56 PM IST

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