नागपुर का सच : इलाज के अभाव में 14 हजार 820 बच्चों ने तोड़ा दम

14 thousand 820 children die due to lack of treatment in nagpur with in 5 year
नागपुर का सच : इलाज के अभाव में 14 हजार 820 बच्चों ने तोड़ा दम
नागपुर का सच : इलाज के अभाव में 14 हजार 820 बच्चों ने तोड़ा दम

योगेश चिवंडे, नागपुर। इलाज के अभाव में नागपुर संभाग में पिछले 5 साल में 14 हजार 820 बच्चों की मौत हो गई। चौंकाने वाले यह अधिकृत आंकड़े स्वास्थ्य विभाग के हैं, जो फाइलों में दफन कर दिए गए। एक तरफ इन 5 सालों में लगातार मौतें होती रहीं तो दूसरी तरफ विभाग इन मौतों के आंकड़ों से सरकारी फाइलें भरता रहा। इन बच्चों की मौत किसी बड़ी बीमारी से नहीं निमोनिया, डायरिया जैसी बीमारियों से हुई।

बच्चों का उचित समय पर इलाज करके बचाया जा सकता था। इस दौरान न तो सरकार जागी और न ही विभाग। पिछले दिनों गोरखपुर में ऑक्सीजन की कमी से कई बच्चों की मौत से देश स्तब्ध रहा। अन्य स्थानों पर भी ऐसी घटनाएं सामने आ रहीं हैं, लेकिन रोजाना मामूली बीमारियों से हो रही बाल-मृत्यु की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। बाल-मृत्यु की यह दर आर्थिक विकास दर (GDP) से भी अधिक है। हर साल 6.50 प्रतिशत की दर से बाल मृत्यु हो रही है।

यह थी मुख्य वजह
बाल-मृत्यु के लिए 90 प्रतिशत निमोनिया और डायरिया ही कारण बना। सरकारी जानकार भी यही दो कारणो को जिम्मेदार मानते हैं। शिशु के जन्म के साथ ही उसे अलग-अलग इंफेक्शन घेरते रहते हैं। ऐसा भी नहीं है कि इसका उपचार संभव नहीं है, लेकिन समय पर इलाज नहीं मिलने या ध्यान नहीं दिए जाने से निमोनिया घातक बन रहा है। दूसरी बड़ी वजह डायरिया है। शुद्ध पेयजल का अभाव या दूषित जलापूर्ति के कारण डायरिया बच्चों के लिए जानलेवा बन रहा है। इसके प्रति जनजागरण के लिए सरकारी स्तरों पर अनेक मुहिम चलायी जाती है। आंगनवाड़ी सेविकाओं की मदद से  घर-घर तक स्वास्थ्य योजनाएं पहुंचायी जाती हैं। बावजूद इसके सरकारी प्रयास आंकड़ों में असफल ही दिख रहा है।

समय पर नहीं मिल पाया इलाज
नागपुर विभाग के छह जिलों की ही बात करें तो पिछले पांच साल में यहां 14 हजार 820 बच्चों ने दम तोड़ा है। नागपुर में 1608, भंडारा में 2592, गोंदिया में 2536, चंद्रपुर में 3033, गडचिरोली में 3342, वर्धा में 1709 बाल-मृत्यु के आंकड़े सामने आए हैं। यह सभी शून्य से 5 वर्ष के हैं। हर साल करीब 2500 मौतें। शून्य से एक वर्ष के इसमें 12 हजार 603 बच्चे शामिल हैं। न तो ऑक्सीजन की कमी और न कोई गंभीर बीमारी, मामूली बीमारी निमोनिया और डायरिया ने इनकी जान ले ली। इसका उपचार अस्पतालों में संभव था पर सरकारी उदासीनता के कारण समय पर इलाज नहीं मिल पाया।

नागपुर मेट्रो सिटी के लिए यह आंकड़े शर्मनाक हैं
नागपुर मेट्रो पोलिटन सिटी के रूप में उभरता जा रहा है। मेडिकल हब के रूप में भी इसे जाना जाता है। चंद्रपुर, गडचिरोली समेत मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना से मरीज यहां इलाज के लिए आते हैं। मामूली बीमारियों से हो रही बच्चों की मौत के आंकड़े नागपुर विभाग के लिए शर्मसार करने वाले है। सबसे भयावह स्थिति चंद्रपुर और गडचिरोली की है। पांच साल में चंद्रपुर में 3033, गडचिरोली में 3342 बाल मृत्यु हुई है। गडचिरोली और चंद्रपुर का बड़ा हिस्सा आदिवासी बहुल और पिछड़ा इलाका है। यहां बुनियादी सुविधाओं सहित स्वास्थ्य सेवाओं की बेहद कमी बतायी जा रही है। यही कारण है कि समय पर उपचार नहीं मिलने की वजह से यहां बड़े पैमाने पर बाल-मृत्यु के आंकड़े सामने आ रहे हैं।

बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. उदय बोधनकर ने कहा कि बच्चों की मृत्यु के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन इंफेक्शन, निमोनिया और डायरिया तीन प्रमुख कारणों में हैं। प्रीमैच्योर बेबी, वजन कम होना और वातावरण में बैक्टरिया का जकड़ना शून्य से एक उम्र के बच्चों के मौत का कारण बन रहा है। इसके लिए गर्भवती महिलाओं के पोषण आहार पर ध्यान देना जरूरी है। सरकारी उदासीनता भी बड़े पैमाने पर जिम्मेदार है। जीडीपी का 2 प्रतिशत भी स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च नहीं होता है। सरकारी अस्पतालों में अव्यवस्था और बुनियादी सुविधाओं का अभाव भी बड़ा कारण है। राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं होने से यह समस्या आ रही है। हालांकि कुछ सालों में इसमें सुधार हुआ है।

स्वास्थ्य विभाग के उपसंचालक डॉ. संजय जायस्वाल का कहना है कि नागपुर संभाग में पांच सालों में 14 हजार 820 बच्चों की मौंत के आंकड़े सामने आए हैं। पहले मैं इन आंकड़ों का अध्ययन करुंगा। उसके बाद ही कुछ बोल पाऊंगा, किस कारण से बच्चों की मौत हुई। अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी।

Created On :   5 Sept 2017 4:56 PM IST

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