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विदर्भ के 50 हजार स्रोतों में लगभग 14 प्रतिशत दूषित जल

डिजिटल डेस्क, नागपुर। राज्य समेत विदर्भ में पेयजल की सरकार द्वारा समय-समय पर जांच और समीक्षा की जाती है। मौजूदा स्थिति में विदर्भ के नागपुर, वर्धा, भंडारा, गोंदिया, चंद्रपुर एवं गड़चिरोली जिले के जलस्रोतों में कोई खास सुधार नजर नहीं आ रहा है। आज भी विदर्भ के 49 हजार 457 में से 13.77 फीसदी जलस्रोत दूषित हैं। 10 हजार नमूनों में से 1275 अयोग्य : विदर्भ के 6 जिलों में से बीते माह कुल 10 हजार 486 नमूने इकठ्ठे किए गए। इनमें 9 हजार 262 नमूनों की जांच की गई। जांच में 1 हजार 275 नमूनों को दूषित घोषित किया गया है। इनमें नागपुर जिले के 1992 नमूने थे, जिसमें 132 नमूने पीने योग्य नहीं थे।
1136 पीजोमीटर अपर्याप्त
जल विज्ञान प्रकल्प के तहत 1136 पीजोमीटर (भूजल का स्तर नापने के लिये पीजोमीटर का उपयोग किया जाता है) स्थापित किए गए हैं। इनमें से ऑटोमेटिक 999 पीजोमीटर लगाकर हर माह आंकड़े प्राप्त किए जाते हैं। राज्य में फिलहाल 3818 निरीक्षण कुएं व 1136 पीजोमीटर की संख्या है, लेकिन यह संख्या अपर्याप्त होने के कारण जल स्वराज्य-2 के तहत राज्य में अनेक गांवों में अभी भूजल स्तर गणना का कार्य प्रस्तावित है। इसके लिए 12.37 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे।
‘भूजल मंथन’ कार्यशाला
16 फरवरी से रेशमबाग में जल संसाधन मंत्रालय की ओर से आयोजित ‘भूजल मंथन’ कार्यशाला में देश के करीब 3 हजार विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। दो दिनों के मंथन के बाद विशेषज्ञों ने 14 सिफारिशों का प्रस्ताव तैयार किया है।
केंद्र सरकार से की 14 सिफारिशें
1-भूजल संसाधनों के सतत प्रबंधन के लिए संवर्धन व खपत नियमन की आवश्यकता है। यह कार्य जन सहभागिता के माध्यम से किया जाना है। स्थानीय समुदायों को इसमें योजना के शुरू से ही शामिल किया जाए, जिससे पूर्ण लाभ मिल सके।
2-सभी विभागों के भूजल आंकड़ों को मैन्यूअल नेटवर्क से स्वचालित नेटवर्क में लाने का प्रयास किया जाए। ये आंकड़े पब्लिक डोमेन में रखे जाएं, जिससे सभी लाभान्वित हो सकें।
3-भूजल संसाधनों के सतत प्रबंधन के लिए जन जागरूकता एवं प्रशिक्षण के द्वारा देश भर में गैर-सरकारी एवं स्वयं सेवी संस्थाओं की क्षमता बढ़ाने के लिए अभियान चलाया जाए।
4-प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सहयोग से एक ठोस अभियान के द्वारा सरकारी एजेंसियों, गैर सरकारी संगठनों और स्वयंसेवी संस्थाओं का पूरे देश में भागीदारी द्वारा जल प्रबंधन के सफल वृतांतों को तत्काल समाज के सामने लाने की आवश्यकता है।
5-सफल योजनाओं को दोहराने तथा बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए स्थानीय चैंपियंस की क्षमता का निर्माण और प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है, जिससे जन सहभागिता द्वारा भूजल प्रबंधन की अवधारणा को अधिक क्षेत्रों में आगे बढ़ाया जा सके।
6-ग्राम व ग्राम पंचायत स्तरों पर किए जाने वाले भूजल प्रबंधन, केंद्रीय भूमिजल बोर्ड, राज्य सरकारों के जलवाही स्तर मैपिंग कार्यक्रम के तहत तैयार किए जाने वाले माइक्रो लेवल भूजल प्रबंधन योजनाओं के आधार पर होना चाहिए।
7-देश के विभिन्न भागों में उपलब्ध भूजल संरक्षण, संवर्धन और खपत विनियमन के पारंपरिक और नवीन तरीकों को बड़े पैमाने पर जन सहभागिता के माध्यम से करना चाहिए।
8-लघु बांध, रबर बांध, तामसवाड़ा नाला पैटर्न के सफल प्रयोग, पारंपरिक और आधुनिक तकनीकों के एकीकरण के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। ऐसे और नए प्रयोगों को विकसित कर, देश के अन्य भागों में लागू करने की आवश्यकता है। केंद्र और राज्य सरकारों की योजनाओं में इन पद्धतियों को बड़े पैमाने पर लागू किया जाए।
9-जल भंडारण और जल संरक्षण संरचनाओं के नियमित रख-रखाव के लिए जन सहभागिता की आवश्यकता है, ताकि इनकी भंडारण क्षमता और उपयोगिता बनी रहे।
10-जल उपयोग क्षमता बढ़ाने के लिए एवं कम पानी के उपयोग वाली फसलों को बढ़ावा देने के लिए, सरकार द्वारा आर्थिक प्रोत्साहन, उचित बाजार, न्यूनतम समर्थन मूल्य, बेहतर परिवहन एवं भंडारण की सुविधा पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
11-भूजल की मात्रा और गुणवत्ता को बेहतर करने के लिए जन सहभागिता से भूजल प्रबंधन की पहल में मनरेगा, स्वच्छ भारत अभियान, जलयुक्त शिवार योजना आदि शामिल करने की आवश्यकता है।
12-जल संसाधन मंत्रालय नदी विकास और गंगा संरक्षण द्वारा मनरेगा में जन भागीदारी के माध्यम से अधिक जल शोषित ब्लाक में जल प्रबंधन की पहल को बड़े पैमाने पर लागू किया जाए।
13-अटल भूजल योजना देश में सामुदायिक भूजल प्रबंधन के भविष्य को सही दिशा प्रदान करेगी। इसके लिए सभी भागीदारों के समेकित प्रयासों को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
14-सरकार द्वारा आयोजित की जा रही राष्ट्रीय चित्रकला और निबंध प्रतियोगिताओं में जन सहभागिता एवं भूजल प्रबंधन से संबंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
Created On :   18 Feb 2018 6:23 PM IST