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राज्य में बाघों की निगरानी के लिए 19 करोड़ का प्रोजेक्ट
डिजिटल डेस्क, नागपुर। राज्य के बाघ क्षेत्रों की निगरानी का जिम्मेदारी बीस वर्षों के लिए वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई), देहरादून की होगी। महाराष्ट्र वन विभाग और डब्ल्यूआईआई के बीच इसके लिए 19.14 करोड़ रुपए का एमओयू हुआ है। समझौते के तहत तीन स्तर पर काम होगा। इसमें मांसाहारी और शाकाहारी वन्य पशुओं की निगरानी के लिए 16 करोड़, मानव और वन्यजीवों के संघर्षों को समझने और उन्हें कम करने के उठाए जाने वाले कदमों पर 1.60 और नीति निर्माण के लिए रिसर्च का दायरा बढ़ाने लिए वेब पोर्टल के लिए 1.60 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। समझौते पर पिछले माह में हस्ताक्षर हुआ है।
डब्ल्यूआईआई 15 बाघों को लगा चुका है रेडियो कॉलर
डब्ल्यूआईआई वर्ष 2014 से ताड़ोबा और पूर्वी विदर्भ में बाघों की निगरानी की जिम्मेदारी निभा रहा है और अब तक कुल 15 बाघों को रेडियो कॉलर लगा चुका है। संस्थान की योजना अब पाढरकवड़ा, ब्रह्मपुरी, नागपुर, भंडारा, गोंदिया, चंद्रपुर और जलगांव स्थित बाघ क्षेत्रों पर मानव-बाघ संषर्घ की बढ़ती घटनाओं पर ध्यान केंद्रित करने की है। इसमें पेंच और नवेगांव-नागझिरा टाइगर रिजर्व शामिल हैं।
वेब पोर्टल से मिलेगी सटीक जानकारी
रिसर्च का दायरा बढ़ाने तैयार किए जा रहे वेब पोर्टल से सटीक जानकारी मिलने से मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं को टालने मदद मिल सकेगी। राज्य में प्रति वर्ष इस तरह की घटनाओं में औसतन 40 माैत होती हैं और इनमें ज्यादातर विदर्भ में होते हैं।
उल्लेखनीय है कि बाघों का जीवन चक्र सही रखने के लिए जंगली क्षेत्र में कितने बाघ हैं, इसका रिकॉर्ड वन विभाग को रखना जरूरी होता है। इसलिए वन विभाग की ओर से प्रति वर्ष अपने-अपने क्षेत्र में बाघों की गणना की जाती है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण एनटीसीए की बाघ गणना होती है, जो प्रति 4 वर्ष के बाद की जाती है। देशभर में इनके आंकड़ों को ही सही माना जाता है। एनटीसीए के अनुसार वर्तमान स्थिति में बाघों की संख्या में मध्य भारत में महाराष्ट्र नंबर 2 पर है।
Created On :   22 March 2019 1:01 PM IST