1992 सिक्योरिटी घोटाला: बैंक अधिकारियों सहित पांच लोगों को कारावास 

1992 Securities scam:5 people including bank officials got life time imprisonment
 1992 सिक्योरिटी घोटाला: बैंक अधिकारियों सहित पांच लोगों को कारावास 
 1992 सिक्योरिटी घोटाला: बैंक अधिकारियों सहित पांच लोगों को कारावास 

डिजिटल डेस्क,मुंबई। मुंबई की विशेष अदालत ने 1992 के प्रतिभूति घोटाले (सिक्योरिटी स्कैम) के मामले में पांच आरोपियों को दोषी ठहराते हुए उन्हें अलग-अलग अवधि के कारावास की सजा सुनाई है। अदालत ने इस मामले में दोषी पाए गए फाइनेंशियल फेयर ग्रोथ सर्विस लिमिटेड (एफएफएसएल) नामक निजी फर्म के आला अधिकारी आर.लक्ष्मी नारायण व एस.श्रीनिवासन को तीन साल के कारावास की सजा सुनाई है।जबकि आंध्रा बैंक की सबसिडरी कंपनी आंध्रा बैंक फाइनेंशियल सर्विस में कार्यरत वाई.सुंदरबाबू,आर.कल्याण रमन व टी.चाको को चार साल के कारावास की सजा सुनाई है। अदालत ने इस मामले से चार लोगों को बरी भी किया है। जिसमें एफएफएसएल के अधिकारी व शेयर ब्रोकर का समावेश है।

मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति शालिनी फणसालकर जोशी ने यह फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति ने फैसले में स्पष्ट किया कि अभियोजन पक्ष आरोपियों पर लगाए गए आरोपों को साबित करने में सफल रहा है। सुनवाई के दौरान आरोपियों ने न्यायमूर्ति के सामने कहा कि वे उम्रदराज है। इसके अलावा इस प्रकरण से जुड़ा मुकदमा काफी लंबे समय से चल रहा है। इसलिए उन्हें इस दौरान काफी मानसिक यातना का सामना करना पड़ा है। इस घोटाले से हमे कोई निजी लाभ भी नहीं मिला है। लिहाजा सजा को लेकर उनके प्रति नरमी बरती जाए। इस पर न्यायमूर्ति ने कहा कि निसंदेह इस मामले का मुकदमा 24 वर्षों तक चला है।

इस दौरान आरोपियों को काफी मानसिक यातना का सामना करना पड़ा है, लेकिन घोटालेबाज हर्षद मेहता के दौर में हुए इस वित्तीय घोटाले ने देश की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित किया है। इसके साथ ही कई आम लोगों की जीवन भर की कमाई डूब गई है। कुछ लोगों ने अपनी जान भी गंवाई है।

आरोपियों ने सब कुछ जानते हुए एफएफएल व एबीएफएल के बीच गलत ट्रांजक्शन किए है। ऐसे में हम यदि आरोपियों के प्रति नरमी दिखाते है तो इसका विपरीत असर पड़ेगा। इस तरह के मामलों से  समाज में कड़ा संदेश जाना चाहिए। इस बीच न्यायमूर्ति ने आरोपियों को सुनाई गई कारावास की सजा को चार महीने के लिए निलंबित(सस्पेंडेड) कर दिया है। ताकि वे सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर सके। चार महीने तक आरोपियों को सुनाई गई सजा पर अमल नहीं होगा।

Created On :   7 July 2018 1:41 PM GMT

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