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यहां 9 पहाड़ियों पर छिपा है 2000 किलो सोना, 110 साल से चल रही रिसर्च

डिजिटल डेस्क, नागपुर। जिले की 9 पहाड़ियों में सोने का भंडार छिपा होने की जानकारी सामने आई है। विशेषज्ञों के अनुसार शहर से 82 किलोमीटर दूर भिवापुर, उमरेड व कुही के करांडला में चंडाल की 9 पहाड़ियों के नीचे 2000 किलो से अधिक सोने का भंडार है। मरू नदी के किनारे व पहाड़ियों के गर्भ में दबा पड़ा है यह भंडार। एक अनुमान के अनुसार अन्य बेशकीमती खनिजों के साथ यहां करीब 60 हजार करोड़ से अधिक की संपदा दफन है। उक्त सोने को निकालने के लिए भूगर्भ वैज्ञानिकों ने सुरंगनुमा खान तैयार करने का प्रस्ताव बीते दिनों सरकार को सौंपा है। यहां के 13 गांवों के लोग चंडाल की 9 पहाड़ियों में दबे सोने की पीढ़ियों से रक्षा कर रहे हैं, हालांकि वे इतने सोने के आस-पास रहने के बाद भी गरीब हैं।
खास बात यह है कोई अनजान व्यक्ति यहां यूं ही नहीं भटक सकता। बिना इजाजत के यहां से घास का तिनका भी नहीं उठाया जा सकता। अपरिचित व्यक्ति को देखते ही ग्रामीण उसे घेर लेते हैं। पूछताछ के बाद ही उसे छोड़ा जाता है।
चंडाल की पहाड़ियों छिपा है अथाह भंडार
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि चंडाल की पहाड़ियों के नीचे बसे किटाड़ी गांव में सोनझरी नामक समुदाय रहता है। 25 से 30 परिवारों वाला यह गांव फसल कटने के बाद मिलने वाले समय के समय में पहाड़ व नदी के तट पर पतीला लेकर रेत छानता है। इससे उन्हें सोने के कणों की प्राप्ति होती है। वर्ष भर में सैकड़ों लोग इन कणों को अवैध रूप से इकठ्ठा कर बेच आते हैं। जनसंख्या के अनुपात में प्राप्ति कम होने से उनके हालात नहीं बदल पाए हैं।
मैसूर के बराबर है सोना
भारत में विश्व का लगभग 2 प्रतिशत सोना मैसूर की कोलार के 5 खानों से आता है। वहां के भूगर्भ में प्रति टन खनिज में लगभग पौने तीन ग्राम सोना पाया जाता है, जबकि नागपुर जिले के चंडाल की पहाड़ियों में पाया जाने वाला सोना प्रति टन खनिज में औसतन 2.5 ग्राम है। मतलब यहां उपलब्ध सोना मैसूर की बराबरी कर सकता है। चंडाल की पहाड़ियों पर मौजूद सोने के भंडार को लेकर बीते 110 वर्ष से अनुसंधान जारी है। गांव के 70 से 80 वर्ष आयु के बुजुर्ग बताते हैं कि 1908 के पूर्व अंग्रेजों ने यहां आकर खुदाई के नमूने लिए थे। वे सोने की खान शुरू करना चाहते थे, परंतु आजादी के आंदोलन की तीव्रता से उनकी मंशा बदल गई।
ऑस्ट्रेलिया से विशेषज्ञ आए थे
गांव के अधेड़ उम्र के हर नागरिक को पता है कि जब भूगर्भ शास्त्रियों की टीम उनके गांवों में आई थी और पहाड़ियों के नीचे अनेक स्थानों पर खुदाई का कार्य किया गया था। इस दौरान उनके साथ कुछ ऑस्ट्रेलियन विशेषज्ञ भी आए थे। काफी दिनों तक नमूने इकठ्ठा करने के बाद वे लौट गए। यह 90 के दशक की बात है।
भविष्य में उपयोगिता के विकल्पों पर ध्यान देकर कदम उठाएंगे
चंडाल की पहाड़ियों में मौजूद खनिज संपदा का क्षेत्र अब करांडला अभयारण्य एवं गोसीखुर्द बांध का बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। वन्य जीवों की रक्षा एवं सिंचन व्यवस्था को बाधित किए बिना सुरंग खोदकर सोना निकालने का प्रस्ताव सरकार को भेजा गया है। समय-समय पर इसकी समीक्षा की जा रही है। भविष्य में इसकी उपयोगिता के विकल्पों पर ध्यान देकर उचित कदम उठाया जाएगा।
(आरएस कलमकर, निदेशक, भूगर्भ शास्त्र एवं खनन संचालनालय, महाराष्ट्र)
ये गांव हैं शामिल
जिन 13 गांवों के लोग चंडाल की 9 पहाड़ियों में दबे सोने की रक्षा कर रहे हैं, उनमें मख्य रूप से पुलर, धामना, चिकना, डोंगरमौदा, विरखंडी, रामबोड़ी, किटाड़ी, मुकेबर्डी, सोमनाड़ा, भोवरी, शेगांव, कोल्हारी, डोंगरगांव का समावेश है। ग्रामीणों का कहना है कि हम लोग इसके रक्षक हैं।

रामाजी पाल : भूगर्भ वैज्ञानिक वर्षों से आ रहे हैं। उनके आने-जाने का दिन तय नहीं है। मशीन से गड्ढे खोदते हैं और सैंपल लेकर लौट जाते है।
मारोति काकडे : सरकार को केवल वन्य जीवों की चिंता है। गांवों के कुओं पर जालियां लगा दी, परंतु सोने का उपयोग कर रोजगार नहीं देते।
तुकाराम कोल्हे : सोने की इन पहाड़ियों के हम रक्षक हैं, लेकिन अभयारण्य सीमा पर कंपाउंड नहीं होने से हमारी फसलें वन्य जीव बर्बाद करते हैं।
होमराज उदापुरे : आस्ट्रेलियन विशेषज्ञ रिसर्च करने आए थे, तब हम छोटे थे। उनकी काया हमसे भिन्न थी, तो हम उनके पीछे-पीछे जाते थे।
देवाजी बोरकर : गोसीखुर्द बांध की ऊंचाई बढ़ाई गई, तो बाढ़ क्षेत्र बढ़ा। इसके चलते सोने की खान लगाए जाने की उम्मीद धूमिल हो गई है।
चंद्रशेखर गजभिये : अभयारण्य घोषित होने के बाद अन्याय हो रहा है। सोने का जतन किया हमने और अब हमारे ही मवेशी जंगल में नहीं जा सकते।
सोइंदा नान्हे : पुरखों से सुना है कि यहां सोना दबा है। भू-वैज्ञानिक आते हैं, तो उम्मीद जगती है कि कुछ काम शुरू होगा तो रोजगार मिल जाएगा।
विनोद मानकर : वन्यजीवों से फसलों का नुकसान हो रहा है। सोने का सर्वेक्षण करने लोग आते हैं, लेकिन फसलों का सर्वेक्षण नहीं करता कोई।
सहादेव केवट : पहाड़ियों में खेलते हुए बचपन बीता, लेकिन सोना नहीं मिला। मरू नदी किनारे कुछ लोगों को पतीले में सोना खोजते देखा है।
धनराज वाढई : गांव का बच्चा-बच्चा जानता है कि पहाड़ियों में सोना दबा पड़ा है, लेकिन किसी ने खुदाई कर निकालने की कोशिश नहीं की।
प्रदीप वैद्य : भूगर्भ में दबे सोने की जांच के लिए वैज्ञानिकों ने पहाड़ों के किनारे अनेक जगहों पर गड्ढे खोदे थे। अनेक वर्षों से यही हो रहा है।
Created On :   9 Aug 2018 1:42 PM IST