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15 साल से सैलरी के इंतजार में दिव्यांग स्कूल के 22 सौ कर्मचारी

डिजिटल डेस्क, नागपुर। दिव्यांगों के लिए विभिन्न योजनाओं का दावा करने वाली सरकार के लिए यह हकीकत काफी कड़वा लग सकता है। राज्य की 123 दिव्यांग स्कूल को सौ प्रतिशत अनुदान का आदेश रहने के बावजूद गत 15 वर्षों से एक रुपए भी अनुदान नहीं दिया गया है। इसके कारण इन स्कूलों में काम करने वाले लगभग 22 सौ कर्मचारियों को 15 साल से वेतन के नाम पर कुछ भी नहीं मिला है। 8 अप्रैल 2015 को अनुदान देने को लेकर जीआर भी निकाला गया, लेकिन आज तक इस पर अमल नहीं हो सका है। अधिवेशन में इन स्कूलों के कर्मचारी वेतन की मांग को लेकर आए हैं और पटवर्धन मैदान पर डटे हैं।
आत्महत्या करने की नौबत: अनशनकारियों ने कहा कि, उनका हाल इतना बुरा है, कि उन पर किसानों की तरह आत्महत्या की नौबत आई है। घर में जिन महिला कर्मचारियों के पति नौकरी करते हैं, उनका जैसे-तैसे जीवनयापन हो रहा है, लेकिन पुरुष वर्ग के लिए यह स्थिति बहुत ज्यादा परेशानी भरी है। घर के मुख्य व्यक्ति होने के बावजूद वेतन के नाम पर एक रुपया भी नसीब नहीं होने से उनके घर के सदस्यों पर काम करने की नौबत आ रही है। ऐसे में उन्होंने सरकार को उनकी समस्या को हल करने की मांग की है।
स्नेहांगण भी उपेक्षित: इसी तरह शासन की उपेक्षा के चलते मातृसेवा संघ संचालित दिव्यांगों की शाला ‘स्नेहांगण’ को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। मातृसेवा संघ की अध्यक्ष डा. अरूणा बाभुलकर व शाला प्रमुख गिरीश वराडपांडे ने सरकार से न्याय देने की मांग की है। पदाधिकारियों के अनुसार सरकार की उपेक्षा के चलते शाला को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। अनके बार निवेदन व प्रस्ताव देने के बाद भी कोई न्याय नहीं मिल रहा है। शाला के लिए मंजूर 15 पदों पर कुछ कर्मचारी सेवानिवृत्त होने के बाद दिव्यांगों के शैक्षणिक व निवास व्यवस्था अबाधित रहे इसके लिए समय-समय पर संस्था ने नियुक्तियां की। सभी कर्मचारी संस्था में अखंडित सेवा दे रहे हैं, लेकिन एनओसी नहीं मिलने के कारण कार्यरत कर्मचारियों को प्रशासकीय मान्यता नहीं मिल सकी है। इसी प्रकार शाला में अनेक महत्वपूर्ण पदों को भी अभी तक मंजूरी नहीं मिली है।
Created On :   13 Dec 2017 1:03 PM IST