- Home
- /
- राज्य
- /
- महाराष्ट्र
- /
- नागपुर
- /
- दो दशक में और बिगड़े किसानों के...
दो दशक में और बिगड़े किसानों के हालात, 18 साल में 3897 किसानों ने की खुदकुशी

डिजिटल डेस्क, नागपुर। बीते दो दशकों से लगातार प्राकृतिक आपदा व अउपज के चलते अनेक भूमिपुत्र किसानों ने अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली है। बढ़ती किसान आत्महत्या की घटनाओं के चलते ही न केवल राज्य, बल्कि देश में किसान आत्महत्या के लिए विदर्भ प्रसिद्ध हो गया है। वैसे तो किसान आत्महत्या बरसों से सुर्खियों में रही है, लेकिन अधिकृत तौर पर इसे प्रशासनिक दस्तावेजों में अलग से दर्ज करने का सिलसिला वर्ष 2001 से शुरू हुआ। विदर्भ में बीते 18 वर्षों में 3 हजार 897 किसानों ने मौत को गले लगा लिया। इन 18 वर्ष में अनेक सरकारें आई और चली गई, लेकिन अन्नदाता किसानों के हालातों में कोई खास बदलाव नहीं आ पाया। कर्जमाफी के मरहम ने भी मौत की श्रृंखला को नहीं तोड़ पाई। इस बार की कर्जमाफी की घोषणा किए जाने के बाद से करीब 200 किसानों ने आत्महत्या कर ली।
राज्य में कांग्रेस, राकांपा, शिवसेना व भाजपा की सत्ता रही है। जो कभी किसान आत्महत्या को हत्या का मामला बताते हुए सरकार व मुख्यमंत्री के खिलाफ धारा 302 और 306 के तहत अपराध दर्ज कराने की मांग उठाया करते थे, वे सत्ता पर आसीन होने के बावजूद हजारों किसानों ने आत्महत्या कर ली। फिर भी मुआवजे के अलावा ठोस नीति निर्धारित नहीं की जा सकी। हर बार अधिवेशन किसान आत्महत्या के मामले पर गूंज उठता है। हर बार सदन हंगामे की भेंट चढ़ जाता है, लेकिन नतीजे सिफर ही रह जाते हैं।
19 मार्च 1986 को देश की पहली किसान आत्महत्या
19 मार्च 2017 को किसान पुत्र आंदोलन संगठन की ओर से देश की पहली किसान आत्महत्या की स्मृति में राज्य के अनेक किसानों ने सांकेतिक अनशन व अन्नत्याग आंदोलन किया था। 19 मार्च 1986 को देश की पहली किसान आत्महत्या अधिकृत तौर पर दर्ज कराए जाने का दावा किया गया है। 1986 की इस आत्महत्या की घटना में साहेबराव करपे नाम के किसान ने अपने परिवार के साथ मौत को गले लगा लिया था। बीते 32 वर्ष में अनेक सरकारें आईं और चली गई, लेकिन किसान आत्महत्या का मामला हर बार अधिवेशन में सुर्खियों में रहने के बावजूद ठोस नतीजे तक नहीं पहुंच पाया है।
4 नन्हे बच्चों के साथ क्यों की थी साहेबराव ने आत्महत्या
यवतमाल जिले के चिलगव्हाण गांव निवासी साहेबराव करपे ने 19 मार्च 1986 में वर्धा के दत्तपुर स्थित मनोहर कुष्ठधाम में अपने पत्नी व चार नन्हे बच्चों के साथ आत्महत्या कर ली। इस घटना ने संपूर्ण राज्य में खलबली मचा दी थी। उल्लेखनीय है कि साहेबराव 40 एकड़ भूमि के मालिक थे। अपने निवास स्थान चिलगव्हाण में 11 वर्ष सरपंच थे। फसल नुकसानदेह होने से वे कर्ज में डूबते चले गए और गेहूं-चना उत्पादन में हुए नुकसान के बाद उन्होंने पत्नी से विमर्श कर सामूहिक आत्महत्या करने की ठान ली। पत्नी व बच्चों के साथ कुष्ठधाम में पहुंचकर वहां भजन गाए। पश्चात वहीं के एक कमरे में अपनी पत्नी को भुजिया बनाने के लिए कहा। बेसन में एंड्रीन जहर मिलाया गया। दो पुत्र, दो पुत्रियां(सबसे छोटी पुत्री महज 8 माह की थी) और पत्नी ने शांति से जहर मिश्रित भुजिया खा गए और प्राण त्याग दिए।
कर्ज वितरण के बाद 126 किसानों की मौत
मौजूदा राज्य सरकार ने 24 जून 2017 को कर्जमाफी का बड़ा ऐलान करते हुए 89 लाख किसानों को 34,000 करोड़ रुपए देने की घोषणा की थी। नागपुर संभाग के ढाई लाख किसानों में अब तक 782 करोड़ रुपए बांटे गए। इसके बावजूद किसान आत्महत्या का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। बीते एक वर्ष में जहां महाराष्ट्र के 1497 किसानों ने आत्महत्या कर ली, वहीं पूर्व विदर्भ के करीब 200 किसानों ने मौत को गले लगा लिया। बीते 5 माह में ही पूर्व विदर्भ के 126 किसानों ने अपना जीवन समाप्त कर लिया। कृषि क्षेत्र की बदहाली के कारण वर्ष 2001 से अब तक महाराष्ट्र में जहां 26339 किसानों की आत्महत्याएं दर्ज की गई हैं, वहीं नागपुर जिले में 720 समेत पूर्व विदर्भ में 3897 किसानों ने आत्महत्या कर ली।
1858 आत्महत्याएं अयोग्य घोषित
किसानों की बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं से चिंतित सरकार ने वर्ष 2005 में आत्महत्याग्रस्त किसान परिवार को 1 लाख रुपए मुआवजा देने के लिए कुछ मापदंड निर्धारित किए। तय नियमों के आधार पर पूर्व विदर्भ के 3897 में से केवल 1978 किसानों की मौत तो मुआवजे के काबिल समझा गया। शेष 1858 मृत्यु के मामले किसी न किसी कारणों के चलते अयोग्य साबित कर दिए गए। अयोग्य माने गए संबंधित आत्महत्याग्रस्त किसान परिवार को सरकारी मुआवजे की एक फूड़ी कौड़ी तक नहीं दी जा सकी।
कमजोर पड़ रहा है विरोधी दल
ज्ञात हो कि दिसंबर 2016 में जब अधिवेशन की शुरुआत हुई तो राज्य के किसानों की आशाओं पर पानी फिर गया। विरोधी दल कांग्रेस व राकांपा किसान आत्महत्या के मुद्दे पर कमजोर पड़ गया। विधान मंडल में निरंतर किसानों के मुद्दों पर सदन गूंजता रहा है, लेकिन विदर्भ के पिछड़ेपन व किसान आत्महत्या पर कोई ठोस फैसला नहीं हो पाया। न तो किसी ने तारांकित प्रश्न रखा और न ही ध्यानाकर्षण प्रस्ताव रखा। राज्य में सर्वाधिक किसान आत्महत्याएं अमरावती संभाग के जिलों में दर्ज की जाती हैं। इसके बावजूद अमरावती के विधायकों ने एड़ी-चोटी का जोर नहीं लगाया।
Created On :   4 July 2018 12:31 PM IST