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एक अभ्यारण्य ऐसा भी, जहां जानवरों को दिए फिल्मी नाम

डिजिटल डेस्क,नागपुर। ताड़ोबा राष्ट्रीय अभयारण्य अपने आप में एक अलग पहचान बनाए हुए है। वो इसलिए क्योकि ताड़ोबा के बाघों को फिल्मी नाम दिए गए हैं। ताड़ोबा में शिवाजी से लेकर गब्बर बाघ है। माया, छोटी तारा, सोनम बाघिन का अपना अलग अंदाज है। यह नाम बाघों को और कोई नही पर्यटकों ने ही उनके चाल-चलन, स्वभाव ने दिए हैं।
राज्य के दक्षिण पूर्व में स्थित चंद्रपुर जिले में ताड़ोबा राष्ट्रीय अभयारण्य 1955 में बना था। इसका क्षेत्र 116.55 स्क्वेयर किमी है। 40 साल बाद 625.40 स्क्वेयर किमी में ताडोबा अंधारी बाघ परियोजना (टीएटीआर) बनी। घने जंगल तथा बाघों के केंद्र के रूप में ताड़ोबा की लोकप्रियता है। यहां पर बाघ, तेंदुआ समेत 21 प्रजाति के वन्यजीव हैं। ताड़ोबा का मुख्य आकर्षण बाघ ही है। ताड़ोबा में बाघ दिखने की गारंटी होने से यहां देश ही नही दुनियाभर से पर्यटक आते हैं।
पर्यटकों के दिए नामों से वनविभाग को काफी परेशानी होने लगी। इसलिए वनविभाग ने बाघों को टी-1, टी-2 आदि ऐसे यूनिक नंबर दिए, लेकिन पर्यटक आज भी उसी नाम से बाघों को जानते है, जो उन्हें पहले दिए गए थे। इन दिनों ताड़ोबा में माया और छोटी तारा अपने शावकों के साथ पर्यटकों को ज्यादा दिखाई दे रही है।
चाल-चलन ने दिए फिल्मी नाम
कुछ शौकिया पर्यटकों ने बाघ, बाघिन को उनके चाल-चलन, स्वभाव, बर्ताव से विभिन्न फिल्मी नाम दे दिए। ताडोबा में माया, छोटी तारा, सोनम, गब्बर, येडा अण्णा, शिवाजी, बजरंग, वीर, पाशा, जब्बार, शिया, भोला, शंकर, माधुरी, ऐश्वर्या वाघडोह, कोलसा आदि नाम से बाघ-बाघिन की पहचान है। शौकिया फोटोग्राफर निखिल तांबेकर ने बताया कि बाघों को नाम देने की प्रथा 2007 से पर्यटकों ने शुरू की। एक बाघिन की पूंछ कटी थी, जिससे पहले उसे कटी कहा जाता था। जिसके बाद उसका नाम कैटरीना रख दिया। साल 2008 में भी शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी कैटरीना पर फोटोग्राफी की। कुछ साल पहले कैटरीना बाघिन गायब हो गई। अब तक उसका पता नहीं चला।
Created On :   14 July 2017 1:42 PM IST