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ये हौंसला कैसे झुके: आंखों में रोशनी नहीं तो क्या, इन्हें मिली है दिव्यदृष्टि

डिजिटल डेस्क, नागपुर। उपराजधानी के दक्षिण अंबाझरी मार्ग पर स्थित दी ब्लाइंड रिलीफ एसोसिएशन में दृष्टिहीन दिव्यांग बच्चों को रखा जाता है। बच्चों की शिक्षा से लेकर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के तक पूरी व्यवस्था यहां की जाती है। बच्चों को कला, खेल और अन्य क्षेत्रों में पारंगत किया जाता है। वहीं उनके लिए रोजगार प्रशिक्षण के लिए शेल्टर्ड वर्कशॉप फॉर दी ब्लाइंड नामक प्रशिक्षण वर्ग चलाया जाता है। यहां बच्चों को सिलाई-बुनाई, केनिंग बुनाई, कागज के डिस्पोजल उत्पादन, मसाज पार्लर आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है। इस समय यहां 16 लड़कियां और 35 लड़के हैं। असामान्य गुणों से भरपूर इन बच्चों को देखकर कोई कह नहीं सकता कि वे दृष्टिहीन हैं। संस्था पिछले 90 साल से दृष्टिहीन दिव्यांगों की सेवा में काम कर रही है।
हर बच्चे में विलक्षण प्रतिभा
सामाजिक न्याय व सहकारिता विभाग द्वारा गाेंदिया के देवरी में आयोजित राज्यस्तरीय स्पर्धा में यहां के बच्चों ने 2 गोल्ड, 4 सिल्वर और 1 कांस्य पदक जीते हैं। यहां के बच्चों में विलक्षण प्रतिभाएं हैं। कुछ लड़कों और लड़कियों ने मिलकर आर्केस्ट्रा ग्रुप बनाया है। यहां के रोहित बारमाते ने राज्यस्तरीय गीत गायन स्पर्धा में नाम कमाया है। इरशाद लतीफ कांगो प्लेयर हैं। विनीत कामड़ी की गायकी लाजवाब है। वह मूलत: चिमूर का है। दृष्टिबाधित व मतिमंद होने के कारण उसे यहां रखा गया है। पिता शिक्षक हैं। वह केन बुनाई का काम सीख रहा है। हर बच्चे में कुछ न कुछ विशेषता है। 19 साल का सूरज पुर्णलवार 7वीं में पढ़ रहा है। वह केन बुनाई करता है। दृष्टिबाधित व मतिमंद होने के बावजूद वह अपना काम पूरी तल्लीनता से करता है। रीतेश काटकर 21 साल का है। वह 12वीं पास हो चुका है।
कॉलेज में प्रवेश लेने वाला है। मूलत: वर्धा के रीतेश की आवाज में जादू है। वह अच्छा गायक है। पारंपरिक वाद्य बजाकर गायकी की जुगलबंदी मन को छू लेती है। उनके पास अत्याधुनिक वाद्य नहीं है, लेकिन जो हैं उनके लिए कम नहीं। भारत सरकार ने संस्था को ब्रेल लिपि प्रिंटिंग मशीन प्रिंटर दिया है। इसके द्वारा ब्रेल लिपि में किताबें तैयार करने का काम किया जा रहा है। इसकी मदद से 14 भारतीय भाषाओं में साहित्य प्रिंट किया जा सकता है। मांग के अनुसार यह किताबें तैयार कर दी जाती हैं। दृष्टिबाधितों के लिए अत्याधुनिक ऑडियो रिकॉर्डिंग स्टुडियो बनाया गया है। दृष्टिहीनों के लिए वरदान बना अब्रार नामक उपकरण के माध्यम से ऑडियो रिकॉर्डिंग की सुविधा है। इस पर 10वीं से स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम और स्पर्धा परीक्षाओं का अभ्यासक्रम रिकॉर्ड किया जाता है।
शायर ने यह उन बच्चों के बारे में लिखा है, जो किसी न किसी कारण खुद को सामान्य से कम आंकते हैं। ऐसे हर बच्चे में कुछ न कुछ विशेषता होती है। उन विशेषताओं को बाहर निकालने की जरूरत होती है। शहर की एक संस्था ने दृष्टिहीन दिव्यांगों को जीने की नई दिशा देने का काम किया है। बरसाें से यह यज्ञ चल रहा है। दी ब्लाइंड रिलीफ एसोसिएशन 1928 से दृष्टिहीनों के लिए अमृत कलश बनकर काम कर रहा है। यहां दृष्टिहीन बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य समेत रोजगार तक की व्यवस्था की जाती है। पूरी तरह नि:शुल्क इस संस्था से अब तक हजारों दृष्टिहीन बच्चों का जीवन प्रकाशमान हो चुका है।
Created On :   19 Aug 2018 6:08 PM IST