एक 'भूल' से हुए बीमारी का शिकार, फिर नहीं मिला कहीं भी आसरा !

A young man evicted from the army
एक 'भूल' से हुए बीमारी का शिकार, फिर नहीं मिला कहीं भी आसरा !
एक 'भूल' से हुए बीमारी का शिकार, फिर नहीं मिला कहीं भी आसरा !

डिजिटल डेस्क, नागपुर. देश की सेवा में अपनी जान की बाजी लगाने वाले सैनिक हेल्थ चैकअप में एचआईवी पॉजिटिव पाए गए हैं, जिससे उनका जीवन तबाह हो गया है। एचआईवी पॉजिटिव सैनिकों से सेना के अफसरों ने दबाव बनाकर इस्तीफा लिखवा लिया। इसके बाद उन्हें न पूर्व सैनिक का दर्जा दिया और न पेंशन। एक तरफ जहां इस बीमारी ने सैनिकों को शारीरिक रूप से मार दिया तो दूसरी तरफ दर्जनों परिवार आर्थिक तंगी से बदहाल हो गए। सामान्यत: किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित सैनिक को डिसएबिलिटी का सर्टिफिकेट मिलता है। लेकिन इन्हें वो भी नहीं दिया गया।

पांच साल में निकाले गए 30 सैनिक
नागपुर में ही पिछले पांच साल में सेना से 30 से ज्यादा सैनिक निकाले गए हैं। सैनिक अपना दर्द लेकर मदद के लिए जिला सैनिक कल्याण बोर्ड पहुंचे, लेकिन बोर्ड ने भी उन्हें यह कहकर मदद से इनकार कर दिया कि पूर्व सैनिक का दर्जा नहीं होने से वे कोई सहायता नहीं कर सकते।

सेना में सेवा के दौरान कोई सैनिक गंभीर रूप से बीमार पड़ जाए या विकलांग हो जाए तो मेडिकल बोर्ड जांच के बाद उन्हें मेडिकल डिसएबिलिटी प्रमाणपत्र देता है। सैनिकों को विकलांगता पेंशन के साथ ही पूर्व सैनिकों को दी जाने वाली सुविधाएं भी मिलती हैं। एक बीमारी एड्स ऐसी है, जो किसी सैनिक को जकड़ ले और बीमारी का खुलासा हो जाए तो उसका जीवन बर्बाद हो जाता है। उससे जबरन यह लिखवा लिया जाता है कि ‘मैं सेना से स्वेच्छानिवृत्ति ले रहा हूं’।

 

कोई सहायता नहीं मिलती

वर्धा के 35 वर्षीय कपिल नागर (बदला हुआ नाम) का कहना है कि उन्हें नहीं पता एचआईवी ने कब और कैसे जकड़ा। एक साल पहले सेना में हुई जांच में जब पता चला तो मेरी तो जमीन खिसक गई। इसके बाद लगातार मुझे अफसरों ने सेना छोड़ने का दबाव बनाया। मैं अपनी गलती पर इतना पछता रहा था कि उन्होंने जो कहा, मैंने मान लिया। आज परिवार में पत्नी सहित दो बच्चे हैं। जीवनयापन करने के लिए कोई आर्थिक व्यवस्था नहीं होने पर हमें मजदूरी करनी पड़ रही है। बच्चे भी पढ़ने की उम्र में काम कर रहे हैं।

पहले नौकरी से निकाला, फिर पूर्व सैनिक का दर्जा छीन लिया

कामठी रोड निवासी 42 वर्षीय मनोज वर्मा (बदला हुआ नाम) सेना में थे। उनकी तैनाती पूर्वोत्तर में थी। इस दौरान मनोज बीमार रहते थे। इलाज के लिए उन्हें सेना के हॉस्पिटल में ले जाया गया, जहां मेडिकल बोर्ड की जांच में एचआईवी पॉजीटिव होने की जानकारी मिली। इस पर सेना ने ऐसा कदम उठाया कि उनकी दुनिया तबाह हो गई। उनसे यह लिखवा कर लिया गया कि ‘मैं फौज से स्वेच्छानिवृत्ति ले रहा हूं’। बाद में उन्हें सेना से निकाल दिया गया। 6 वर्ष की नौकरी के बावजूद पूर्व सैनिक का दर्जा भी छीन लिया गया। मेडिकल डिसएबिलिटी पेंशन भी नहीं दी गई। सेना से निकाले जाने के बाद मनोज घर में ही रहते थे। शराब के आदी हो गए। डेढ़-दो साल बाद ही वह चल बसे। घर के मुखिया की मौत से पत्नी और बेटी पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। सड़क पर आ गए। सालों से सुविधाओं के लिए परिवार सैनिक कल्याण बोर्ड के चक्कर काट रहा है। मगर यहां से भी कोई सहायता नहीं मिली।

पूरे मामले में रक्षा विभाग के कई वरिष्ठ अफसरों से हमने बात करने का प्रयास किया। हमें महाराष्ट्र के संबंध में अतरिक्त महासंचालक (जनसंपर्क) नितिन वकनकर तथा जनसंपर्क अधिकारी नागपुर समीर गंगाखेडक से बात करने के लिए कहा गया। करीब एक सप्ताह तक लगातार प्रयास करने के बाद भी दोनों में से कोई भी जवाब नहीं दे पाया। अंत में कहा कि हमें इसकी जानकारी नहीं है। नितिन वकनकर से फोन पर बात की तो उनका कहना था कि वे छुट्‌टी पर चले गए हैं।

जिला सैनिक कल्याण अधिकारी कैप्टन दीपम लिमसे का कहना है कि हमारे पास एचआईवी पॉजीटिव सैनिक मदद मांगने के लिए आ रहे हैं, मगर हम कुछ नहीं कर सकते।लेकिन उन्हें पूर्व सैनिक का दर्जा प्राप्त नहीं होता। इसलिए हम उनकी कोई मदद नहीं कर सकते।

Created On :   6 July 2017 10:50 AM IST

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