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एग्रीमेंट किया, किश्तें भी चुकाईं, जब प्लाट देने की बारी आई तो संस्था गायब

डिजिटल डेस्क, नागपुर। लिमेश कुमार जंगम। नारी क्षेत्र में खसरा नंबर 93 की जमीन वर्ष 1995 में ले-आउट प्लॉट डालकर बंधु गृह निर्माण सहकारी संस्था ने करीब 20 लोगों को प्लाॅट बेचने के लिए एग्रीमेंट किया। तयशुदा राशि किस्तों में चुकाई गई। लेकिन जैसे ही खरीदारों को प्लाॅट देने और रजिस्ट्री कराने का समय आया कि कपिल नगर स्थित कार्यालय अचानक गायब हो गया। यहां तक कि संस्था के संचालक भी नदारद हो गए। सदस्यों को इसका पता चला तो उनके पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई। उन्हें समझने में देर नहीं लगी कि उनके खून-पसीने की कमाई कोई लूटकर ले गया।
काफी दिनों बाद फिर किसी तरह से संचालक दीपक पटेल को खोजकर उनके घर पहुंचे, पीड़ितों ने अपने-अपने प्लॉटों की मांग की। तबसे संचालक प्लाॅट की रजिस्ट्री करवाने और उन्हें कब्जा देने में टालमटोल कर रहा है। इसके बाद वे अपना हक पाने के लिए सहकारी संस्था कार्यालय, कलेक्टोरेट, संभागायुक्त और पुलिस विभाग के कभी न खत्म होने वाले फेरों में उलझ गए। इन सबमें 11 साल गुजर गए मगर उन्हें न्याय नहीं मिला। इस दौरान उनके हिस्से में केवल दर्द, पीड़ा और व्यवस्था के प्रति घोर निराशा हाथ लगी, प्लाॅट नहीं।
क्या किया
विवादित खेत में प्लाॅट बनाकर बेच दिए। जब प्लाॅट की रजिस्ट्री व मालिकाना हक नहीं मिला तो पीड़ितों ने गहन छानबीन की। तब पता चला कि जमीन के मालिकाना हक को लेकर विवाद चल रहा है। संचालक ने एक विवादित खेत की जमीन में प्लाॅट डालकर धोखे से बेच दिए। संबंधित खेत जमीन की खरीदी-बिक्री में पेंच है। बावजूद इसके खेत प्लाॅटों में बांटकर 20 लोगों को करीब 12 लाख 44 हजार रुपए में बेच दिया गया।
कौन हैं इस जमीन के असली किरदार
बंधु गृह निर्माण सहकारी संस्था की यह जमीन दो भाइयों जगन्नाथ रोडे और गंगाधर रोडे के नाम दर्ज है। गंगाधर रोडे की मृत्यु हो चुकी है। पीड़ितों के अनुसार संस्था अध्यक्ष दीपक पटेल ने केवल गंगाधर रोडे से खेत जमीन का सौदा किया था। जबकि जगन्नाथ रोडे को इस सौदे में फूटी कौड़ी तक नहीं मिली। इसलिए खेत की जमीन अधिकृत रूप से खरीदी नहीं गई और जगन्नाथ रोडे इस सौदे के खिलाफ है। उन्हें उक्त जमीन की राशि नहीं मिलने पर वे अपना कब्जा छोड़ने के लिए तैयार नहीं है।
समस्या आने के बाद कब क्या किया
प्लॉटधारकों का आरोप है कि जमीन मालिक संस्था अध्यक्ष दीपक पटेल ने कहा था कि उनके पास सिटी सर्वे विभाग को देने के लिए राशि नहीं है, इसलिए जमीन रजिस्ट्री नहीं हो सकती। तत्पश्चात प्लॉटधारकों ने ही 70500 की रकम जुटाकर दी, तब जाकर उस विभाग में राशि अदा की गई। उम्मीद थी कि जमीन की गणना होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। खेत जमीन की बिक्री ही विवाद में होने का उजागर होने पर इसकी गणना रूक गई।
इसके बाद भी क्यों आई समस्या
जैसे-तैसे जमीन मालिक को चंद शर्तों पर राजी कर लिया गया। 3 एकड़ भूमि में से कुछ हिस्सा उन्हें देकर शेष भूमि 20 प्लॉटधारकों में वितरित करने का समझौता किया गया। परंतु संस्था अध्यक्ष दीपक पटेल राजी नहीं हुए। उनके अडंगे के कारण समझौते की नीति चौपट हो गई। इससे पीड़ित प्लॉटधारकों को जमीन व रजिस्ट्री मिलने का मार्ग बंद हो गया। जबकि बयानापत्र प्राप्ति के बाद चार-पांच प्लॉटधारकों ने घर बनाए थे। सड़क की समस्या व अन्य परेशानियों के कारण यहां अब कोई नहीं रहता।
अब कहां मामला अटका है
ऐसे में सिटी सर्वे विभाग इस विवादास्पद भूमि की गणना नहीं कर सकता। खेत जमीन के विवाद का हल नहीं निकल पाया है। इसलिए पीड़ितों को उनके प्लॉटों का मालिकाना हक नहीं मिल पा रहा है। पीड़ितों में पूर्व सैनिक, दिहाड़ी कामगार, नौकरीपेशा भी शामिल हैं।
न्यायालय की शरण लें
एड. आनंद परचुरे, विशेषज्ञ अधिवक्ता का कहना है कि मंजूर व अधिकृत दस्तावेजों की जांच के बाद ही जमीन खरीदना चाहिए। अधूरे व फर्जी दस्तावेजों के आधार पर की गई जमीन की बिक्री मामले में आईपीसी की धारा 420, 468 के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है। पुलिस में शिकायत देने के बाद यदि उसकी दखल नहीं ली जाती है तो थानेदार व उनके आलाअधिकारियों से संपर्क करना चाहिए। बावजूद अपराध दर्ज न हो तो सीधे न्यायाधीश के समक्ष सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत शिकायत व बयान दर्ज कराएं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार तत्काल कार्रवाई करना पुलिस के लिए बंधनकारक हो जाता है।
हम संस्था का रजिस्ट्रेशन रद्द कर सकते हैं
एस.आर. आगरकर सहायक निबंधक, जिला उपनिबंधक कार्यालय सरकारी संस्था के मुताबिक हमें संबंधित बंधु गृह निर्माण सहकारी संस्था के बारे में सदस्यों से कहिए कि वे लिखित शिकायत करें, इसके आधार पर मैं पूरी जानकारी एकत्रित करवाती हूं। इसके बाद आवश्यक कार्रवाई की जाएगी। यदि निर्धारित नियमों के विपरीत काम किया गया है तो हम संस्था का रजिस्ट्रेशन रद्द कर सकते हैं।
विवाद सुलझते ही रजिस्ट्री करा दूंगा
दीपक पटेल (यादव), अध्यक्ष, गृह निर्माण सहकारी संस्था के मुताबिक रोडे परिवार से वर्ष 1995 में मैंने 2.70 लाख रुपए में 3.12 एकड़ जमीन खरीदी थी। करारनामे के बाद इसे प्लॉट बनाकर बेचने का अधिकार लिखित स्वरूप में प्राप्त किया था। नासुप्र में नक्शा मंजूरी का प्रस्ताव भी दिया था। प्लॉटधारकों से इसके लिए कोई फीस नहीं ली। उनके द्वारा किश्त चुकाने के दौरान उन्हें कब्जा दिया गया, किंतु 90 प्लॉटधारकों में से किसी ने मकान नहीं बनाया। एनआईटी की मंजूरी के बिना संबंधित प्लाॅटों की रजिस्ट्री नहीं हो सकती। रोडे परिवार के सदस्य जगन्नाथ रोडे से जमीन का विवाद चल रहा है, इसलिए मेरे जमीन की रजिस्ट्री नहीं हो पाई, इसके चलते संबंधित प्लॉटधारकों की रजिस्ट्री रुकी हुई है। यही वजह है कि प्लॉटधारकों ने मेरे खिलाफ थाने में झूठी शिकायत दी है। विवाद सुलझेगा तब उनकी रजिस्ट्री करा दूंगा। जिन्हें प्रतीक्षा नहीं करना है उनकी रकम लौटाने के लिए मैं तैयार हूं।
Created On :   24 July 2018 4:18 PM IST