मॉनसून सत्र में सरकार के खिलाफ लगी आरोपों की झड़ी, सीएम ने ताना जवाबी छाता

Allegations against government, CM gave answer of every question
मॉनसून सत्र में सरकार के खिलाफ लगी आरोपों की झड़ी, सीएम ने ताना जवाबी छाता
मॉनसून सत्र में सरकार के खिलाफ लगी आरोपों की झड़ी, सीएम ने ताना जवाबी छाता

डिजिटल डेस्क, नागपुर। विधानसभा के मॉनसून सत्र में सरकार के खिलाफ आरोपों की झड़ी लगी है। जिसका जवाब विपक्ष को दिया गया। पहले आरोप में कहा गया कि कोयना प्रकल्प की जमीन बिक्री में घोटाला हुआ है। 20 वर्ष के प्रकल्प बाधितों में से केवल 8 लोगों को रायगढ़ के जिलाधिकारी ने अचानक जमीन कैसे आवंटित कर दी। जिलाधिकारी ने एक पत्र में कहा कि जमीन सिडको की है, फिर जमीन बिक्री के लिए सिडको की अनुमति की आवश्यकता क्यों नहीं समझी गई। मुख्यमंत्री, संबंधित विभाग के मंत्री की जानकारी की बिना यह लेनदेन कैसे संभव हो सकता है।

जवाब में सरकार ने कहा कि कोयना प्रकल्पग्रस्तों में 35 गांवों के 751 परिवार शामिल हैं। पहले भी जमीन आवंटित होती रही है। 311 प्रत्यक्ष प्रकल्पग्रस्तों को 286 हेक्टेयर और 316 अंशत: प्रकल्पग्रस्तों को 320 हेक्टेयर जमीन पहले ही आवंटित की जा चुकी है। इन 606 हेक्टेयर जमीन का आवंटन विलासराव देशमुख से लेकर पृथ्वीराज चव्हाण के नेतृत्व की सरकार के समय हुआ है। सिडको नियोजन प्राधिकरण  है। जमीन की मालकियत राज्य सरकार की है, इसलिए सिडको से जमीन बिक्री की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।

2001 में महाराष्ट्र अधिनियम 11 के अनुुसार कोयना जैसे प्रकल्पग्रस्तों को जमीन, भूखंड या दोनों देने का अधिक जिलाधिकारी को दिया गया है। उच्च न्यायालय के आदेश पर तत्कालीन अपर सचिव मदद और पुनवर्सन को जमीन आवंटन के लिए निर्देश दिए गए। लिहाजा इन प्रकल्पग्रस्तों को जमीन देने के मामले में राजस्व, पुनवर्सन या अन्य विभाग के मंत्री की कोई भूमिका नहीं रह जाती है। मुख्यमंत्री तक भी फाइल नहीं पहुंचाई जाती है। पृथ्वीराज चव्हाण के नेतृत्व की सरकार के समय भी एेसा ही हुआ था। 

इसके अलावा आरोप लगा कि प्रकल्पग्रस्तों की जमीन एकाएक बिल्डरों को कैसे बेची जा रही है। 2000 करोड़ की जमीन 350 करोड़ में बेच दी गई।

जवाब में सरकार ने कहा कि प्रकल्पग्रस्तों को दी गई जमीन बिक्री के संबंध में न्यायालय ने कहा था कि प्रकल्पग्रस्त यदि अपनी जमीन को बेच भी नहीं पाएंगे तो उनको जमीन देने का लाभ क्या है। अलग-अलग स्तर पर उठी मांग को देखते हुए 20 जुलाई 2012 को शासनादेश जारी कर प्रकल्पग्रस्तों की दी गई, जमीन को वर्ग 1 में शामिल किया गया। वर्ग 1 की जमीन जिसकी है वह जमीनधारक नहीं अपितु जमीन मालिक होता है। जमीन मालिक अपनी जमीन बेच सकता है। इसी नियम के तहत कोयना प्रकल्पग्रस्त अपनी जमीन बेच सकते हैं, लेकिन उस जमीन का व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। खेती की जमीन खेती के लिए ही बेची जाती है। खेती की जमीन होने के कारण उनकी दर व्यावसायिक जमीन से कम होती है। रेडीरेक्नर दर से 8 प्रकल्पग्रस्तों की जमीन बिकी है। उसका दाम 2000 करोड़ नहीं है।

सरकार ने कहा कि बिल्डरों ने भले ही जमीन खरीदी है पर वे भी वहां आवासीय स्कीम खड़ी नहीं कर सकते हैं। 2010 में पांडूरंग बोदड की याचिका पर उच्च न्यायालय ने साफ निर्देश दिए हैं कि उस जमीन को एमआईडीसी को भी नहींं दिया जा सकता है। पहले की सरकार के समय बिल्डरों को बेची गई जमीनों में से 200 प्रकरणों का सातबारा उपलब्ध है। उन प्रकरणों में भी लेनदेन की न्यायिक जांच होगी। 

Created On :   5 July 2018 5:58 PM IST

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